________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सिंदूर
सिंधुमुत सिंदूर · संज्ञा, पु० (सं०) इंगुर से बना मधवा समुद्र, सिंध देश, चार और सात की स्त्रियों के माँग और माथे पर लगाने का | संख्या एक राग (संगी०)। एक विख्यात लाल चूर्ण ।
| सिंधज----संज्ञा, पु. (सं०) सेंधा नमक, सिंदूर-दान--संज्ञा, पु० यौ० (सं० सिंदूर - सिध देश का घोड़ा, चंद्रमा, विषादि
दान--प्रत्य० ) वर का कन्या की माँग में १४ रन मोती।। सिंदूर देना । संज्ञा, पु. यौ० सं० सिंदूर - सिंधुजा संज्ञा, सो. (सं०) लघमी । दान -- फ़ा०-प्रत्य० ) सिदूर रखने का पात्र । मिधुजात-संज्ञा, पु० (सं०) चंद्रमा । स्खो. अल्या. रानी।
सिंधु तनय -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा । दिर-पप्पी संज्ञा, खो. यो. (सं.) वीर सिंधु नया - संज्ञा, स्त्री० (सं०) लचमो। पुष्पी. एक पौधा और उसके लाल फूल ।।
"सिंधु के सपूत सुत सिंधुतनया के वंधु" सिंदूर-बंदन--संज्ञा, पु. (सं०) वर का
- पद्मा० । कन्या की मांग में सिंदूर देना, सिंदूर
सिंधुपुत्र -संज्ञा, १० यौ० (सं०) सिंधुप्त दान ।
(दे०) चंद्रमा, विष मोती। सिंदरया - वि० दे० (सं० सिंदूर + इया
सिंधुपाता--संज्ञा, स्रो० यौ० (सं. सिंधुमातृ)
समुद्र की माता सरस्वती। हि. --प्रत्य० ) सिंदूर के रंग का, बहुत
सिंधुर-संज्ञा, पु० सं०) हाथी, हस्ती, लाल । " शोख यह सिंदूरिया का रंग है"
पाठ की सख्या : की. सिंधुग । " सिद्धि-ग़ालि० । एक लाल श्राम ।
सदन सिंधुर-बदन, एक रदन गनराय'"सिंदी वि० दे० (सं० सिंदूर + ई - प्रत्य०) रसाल। सिंदूर के रंग का, अति लाल ।
सिंधुर गति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सिंदारा, सिंदौरा - संज्ञा, पु. दे. (सं० गजगति. हाथी की मी मंद मतवाली चाल । सिंदूर । सिदूर रखने का पत्र, सिंधौरा सिंधरगामिनी-वि० स्त्री० यौ० (सं०) (ग्रा०)।
गजगामिनी, हाथी की सी चाल चलने सिंध-संज्ञा, पु० दे० ( सं० सिंधु ) भारत वाली : पु०-सिधुरगामी।।
का एक पश्चिमीय प्रदेश (बंबई प्रान्त)। सिधर-मरण ----सज्ञा, पु० यौ० (सं०) संज्ञा, स्त्री० (दे०)-पंजाब की सबसे बड़ी! गजमुक्ता गजमोती । "सिंधुरमणि कंठा नदी, भैरव राग की एक रागिनी।
कलित, उर तुलसी की माल' -रामा०। सिंधव-संज्ञा, पु० दे० ( सं० सैंधव ) सैंधव सिंधुरमुक्ता-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गन
या सेंधा नमक, सिंध देश का घोड़ा, मुत्ता, गजमोती। सिंध देश का निवासी।
सिधुर-मदन-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सिंधो-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि सिंध+ ई- गणेशजी, सिंधुरानन । “एक दंत सिंधुर प्रत्य० ) सिंध देश की भाषा । संज्ञा, पु० | वदन, चार भुजा शुभ वेश"--स्फु० । (हि० सिंध देश का निवापी, सिंध का सिंधुरानन संज्ञा, पु. यौ० (सं०) गणेश । घोड़ा। वि० (हि.)-सिंध देश का, सिध. सिंधुविप-संज्ञा, पु० यो० (सं०) महा विष, सम्बन्धी।
हलाहल, समुद्र का विष । “पान कियो सिंधु-संज्ञा, पु० (सं०) पंजाब के पश्चिम हर सिधु-विष, राम नाम वल पाय"भाग की एक बड़ी नदी । “ गंगा-सिंधु स्फु० ।। सरस्वती ध यमुना'.--स्फुट० । सागर, सिंधुसुत-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सागर
For Private and Personal Use Only