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मरणकण्डिका - २३८
मन्त्री बोला - “महाराज ! असम्भव है, न मैंने अपनी आँखोंसे देखा है और न इस प्रकार की बात सम्भव है।” मन्त्री की असत्य बात सुनकर राजा को बहुत विस्मय हुआ किन्तु उसी क्षण मन्त्री के दोनों नेत्र फूट गये और वह दुर्गति का पात्र बना। "जैसी करनी वैसी भरनी" के अनुसार ही उसने फल प्राप्त किया।
दुर्धर चारित्र भी मिथ्यात्व युक्त जीव का रक्षण नहीं करता कटुकेऽलाबुनि क्षीरं, यथा नश्यत्यशोधिते। शोधिते जायते हृद्यं, मधुरं पुष्टिकारणम् ।।७६४॥ तपो जान-परिमाणि. समिश्या तशाहिनि ।
नश्यन्ति वान्त-मिथ्यात्वे, जायन्ते फलवन्ति च ॥७६५ ।। अर्थ - जैसे गूदा सहित कड़वी तूंबड़ी में रखा हुआ दूध कडुवा अर्थात् नष्ट हो जाता है और उसी तूंबड़ी का अन्दर का गूदा निकाल कर उसमें रखा हुआ दूध मधुर एवं पुष्टिकारक होता है ; वैसे ही मिथ्यात्वी जीव द्वारा धारण किये हुए तप, ज्ञान और चारित्र नष्ट हो जाते हैं तथा मिथ्यात्व का वमन कर देने वाले सम्यक्त्वी मनुष्य के तप एवं ज्ञानादि फलदायक होते हैं ।।७६४-७६५॥
प्रश्न - तपादि का फल क्या है ? और ये यथार्थ फल कब देते हैं ?
उत्तर - अभ्युदय और निःश्रेयस् ये दोनों प्रकार के सुख तप से ही प्राप्त होते हैं, इसलिए समीचीन तप, ज्ञान एवं चारित्र मुक्ति के उपाय कहे गये हैं। समीचीन तप आदि श्रद्धा के बल से ही होते हैं, श्रद्धा के अभाव में नहीं होते। केवल तप आदि मुक्ति का उपाय नहीं हैं, अत: मिथ्यात्व को दूर कर देने वाले जीवों में ही तप आदि सफल होते हैं।
विविध-दूषणकारि कुदर्शनं, लघु विमुच्य कुमित्रमिवोत्तमाः । सकलधर्म-विधायि सुदर्शनं, सुविभजन्ति सुमित्रमिवाशनम् १७६६ ॥
इति मिथ्यात्वापोहनम्। अर्थ - जैसे विविध दोषों को करने वाले खोटे मित्र को शीघ्र ही छोड़ दिया जाता है, उसी प्रकार भव्य जीव कुगति-गमनादि नाना प्रकार के दोषों को करने वाले इस मिथ्यात्व को छोड़ कर समस्त धर्म को करने वाले सुमित्र के सदृश इस सम्यक्त्व का ही सेवन करते हैं ।।७६६ ।।
प्रश्न - मिथ्यात्व-त्याग के लिए इतना उपदेश क्यों दिया गया है ?
उत्तर - यहाँ ग्यारह श्लोकों द्वारा मिथ्यात्व के त्याग का उपदेश इसलिए दिया गया है कि अनादिकाल से अद्यावधि जो संसार-परिभ्रमण हुआ है और आगे होगा उसका प्रमुख कारण मिथ्यात्व ही है। इससे सिद्ध होता है कि जीव का सर्वाधिक प्रबल शत्रु मिथ्यात्व ही है, अतः आचार्यदेव ने जीवन के अन्त समय में भी ऐसे कष्टप्रद मिथ्यात्व के त्याग का हृदयग्राही उपदेश दिया है।
इस प्रकार मिथ्यात्वत्याग का प्रकरण समाप्त हुआ।