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मरणकण्डिका - २६७
अर्थ - हे यते ! अपना या दूसरों का धार्मिक कार्य नष्ट हो रहा हो तो तुम्हें बिना पूछे भी बोलना चाहिए किन्तु यदि ऐसा कोई धर्म-संकट न हो तो सदा पूछे जाने पर ही बोलना चाहिए ॥८६५ ।।
गदन्ति ऋषयः सत्यं, यद्विद्या निखिलाः कृताः ।
तम्लेच्छस्यापि सिद्ध्यन्ति, सर्वदा सत्यवादिनः ॥८६६ ॥ अर्थ - ऋषिगण सत्य ही बोलते हैं अत: सर्व विद्याओं का विधान उन्हीं ने किया है। म्लेच्छ भी यदि सत्यवादी है तो उसे भी विद्याएँ सिद्ध हो जाती हैं।।।८६६ ।।
दयते न हुताशेन, न निमज्जति वारिणि।
धन्यः सत्य-बलोपेतो, नरो नद्यापि नोझ्यते।।८६७ ।। अर्थ - सत्यवादी मनुष्य को आग नहीं जलाती और पानी उसे नहीं डुबोता। जिसके पास सत्य का . बल है, वह धन्य है। उसे वेग वाली नदी भी बहाकर नहीं ले जाती है ।।८६७ ।
वश्या भवन्ति सत्येन, देवताः प्रणमन्ति च ।
विमोचन्ति सत्येन, ग्रहतः पान्ति च स्फुटम् ।।८६८।। अर्थ - सत्य से देवता वश में हो जाते हैं और नमस्कार करते हैं। सत्य से ग्रह पिशाच द्वारा पकड़ा हुआ मनुष्य भी छूट जाता है और उसकी रक्षा देव करते हैं ।।८६८ ॥
नरो मातेव विश्वास्यः, पूज्यो गुरुरिवाखिले ।
सत्यवादी प्रियो नित्यं, स्व-बन्धुरिव जायते ।।८६९।। अर्थ - सत्यवादी मनुष्य माता सदृश विश्वास योग्य, गुरु सदृश पूज्य एवं निज बन्धु सदृश सदा लोकप्रिय होता है।८६९॥
भाषमाणो नरः सत्यं, लभते प्रीतिमुत्तमाम् ।
बुधानन्दकरी कीर्ति, शशाङ्ककर-सुन्दराम् ।।८७०॥ अर्थ - सदा सत्य बोलने वाला मनुष्य जनता से उत्तम प्रीति प्राप्त करता है और विद्वानों को आनन्दित करने वाली चन्द्रकिरण सदृश सुन्दर कीर्ति भी प्राप्त कर लेता है ।।८७० ।।
गुणानामालयः सत्यं, मत्स्यानामिव नीरधिः ।
प्रमाणमस्ति सत्येन, वर्जितोऽपि गुणैः परैः॥८७१॥ अर्थ - सत्य गुणों का आलय है। जैसे मत्स्यादि जलचर जीवों का आधार या स्थान समुद्र है, वैसे ही गुणों का आधार सत्य है। अन्य गुणों से रहित होने पर भी एक सत्य गुण मात्र से ही मनुष्य प्रमाणभूत माना जाता है।।८७१ ॥
सम्पद्यन्ते गुणाः सत्ये, संयमो नियमस्तपः। संयतोऽपि मृषावादी, जायते तृणतो लघुः ।।८७२ ।।