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मरणकण्डिका - ११७
जो मुनि मार्ग के श्रम से थक गये हैं उनके पैर आदि दबाना, चोरों ने सताया है या नदी अथवा नदी को रोकनेवालों ने सताया है, या दुष्ट राजा आदि ने पीड़ित किया है तो उन्हें सान्त्वना देकर शान्ति पहुँचाना, दुर्भिक्ष तथा महामारी आदि रोगों से व्याप्त क्षेत्र से विहार कराकर सुभिक्ष एवं निरापद देश में लाना, तथा अन्य भी ऐसे अनेक कारण उपस्थित हो जाने पर उनका सटा संरक्षण करना वैयावृत्य है।३११ ।।
वैयावृत्त्य न करने में दोष समर्थों न विधत्ते यो, वैयावृत्यं जिनाज्ञया। अप्रच्छाद्यं बलं वीर्यमतो निर्धर्मकः स-कः? ॥३१२।। आज्ञाकोपो जिनेन्द्राणां, श्रुत-धर्म-विराधना।
अनाचारः कृतस्तेन, स्वपरागम-वर्जनम् ।।३१३ ।। अर्थ - अपने बल और वीर्य को न छिपानेवाला जो मुनि समर्थ होते हुए भी जिन भगवान के द्वारा निर्देशित क्रमानुसार यदि वैयावृत्त्य नहीं करता है, तो वह निधर्मा अर्थात् धर्म से बहिष्कृत है। उससे अन्य अधार्भिक और कौन हो सकता है? ॥३१२ ।। ।
वैयावृत्य न करने से जिनेन्द्राज्ञा का उल्लंघन, आगम में कहे हुए धर्म का नाश, अनाचार और उस साधु की आत्मा का, पर का अर्थात् साधुवर्ग का एवं आगम का परित्याग होता है।।३१३ ।।
प्रश्न - इन दोनो श्लोकों का स्पष्ट भाव क्या है ? उत्तर - इन दोनों का स्पष्ट भाव इस प्रकार है -
आज्ञाकोष - 'वैयावृत्य करना चाहिए' ऐसी जिनेन्द्र की आज्ञा है। इसके उपरान्त भी जो वैयावृत्य नहीं । करता, वह जिनेन्द्र की आज्ञा को भंग करता है। यह आज्ञाकोप है।
श्रुत-धर्मविराधना - वैयावृत्य न करने से शास्त्र में कहे गये धर्म का नाश होता है। अर्थात् यदि वैयावृत्य करनेवाले नहीं होंगे तो साधुजन मुनिधर्म का पालन नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार शास्त्रोक्त धर्म की विराधना होगी।
अनाचार - जिनेन्द्र ने वैयावृत्यरूप तप को आचार कहा है। जिसने वैयावृत्यरूप तप नहीं किया उसे अनाचार का दोष लगा।
स्व-परागम-वर्जन - वैयावृत्य करना अभ्यन्तर तप है। इस तप में उद्यम न करने से स्वयं की आत्मा का, आपत्ति में अर्थात् संकट-ग्रस्त अवस्था में उपकार न करने से साधुवर्ग का और आगमविहित आचरण न करने से आगम का त्याग हुआ।
वैयावृत्य करने में सोलह गुण हैं.
गद्य - १. गुणपरिणाम, २. श्रद्धा, ३. वात्सल्य, ४. भक्ति, ५. पात्रलाभ, ६. सन्धान, ७. तप, ८. पूजा, १. तीर्थ-अविच्छित्ति, १०. समाधि, ११. जिनाज्ञा, १२. संयम-साहाय्य, १३. दान, १४. निर्विचिकित्सा, १५. प्रभावना, १६. संघकार्याणि वैयावृत्यगुणाः ।