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मरणकण्डिका - ११५
के समान आक्रोश वचन सुनकर भी समता रखना । वचनों की मार से पीड़ित होकर कभी धर्म की धुरा सदृश क्षमा एवं चारित्र आदि गुणों का त्याग नहीं कर देना।
तपश्चरण में उद्यत रहने का उपदेश ध्रुव-सिद्धिश्चतुर्ज्ञानस्तीर्थकृत् त्रिदशार्चितः।
अनिगृह्य बलं वीर्यमुद्यतः कुरुते तपः ।।३०७॥ अर्थ - जो मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्ययज्ञान के धारी हैं, तपकल्याणक पर्यन्त अर्थात् तीन कल्याणकों में देवगणों से पूजा को प्राप्त हो चुके हैं तथा जिन्हें सिद्धि की प्राप्ति नियमतः होनी ही है, वे तीर्थंकर प्रभु भी अपने बल और वीर्य को न छिपा कर तप-विधान में उद्यम करते हैं।।३०७॥
प्रश्न - तीर्थंकर किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिसके द्वारा भव्यजीव संसार-समुद्र से तिरते हैं उसे तीर्थ कहते हैं। या कुछ भव्य जीव श्रुत एवं श्रुतधारी गणधरों का अवलम्बन लेकर भी संसार-समुद्र को तिरते हैं, अतः श्रुत और गणधरों को भी तीर्थ कहते हैं। या रत्नत्रय मार्ग से भी संसार तिरा जाता है, अत: रत्नत्रयमय मोक्षमार्ग भी तीर्थ है। जो ऐसे तीर्थ को प्रचलित करते हैं उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। ऐसे तीर्थंकर भी जब तप करते हैं तब अन्य मुनिजनों को तो वह तप अवश्य ही करना चाहिए।
मुमुक्षूणां किमन्येषां, दुःखक्षपण-काङ्क्षिणाम् ।
न कर्तव्यं तपो घोरं, प्रत्यावायाकुले जने ॥३०८ ॥ अर्थ - (जब तीर्थंकरों को भी तप में उद्यम करना होता है तब) दुखों का क्षय करने के इच्छुक अन्य मुमुक्षु जनों की क्या बात है ! विघ्नों से भरे हुए इस लोक में सामान्य मुनियों को तप क्यों नहीं करना चाहिए ? अवश्य ही करना चाहिए ।।३०८ ।।
प्रश्न - लोक में मुख्यत: ऐसी कौन-कौन सी बाधाएँ हैं, जिस हेतु आचार्य ने तप में उद्यमशील रहने की प्रेरणा दी है ?
उत्तर - यह लोक मृत्यु, शरीर-बलनाश, व्याधि और राग-द्वेषादि अपरिमित बाधक कारणों से भरा हुआ है। इसके अतिरिक्त सबसे बड़ा कष्ट यह है कि इन मृत्यु एवं व्याधि आदि के आने का समय ज्ञात नहीं होता। मृत्यु के रहने का कोई देश, प्रान्त, नगर, ग्राम और प्रदेश नियत नहीं है। यह सर्वाकाश में भ्रमण करती है। जहाँ सूर्य की किरण भी प्रवेश नहीं कर पाती वहाँ भी मृत्यु का प्रवेश सहज-साध्य है। तथा ग्रीष्म, शीत, वर्षा एवं हेमन्तादि ऋतु, सोमवार आदि वार, रात्रि या दिन, प्रातः या सन्ध्या, घण्टा, मिनिट या सेकेण्ड आदि कोई काल नियामक नहीं है कि वह क्षेत्र में, किस काल में और किस जीव को ग्रसित कर ले। मृत्यु आ जाने पर संसार में ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो उस जीव को उससे बचा सके । मार्जार की दाढ़ों के बीच दबा हुआ चूहा तो कथंचित् बचाया जा सकता है किन्तु मृत्यु के मुख में प्रवेश किये हुए को बचाना सम्भव नहीं है।