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मरणकण्डिका - २४६
अर्थ - रोग, मारी, चोर, बैरी, राजा और भूत इनके द्वारा होने वाले समस्त दुखों को सेवित की गई जिनेन्द्रभक्ति शीघ्र ही नष्ट कर देती है || ७८५ ॥
इस प्रकार भक्ति का प्रकरण पूर्ण हुआ । णमोकार मन्त्र का माहात्म्य
आराधना - पुरोयानं, मा स्मैकाग्रमना मुच ।
शुद्धलेश्यो नमस्कार, संसार-क्षय-कारणम् ॥७८६ ॥
अर्थ - यह नमस्कार मन्त्र आराधनाओं का अग्रेसर है और पंच परावर्तन रूप संसार का क्षय करने वाला है अतः हे क्षपक ! तुम एकाग्र मन से तथा विशुद्ध परिणामों से इसकी आराधना करो। इसे कभी मत छोड़ना || ७८६ ॥
एकोप्यनमस्कारो, मृत्युकाले निषेवितः ।
विध्वंसयति संसारं, भास्वानिव तमश्चयम् ।। ७८७ ।।
अर्थ - जैसे सूर्य अन्धकार समूह का नाश कर देता है, वैसे ही मरणकाल में यदि एक बार भी अर्हन्तों को नमस्कार कर लिया जाय तो वह नमस्कार संसार का नाश कर देता है ||७८७ ॥
संसारं न विना शक्तं, नमस्कारेण सूदितुम् । चतुरङ्ग-गुणोपेतं, नायकेनेव विद्विषम् ॥ ७८८ ॥
अर्थ - जैसे सेनानायक के बिना हाथी, घोड़ा, रथ और पदाति इस चतुरंग सेना से युक्त शत्रु राजा पर विजय प्राप्त करना शक्य नहीं है, वैसे ही पंच नमस्कार के बिना संसार का विच्छेद करना शक्य नहीं है || ७८८ ॥
विद्विषो नायकेनेव, चतुरङ्ग बलीयसा ।
संसारस्य विघाताय नमस्कारेण योज्यते ॥ ७८९ ।।
अर्थ - शत्रु राजा के चतुरंग सैन्य पर विजय प्राप्त करने के लिए जिस प्रकार बलशाली सेनानायक प्रयुक्त किया जाता है, उसी प्रकार संसार का नाश करने के लिए नमस्कार मन्त्र प्रयुक्त किया जाता है। अर्थात् मरण समय में किया हुआ भाव नमस्कार दर्शन, ज्ञान, तप और चारित्ररूपी आराधनाओं का प्रवर्तक होता है ।। ७८९ ॥
नमस्कारेण गृह्णाति, देवीमाराधनां यतिः ।
पताकामिव हस्तेन, मल्लो निश्चित - मानसः ।।७९० ।।
अर्थ - जैसे दृढ़ मनवाला मल्ल हाथ द्वारा जयपताका ग्रहण कर लेता है, उसी प्रकार साधु नमस्कारमन्त्र द्वारा आराधना रूपी देवी को ग्रहण कर लेता है ।।७९० ।।
अज्ञानोऽपि मृतो गोपो, नमस्कार -परायणः । चम्पाश्रेष्ठि-कुले भूत्वा प्रपेदे संयमं परम् ॥७९९ ॥