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मरणकण्डिका - २६८
अर्थ - सत्य होने पर सर्वगुण प्राप्त हो जाते हैं और संयम, नियम एवं तप की सिद्धि हो जाती है, किन्तु यदि संयत भी मृषावादी है तो वह तृण से भी अधिक हीन हो जाता है ।।८७२।।
मुण्डो जटी शिखी नग्नश्चीवरी जायतां नरः ।
विडम्बनाखिला सास्य, वितथं यदि भाषते ॥८७३॥ अर्थ - भले ही मनुष्य सिर का मुण्डन कराने वाला हो, जटाधारी हो, शिखाधारी हो, नग्नमुद्राधारी हो अथवा वस्त्रधारी हो, यदि वह झूठ बोलता है तो यह सब उसकी विडम्बना मात्र है ।।८७३ ।।
कालकूटं यथान्नस्य, यौवनस्य यथा जरा ।
गुणानां विद्धि सर्वेषां, नाशकं वितथं तथा॥८७४।। अर्थ - जैसे कालकूट विष भोजन का विनाशक है और वृद्धावस्था यौवन की विनाशक है उसी प्रकार असत्य वचन सर्व गुणों का विनाशक है ।।८७४ ।।
स्व-मातुरप्यविश्वास्यो, मृषाभाषण-लालसः।
शेषाणां किमु लोकानां, न शत्रुरिव जायते ।।८७५ ।। अर्थ - जब असत्यभाषी मनुष्य माता का भी विश्वास-पात्र नहीं रहता, तब वह शेष जनों को शत्रु के समान क्यों नहीं प्रतीत होगा ? अवश्य प्रतीत होगा।।८७५ ।।
एकेनासत्य-वाक्येन, सत्यं बलपि हन्यते ।
सर्वत्र जायते नित्यं, शङ्कितोऽसत्य-भाषकः ।।८७६ ॥ अर्थ - एक बार भी बोला गया झूठ वचन बहुत बार बोले गये सत्य वचनों का घात कर देता है। असत्यभाषी मनुष्य स्वयं सदा एवं सर्वत्र शंकित रहता है कि कहीं मेरा असत्य प्रगट न हो जाय ||८७६॥
अप्रत्ययो भयं वैरमकीर्तिमरणं कलिः।
विषादो मत्सरः शोकः, सर्वेऽसत्यस्य बान्धवाः ।।८७७ ।। अर्थ - अविश्वास, भय, वैर, अकीर्ति, मरण, कलह, विषाद, मत्सर और शोक ये सब असत्य के बन्धुजन अर्थात् कुटुम्बी हैं॥८७७॥
आयास-रसनाछेद-सर्वस्व-हरणादयः ।
इहासत्येन लभ्यन्ते, परत्र नरकावनिः ।।८७८ ॥ अर्थ - असत्य बोलने से इस लोक में जिह्वाछेद एवं सर्वस्व-हरण आदि महाभयंकर कष्ट भोगने पड़ते हैं और परलोक में नरकगति की प्राप्ति होती है ।।८७८॥
कलिलस्थानव-द्वारं, वितथं कथितं जिनैः। निष्पापो हि वसुस्तेन श्रितेन नरकं गतः ॥८७९॥