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मरणकण्डिका - ३२१
* शकट नामक भ्रष्ट मुनि की कथा * शकट नामक एक मुनि आहारके लिये वनसे कौशांबी नगरीके निकट आ रहे थे। मार्ग कुछ लंबा था। नगरके बाहर एक कुटीमें शून्य स्थान समझकर वे बैठ गये, वहाँ कुटियामें एक दासकर्म करनेवाली स्त्री रहती धी, मुनिने उसे पहिचान लिया कि पहले बालक अवस्थामें यह और मैं एक साथ पढ़ते थे। मुनि अपने आहारके प्रयोजनको भूल गये और उस जैनिका-जयनी नामकी स्त्रीसे वार्तालाप करने लगे। इसमें दोनोंका मन र परस्परमें आकृष्ट हो गया और शकट मुनिने अपना निर्मल चारित्र उस स्त्रीकी किंचित् कालकी संगतिसे ही छोड़ दिया।
* कूपार नामक भ्रष्ट मुनि की कथा * पाटलीपुत्र नगरमें अशोक नामका राजा था। उसका एक अत्यन्त पराक्रमी पुत्र कूपार (कूपकार) नामका था। किसी दिन विहार करते हुए वरधर्म आचार्य संघ सहित नगरके बाह्य उद्यानमें आकर ठहर गये | नागरिक समूह दर्शनार्थ जा रहा था, कूपार राजकुमार भी उनके साथ गया, आचार्यसे वैराग्यप्रद धर्मोपदेशको सुनकर कुमारको संसारसे विरक्ति हुई और उसने जिनदीक्षा ग्रहण की! किसी दिन एक विषम पर्वत पर वे कूपार मुनि ध्यानारूढ़ हुए। इधर उनके पिता अशोक राजाको पुत्र वियोगका अत्यंत दुःख हुआ, उस राजाके यहाँ एक गणिका वीरवती नामकी नृत्यकारिणी थी। उसने राजाको कहा, "मैं आपके पुत्रको वापस ला सकती हूँ, आप चिंता शोक न करें।" इतना कहकर उसने आर्यिका वेष लिया। साथमें बहुतसी दासियोंको भी आर्यिकाका वेष दिलाकर वे सभी जिस पर्वतपर ध्यानारूढ़ कूपार मुनि थे, वहाँ आईं। वीरवती तो पर्वतके नीचे ठहर गयी और
अन्य स्त्रियाँ ऊपर जाकर मुनिसे कहती हैं कि "भो योगीश्वर ! हम सब आर्यिकायें तो यहाँ दर्शनार्थ आ चुकी किन्तु एक आर्यिका पर्वतपर चढ़नेमें असमर्थ है, आप कृपा करके उन्हें दर्शन देवें।" मुनि धर्मवात्सल्यसे नीचे आये, उनके आते ही गणिकाने उन्हें हावभाव विलास द्वारा अपने वशमें कर लिया। इसतरह वे कूपार यति उस गणिका वीरवतीके निमित्तसे भ्रष्ट होगये।
* सात्यकि और रुद्रकी कथा * गंधार देशमें महेश्वर नगरका राजा सत्यधर था। उसके पुत्रका नाम सात्यकि था, इसकी सगाई राजा चेटककी पुत्री जेष्ठाके साथ हो चुकी थी। किसी कारणवश जेष्ठा राजपुत्रीने आर्यिका दीक्षा ली। जब सात्यकिको यह ज्ञात हुआ तो उसने भी समाधिगुप्त मुनीश्वरके समीप जिनदीक्षा ग्रहण की। एक दिन जेष्ठा आदि अनेक
आर्यिकायें अपनी गणिनीके साथ महावीर भगवान् के समवशरणमें जा रही थीं। मार्गमें पानी बरसने लगा। इससे सब आर्यिकासंघ तितर-बितर हो गया। जेष्ठा आर्यिका एक गुफामें पहुँची। वहाँ साड़ी खोलकर निचोड़ रही थी, गुफामें सात्यकि मुनि तपश्चरण कर रहे थे। वहाँ अकस्मात् जेष्ठाको देखकर उनका मन विचलित हुआ। दोनोंका समागम हुआ। अनंतर वर्षाके समाप्त होनेपर आर्यिकासंघ एकत्र हुआ। जेष्ठा ने अपनी गणिनी यशस्वती आर्यिकासे घटित घटना बतायी। गणिनीने अपवाद न हो इस उद्देश्यसे जेष्ठाको उसकी बड़ी बहिन राजा श्रेणिककी पट्टदेवी चेलनाके पास रखा | नव मास व्यतीत होनेपर बालक हुआ। उसके पालनका भार चेलना ने लिया । जेष्ठा पुनः छेदोपस्थापना प्रायश्चित्त द्वारा शुद्ध होकर तपमें लीन हुई। सात्यकिने भी अपने गुरुके निकट तत्काल पुनर्दीक्षा ग्रहण की। इसप्रकार स्त्रीके निकट होनेसे सात्यकि मुनि भ्रष्ट हुए।