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सपक्ष
सन्नद्ध-वि० (सं०) तैयार, उद्यत, कटिबद्ध, या जुटना, कफ, बात, पित्त तीनों का एक बँधा, लगा, और जुड़ा हुया । संज्ञा, स्त्री. ही साथ बिगड़ जाना, त्रिदोष (वैद्य०), (सं०) सन्नद्धता।
सरसाम (फा०)। " उपजै सन्निपात दुखसन्नाटा---संज्ञा, पु० दे० (सं० शून्य ) नीर- दाई"- रामा० "सन्निपात जल्पसि दुर्वादा" वता, निस्तब्धता, निःशब्दता, निर्जनता, रामा०। यौ०–सन्निशत-ज्वर । एकांतता, सून्यता, निरालापन, स्तब्धता । सन्निविष्ट - वि० (सं०) एक ही साथ जमा मुहा०-सन्नाटे में आना--स्तब्ध रह या बैठा हुआ, धरा या रखा हुआ, प्रतिष्ठित, जाना और कुछ कहते-सुनते न बनना, चुप स्थापित, समीपवर्ती, पास या निकट का रह जाना। एक दम ख़ामोशी, चुप्पा, उदा. पैठा हुआ। सीनता, चहल-पहल का अभाव, गुलज़ार सन्निवेश--संज्ञा, पु. (सं०) स्थित होना, न रहना । मुहा-पन्नाटा स्वीं बना या __रखने, बैरने, बैठाने आदि की क्रिया, जमना, मारना-एक बारगी मौन हो जाना। उदापी, जड़ना, लगाना, समाना, रखना. धरना, उन्मनता । सन्नाटा छा जाना---गुलज़ार निवास, स्थान, घर, इकट्ठा होना, जुटना, न रहना, उदासी फैल जाना, रौनक मिट समाज, समूह, बनावट, गढ़न या गठन । जाना, चहल पहल न रह जाना सन्नाटे वि०-संनिवेशित, संनिवेशनीय । संज्ञा, में-अकेले, जन-शून्यता में, वेग से।। सन्निवेशन। वि० - स्तब्ध, नीरव, निर्जन, शून्य । संज्ञा, | सन्निहित--वि० (सं०) साथ या पास रखा पु० (अनु० सन २) सवेग वायु-प्रवाह का । हुआ, समीपस्थ, निकटस्थ, ठहराया या शब्द, हवा को चीर कर तेज़ी से निकल । टिकाया हुआ, अंतर्गत । 'नित्यं सन्निहितो जाने का शब्द । मुहा०-सन्नाटे से जाना- हरिः"--भा० द० । वेग से चलना।
सन्माग--- संज्ञा, पु० (सं०) सत्पथ, श्रेष्ठ मार्ग। सन्नाह संज्ञा, पु० (सं०) कवच. जिरह बख़्तर, विलो०-कुमार्ग । वि०-सन्मार्गी। लोहे का अँगरखा, सनाह (दे०)
सन्मान-संज्ञा, पु० (सं०) सम्मान, श्रादरमन्निकट---श्रव्य, (सं०) समीप, पाम, सत्कार । स० क्रि० (दे०) सन्मानना। निकट, अति समीप । संज्ञा, स्त्री. (सं.) वि० सम्माननीय, सन्मानित । सन्निकटता।
सन्मुख-अव्य० (सं०) सम्मुख, सामने । सन्त्रिकर्ष--संज्ञा, पु. (सं०) नाता, लगाव, सन्यास-संज्ञा, पु० सं० संन्यास) भव-जाल रिश्ता, संबंध, समीपता, निकटता। वि० के छोड़ने या संसार से अलग होने की सनिकृष्ट।
अवस्था, त्याग, वैराग्य, यति-धर्म, चौथा सन्निधान-संज्ञा, पु० (सं०) सामीप्य, समी- श्राश्रम । यौ० ---सन्यास-धर्म । “जैसे विन पता, निकटता, स्थापित करना।
विराग सन्याला"-रामा० ।। सन्निधि-संज्ञा, स्त्री. (सं०) संहिता, निक- सन्यासी--संज्ञा, पु० (सं० संन्यासिन् ) त्यागी, टता, समीपता, पड़ोस । “कृत्स्ना च भूर्भ- विरागी, जिसने सन्यास ले लिया हो, वति सन्निधि रतापूर्णा-भ० श० । संज्ञा, | चौथे पाश्रम वाला । स्त्री०-सन्यासिनी, पु० (सं०) सान्निध्य ।
सन्यासिन । “मूड़ मुड़ाय होहिं सन्यासी" सन्निपात-~संज्ञा, पु. (सं०) एक ही साथ -रामा०। गिरना या पड़ना, संयोग, समाहार, मिलाप, सपक्ष-वि० (सं०) तरफ़दार, जो अपने पक्ष मेल, एकत्र या इकट्ठा होना, एक में जुड़ना, में हो, पोषक, समर्थक, सपच्छ (दे०)।
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