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मरणकण्डिका - २१९
वस्तु सर्वथा नित्य ही है, सर्वथा अनित्य ही है, सर्वथा एक ही है, सर्वथा अनेक ही है, सर्वथा क्षणिक है, सत् ही है या असत् ही है, अथवा विज्ञान मात्र ही है या शून्य ही है; इत्यादि पर-समय को पूर्वपक्ष बना कर प्रत्यक्ष, अनुमान एवं आगम से उसमें विरोध दर्शाकर कथंचित् पद से अलंकृत स्वसमय अर्थात् जैनमत को स्थापित करने वाली अर्थात् न्यायग्रन्थों की वार्ता विक्षेपणी कथा है।
रत्नत्रय धर्म का आराधन करने से कैसे-कैसे वैभव प्राम होते हैं, उसी भव में ऋद्धियाँ, परभव में देवेन्द्र, चक्रवर्तित्व एवं बलदेव आदि का सुख प्राप्त होता है, धर्म के फल में इस प्रकार हर्ष बढ़ाने वाली संवेजनी कथा
बाद शरीर मात्रि - यार है, शुद्ध भोजनदान आदि को तत्काल अशुद्ध कर देता है। इन्द्रियभोग महाभयानक कष्ट उत्पन्न करते हैं तथा नरकादि कुगतियों में भ्रमण कराते हैं। इस प्रकार शरीर और भोगों का यथार्थ स्वरूप दर्शाने वाली निर्वेदनी कथा है।
इन चार प्रकार की कथाओं में से क्षपक को विक्षेपणी कथा के अतिरिक्त शेष तीन कथाएँ सुनानी चाहिए।
क्षपक को विश्लेपणी कथा सुनाने का निषेध विक्षेपणी रतस्यास्य, जीवितं यदि गच्छति। तदानीमसमाधानमल्प-शास्त्रस्य जायते ।।६८८।। कध्या बहुश्रुतस्यापि, नासन्ने मरणे सति।
अनाचारं न कुर्वन्ति, महान्तो हि कदाचना ।।६८९॥ अर्थ - विक्षेपणी कथा की अनुरक्त दशा में यदि क्षपक की आयु समाप्त हो जाय तो अल्पज्ञानी क्षपक का असमाधिपूर्वक मरण होगा।।६८८॥
यदि क्षपक बहुश्रुत ज्ञानी है तो भी मरण निकट होने पर उसे विक्षेपणी कथा नहीं सुनानी चाहिए, क्योंकि महापुरुष कदाचित् भी अनाचार नहीं करते हैं ।।६८९ ।।
प्रश्न - अल्पज्ञानी और बहुज्ञानी दोनों को विक्षेपणी कथा सुनाने का निषेध क्यों किया गया है?
उत्तर - विक्षेपणी कथा में सर्व प्रथम मिथ्यादृष्टि का मत उपस्थित किया जाता है। अल्पज्ञानी क्षपक यदि उस पूर्वपक्ष को ही तत्त्व समझ बैठे तो मिथ्याश्रद्धान एवं मिथ्याज्ञान हो जाने से वह रत्नत्रय को छोड़ देगा जिससे उसकी असमाधि ही होगी। आगमज्ञानी क्षपक के लिए भी यह कथा अनायतन स्वरूप है अतः यह विक्षेप ही कराती है, समाधि में सहायक नहीं होती अत: बहुश्रुत क्षपक को भी यह कथा त्याज्य है, उसे भी नहीं सुनानी चाहिए।
क्षपक को सुनाने योग्य कथाएँ विक्षेपणी विमुच्यातः, समाधान-विधायिनः। कथयन्ति कथास्तिस्रो, निस्त्रिदण्ड-त्रिगौरवाः ॥६९०॥