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मरणकोण्डका - २३०
उत्तर - हाथों में चिपकने वाला दधि एवं इमली आदि फलों का रस लेप पान, हाथों में नहीं चिपकने वाला मांड आदि अलेप पान, गाढ़ा पानक घन पान, चावल के कणों से युक्त मांड सिक्थ पान, कों से रहित माँड असिस्थ पान और मात्र गर्म जल स्वच्छ पान है। इनमें से क्षपक को यथाक्सर यथा-योग्य पानक दिये जाते हैं। स्वच्छ पानक अन्त में दिया जाता है।
आचाम्ल पानक के गुण आचाम्लेन क्षयं याति, श्लेष्मा पित्तं प्रशाम्यति।
परं समीर-रक्षार्थ, प्रयत्नोऽस्य विधीयताम् ॥७३२॥ अर्थ - आचाम्ल पानक से कफ का क्षय होता है, पित्त शान्त होता है और वात से रक्षा होती है, अतः आचाम्ल के सेवन का प्रयत्न करना चाहए ।।७३२ ।।
क्षपक के पेट की शुद्धि आवश्यक है ततोऽसौ भावित: पानैर्जाठरस्य विशुद्धये ।
मलस्य मधुरं मन्दं, पायनीयो विरेचनम् ॥७३३॥ अर्थ - पानक का सेवन करने वाले क्षपक को पेट के मल की शुद्धि के लिए तथा मल का विरेचन करने के लिए मन्द एवं मधुर पानक पिलाना चाहिए ।।७३३ ।।
अनुवासादिभिस्तस्य, शोध्यो वा जाठरोमलः।
अनिरस्तो यत: पीड़ां, महतीं विदधाति सः ।।७३४ ।। अर्थ - अनुवासन (अनीमा) और गुदाद्वार में नमक आदि की बत्ती लगा कर तथा बिल्व पत्तों से क्षपक के पेट को सेक कर उदर के मल की शुद्धि करते रहना चाहिए, क्योंकि यदि प्रयासपूर्वक पेट का मल न निकाला जायेगा तो बड़ी पीड़ा होगी ।।७३४ ।।
निर्यापकाचार्य द्वारा त्रिधाहार त्याग की सूचना आराधकस्त्रिधाहारं, यावज्जीवं विमोक्षति ।
निवेद्यमिति संघस्य, निर्यापकगणेशिना ।।७३५ ।। अर्थ - निर्यापकाचार्य संघ से निवेदन करते हैं कि अब यह आराधक क्षपक जीवन पर्यन्त के लिए अशन, खाद्य और स्वाद्य इन तीनों प्रकार के आहार का त्याग करता है।।७३५ ।।
क्षपको वाऽखिलास्त्रेधा, निःशल्यीभूत-मानसः ।
क्षान्तः क्षमयते भक्ताः क्षमागुण विचक्षणः ।।७३६ ।। अर्थ - शान्तस्वभावी आचार्य संघ से कहते हैं कि आप सब भक्त हैं। नि:शल्य मन वाला एवं विचक्षण क्षमागुण से युक्त यह क्षपक मन, वचन, काय पूर्वक आप सबसे क्षमा मांगता है।।७३६ ।।
प्रश्न - आचार्य इसका द्योतन कैसे करते हैं कि क्षपक आप सबसे क्षमा मांग रहा है ?