________________
मरणकण्डिका - १५२
प्रश्न - पंचाचार किसे कहते हैं ?
उत्तर - पाँच प्रकार के स्वाध्याय में तत्पर रहना ज्ञानाचार है, जीवादि तत्त्वों के श्रद्धानरूप परिणत होना दर्शनाचार है। हिंसादि से निवृत्तिरूप परिणत होना चारित्राचार है, बारह प्रकार के तपों में परिणत रहना तपाचार है और तप में अपनी शक्ति न छिपाना वीर्याचार है।
अन्य प्रकार से आचारवत्त्व गुण का निर्देश दशधा स्थितिकल्पे वा, सुस्थितो गत-दूषणे।
आचारी कथ्यते युक्तः, सूरिरागम-मातृभिः ।।४३७ ॥ अर्थ - दोष रहित दश प्रकार के स्थितिकल्प में जो स्थित रहता है तथा तीन गुप्ति और पाँच समिति रूप अष्ट प्रवचन माता से युक्त होता है, वह आचार्य आचारवान् कहा जाता है ।।४३७ ।।
दश प्रकार के स्थितिकल्प अचेलकत्वमुद्दिष्ट-शय्येशाहार-वर्जने । राजपिण्ड-विवर्जित्वं, कृतिकर्म-प्रवर्तनम् ।।४३८॥ व्रतप्ररोहणाहत्त्वं, ज्येष्ठत्वं च प्रतिक्रमः।
मासैकत्र स्थितिः पर्या, स्थितिकल्पा दशेरिताः ।।४३९॥ अर्थ - अचेलकत्व, उद्दिष्टत्याग, शय्याधर आहारत्याग, राजपिंडत्याग, कृतिकर्मप्रवृत्त, व्रतारोपण अर्हत्व, ज्येष्ठत्व, प्रतिक्रम, मासैकवासिता और पर्या ये दश स्थिति कल्प हैं॥४३८-४३९॥
प्रश्न - इन दश कल्पों के क्या लक्षण हैं?
उत्तर - १. अचेलकत्व स्थिति कल्प - चेल नाम वस्त्र का है। वस्त्र का त्याग अचेलक है किन्तु यह उपलक्षण है क्योंकि सर्व परिग्रह के त्याग को ही अचेलक्य कहते हैं। सर्व परिग्रह का त्याग करनेवाले यति विरागभाव को प्राप्त हो जाने से उत्तम क्षमादि दश धर्मों के पालक होते हैं।
१. वस्त्रग्रहण महान् असंयम का कारण है अतः अचेलता में संयमशुद्धि नाम का गुण है।
२. विद्याहीन पुरुष सी से त्र्याप्त वन में जैसे अत्यन्त सावधानी पूर्वक रहता है, उसी प्रकार अचेलक यति इन्द्रियों को वश में रखने की पूर्ण सावधानी रखते हैं, अत: अचेलता में इन्द्रिय-विजेता नाम का गुण है।
३. वस्त्रग्रहण क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों कषायों की उत्पत्ति का कारण है, अत: अचेलता में कषायनिग्रह नाम का गुण है।
४. अचेल हो जाने पर स्वाध्याय और ध्यान में निर्विघ्नता रहती है। ५. अचेलता में परिग्रहत्याग नाम का महान् गुण है। ६. राग-द्वेष बाह्य द्रव्य के अवलम्बन से होते हैं, अतः अचेलता में राग-द्वेष का अभाव नाम का गुण