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प्रष्टवसु
अष्टाध्यायी राज्य के आठ अंग-ऋषि, वस्ति, दुर्ग, अष्टादशपुराण-संज्ञा, पु. यो. (सं०) सोना, हस्तिबंधन, खान, करग्रहण, और १८ पुराण-ब्राह्म, पद्म, विष्णु, शैव, भागसैन्य-संस्थापन, इनका समूह ।
वत, नारदीय, मार्कंडेय, श्राग्नेय, भविष्य, अष्टवसु-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) देशविशेष, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, बाराह, स्कंद, वामन, श्राप. ध्रुव, सोम, धव, अनिल, अनल, कौर्म, मात्स्य, गारुड़ और ब्रह्मांड । प्रत्यूष, प्रभास ।
अष्टादशविद्या-संज्ञा, स्त्री. यो० (सं० ) अष्टसिद्धि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) योग अठारह प्रकार की विद्यार्य-चार वेद, षडंग की पाठ सिद्धियाँ, यथा-अणिमा, महिमा, (६ वेदांग ) मीमांसा, न्याय, पुराण, लधिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद वशित्व।
और अर्थशास्त्र। " अष्टसिद्धि नव निधि के दाता"-तु. अष्टादशस्मृतिकार-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) पाठहु सिद्धि नवौ निधि को सुख"-रस०
अष्टादश स्मृतियों के बनाने वाले धर्मशास्त्रअष्टांग-संज्ञा, पु० यौ० ( स० ) योग की
कार विष्णु पराशर, दक्ष, संवर्त, व्यास, क्रिया के आठ भेद-यम, नियम, आसन,
हारीत. शातातप, वशिष्ट, यम, श्रापस्तम्ब प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और ।
गौतम, देवल, शंख, लिखित, भारद्वाज, समाधि । आयुर्वेद के आठ विभाग-शल्य, उशना, अत्रि, याज्ञवल्क, मनु । शालाक्य, कायचिकित्सा, भूत-विद्या, अष्टादशोपचार-संज्ञा, पु. यो. (सं० ) कौमारभृत्य, अगद-तंत्र, रसायनतंत्र, और
पूजा के अठारह-विधान, श्रासन, स्वागत, बाजीकरण । शरीर के आठ अंग-जानु,
पाद्य, अर्घा, पाचमन, स्नान, वस्त्र, उपवीत, पाँद, हाथ, उर, सिर वचन, दृष्टि और
भूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, अन्न, बुद्धि,जिन से प्रणाम करने का विधान है। ( नैवेद्य ) तर्पण, अनुलेपन. नमस्कार, अष्टांगप्रणाम--वि० (सं० ) पाठ अवयव विपर्जन । वाला, अठपहलू ( दे०)।
अष्टादशोपपुराण--संज्ञा, पु० या ० (सं० ) अष्टांगी-वि० (सं०) आठ अंगों या गौण, या साधारण पुराण । १ सनत्कुमार अवयवों वाला।
२ नारसिंह, ३ नारदीय, ४ शिव, ५ अष्टांगार्थ्य-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) अष्ठा- दुर्वासा, ६ कपिल, ७ मानव, ८ औशनस ६
य---पूजन को पाठ प्रकार की सामग्री वरुण १० कालिक, ११ शांब, १२ नन्दा, का समाहार।
१३ सौर १४ पराशर १५ श्रादित्य १६ अष्टाक्षर-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) पाठ माहेश्वर १७ भार्गव, १८ वशिष्ठ । अक्षरों का मंत्र विशेष।
अष्टादशधान्य-संज्ञा, पु. यो. (सं० ) वि० (सं०) आठ अक्षरों का।।
अठारह प्रकार के अन्न-यव (जौ ) गोधूम अष्टादश-वि० (सं० ) संख्या विशेष,
( गेहूँ) धान्य (धान) तिल, गंगु, अठारह । (दे० ) सं० अष्टादश, प्रा. कुलित्थ, माष ( मसूर ) मृद्ग (मूंग) अट्ठादह अ० अट्ठारह )-अष्टादशाह-- मसूर, नियाव, श्याम (सांवा ) सर्षप मृत्यु के बाद १८ वें दिन का कृत्य । { सरसों ) गवेधुक, नीवार, अरहर, तीना, अष्टादशांग-संज्ञा, पु. यो० : सं० ) अठा- चना, चीना। रह औषधियों के संयोग से बनी हुई अष्टाध्यायी-संज्ञा, स्त्री. यो. (सं० ) प्रोषधि विशेष ।
पाणिनि ऋषि-कृत व्याकरण, ( संस्कृत )
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