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मरणकण्डिका - २९४
कुत्सिता नुर्यतो मारी, कुमारी गदिता ततः । बिभेति धर्म-कर्मभ्यो, यतो भीरुस्ततो मता ।। ९०९६ ।।
अर्थ - पुरुष के कुत्सित मरण का उपाय करने वाली होने से 'कुमारी' और सदा धर्मकार्य से डरती है अतः उसे 'भीरु' कहते हैं ।। १०१६ ।।
यतो लाति महादोषं, महिलाभिहिता ततः ।
अबला भण्यते तेन, न येनास्ति बलं हृदि ।। १०१७ ।।
अर्थ - पुरुष पर दोषारोपण करती हैं अथवा महादोष लाती है अत: 'महिला' और उसके हृदयमें धैर्यरूपी बल नहीं रहता अतः उसे 'अबला' कहते हैं ॥१०१७ |
जुषते प्रीतितः पापं यतो योषा ततो मता । यतो
दुना निः ॥ १०१८ ।।
अर्थ- प्रीतिपूर्वक पाप सेवन करने से, अथवा पुरुष को दुख से योजित करती है अतः 'योषा' या 'युवती' कहते हैं, तथा खोटे आचरण में लगी रहती है अतः 'ललना' कहते हैं ॥ १०१८ ॥
नामान्यपि दुरर्थानि जायन्ते योषितामिति ।
समस्तं जायते प्रायो, निन्दितं पाप- चेतसाम् ।। १०९९ ।।
अर्थ - इस प्रकार नारियों के नाम प्रायः खोटे अर्थ वाले ही होते हैं क्योंकि जिनके चित्त में सदा पाप विद्यमान रहता है, प्राय: उनके सर्व नामादि निन्दित ही हुआ करते हैं ।। १०१९ ।।
स्त्रियों के और भी अन्य दोष
मत्सराविनयायास-क्रोध-शोकायशोभियाम् ।
सर्वासां कारणं रामा, विषाणामिव सर्पिणी ।। १०२० ॥
अर्थ- जैसे विष का कारण सर्पिणी है, वैसे ही मत्सर, अविनय, कष्ट, क्रोध, शोक, अयश और भय का कारण स्त्री है ॥ १०२० ॥
कुल - जाति - यशो - धर्म - शरीरार्थ - शमादयः ।
नाश्यन्ते योषया सर्वे, वात्यया तोयदा इव ।। १०२१ ॥
अर्थ - जैसे आँधी द्वारा मेघ नष्ट कर दिये जाते हैं उसी प्रकार कुलटा स्त्री द्वारा कुल, जाति, यश, धर्म, शरीर, धन और प्रशमभाव आदि समस्त प्रशस्त पदार्थ नष्ट कर दिये जाते हैं ।। १०२१ ॥
पावक: सुख- दारूणां, आवासो दुःख पाथसाम् । प्रorat व्रत-रत्नानामनर्थानां निकेतनम् ।। १०२२ ॥