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मरणकण्डिका - २४७
रण करके
अर्थ - सुभग नाम का ग्वाला अज्ञानी था अर्थात् अर्हन्तादि के गुणों का उसे ज्ञान नहीं था। मरण समरः मोकार म ... में रहा अत: चम्पानगरी में वृषभदत्त श्रेष्ठी का पुत्र हुआ और संयम धारण कर उसने मोक्ष प्राप्त किया ||७९१॥
____* सुभग ग्वाले की कथा * __ अगदेशान्तर्गत चम्पापुरी नगरीका राजा धात्रीवाहन था। उसकी रानीका नाम अभयमती था। उसी नगरीमें वृषभदास नामका एक सेठ रहता था, जिसकी स्त्री का नाम जिनमती था। इस सेठके यहाँ सुभग नामका ग्वाला था, जो सेठकी गायें चराया करता था । शीतकाल में एक दिन जब वह गायें चराकर घर लौट रहा था तब उसने एक मुनिराजको ध्यानारूढ़ देखा। "इस भीषण शीतमें ये कैसे बचेंगे" इस विकल्प से वह अधीर हो उठा। वह रात्रि भर आग जलाकर मुनिराजकी शीत वेदना दूर करता रहा। प्रातः मुनिराज ने अपना मौन विसर्जित किया और धर्मोपदेशके साथ-साथ उस ग्वाल बालकको “णमो अरिहंताणं" यह मंत्र भी दिया। वे स्वयं भी यह पद बोलते हुए आकाशमार्गसे चले गये । मन्त्र उच्चारणके साथ ही मुनिराजका आकाशमें गमन देखकर वाले को इस मंत्र पर अटल श्रद्धा हो गयी और वह निरन्तर भोजनादि सम्पूर्ण क्रियाओं के पूर्व महामन्त्रका उच्चारण करने लगा। एक दिन उसकी गायें गंगापार चली गईं, उन्हें वापस लानेके लिये वह गंगामें कूदा। कूदते ही उसका पेट एक तीक्ष्ण काष्ठके घुसनेसे फट गया। उस समय उसने महामन्त्रका अपने ही सेठ के पुत्र होनेका निदान कर लिया। निदानके फलानुसार वह सेठके यहाँ पुत्र रूपमें उत्पन्न हुआ। बालकका नाम सुदर्शन रखा गया। काल पाकर सेठ सुदर्शन ने राज्यवैभव का भोग किया। अन्तमें दीक्षा धारण की और स्त्रियों एवं देवियोंके द्वारा घोर उपसर्गको प्राप्त होते हुए वे मोक्षगामी हुए।
समस्तानि दुःखानि विच्छिद्य सधः, सुखानि प्रभूतानि साराणि दत्वा। मुदा सेव्यमानं विधानेन मोक्षे, विद्याधानि दत्ते नमस्कार-मित्रम् ।।७९२ ।।
इति नमस्कारः। अर्थ - प्रसन्नतापूर्वक सेवन करने पर यह नमस्कार मंत्ररूपी मित्र शीघ्र ही समस्त दुखों का नाशकर सारभूत प्रभूत सुखों को देकर पुन: मोक्ष में अव्याबाध सुखों को देता है ||७९२ ।।
नमस्कार वर्णन पूर्ण।
ज्ञानोपयोग का कथन न शक्यते वशीकर्तु, विना ज्ञानेन मानसम् ।
अंकुशेन विना कुत्र, क्रियते कुजरो वशे ।।७९३॥ अर्थ - जैसे अंकुश के बिना हाथी क्या कहीं पर वश में किया जाता है ? नहीं किया जाता। उसी प्रकार ज्ञान के बिना मन वश में नहीं किया जाता ॥७९३ ।।
प्रश्न - ज्ञान के बिना मन का निग्रह क्यों नहीं किया जाता? उत्तर - मन का निग्रह करने में ज्ञान साधकतम कारण है। अत: उसके बिना मन का निग्रह उसी प्रकार