Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1858
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्वर्ग-पुरी स्वर्ग-पुरी-संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) स्वर्गनगरी, अमरावती, श्रमरपुरी । पु० यौ० - स्वर्ग पुर. देव-पुर। स्वर्ग लोक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देवलोक, देव-पुरी, वैकुंठ । स्त्री० यौ० 'स्वर्ग बंधू 66 १८४७ स्वर्ग-बध, स्वर्ग-धूटी - संज्ञा, 9) रामा० । (सं०) अप्सरा, देव-बधुरी | raft करि गाना स्वर्ग -वाणी- एंज्ञा, पु० यौ० (सं०) गगनगिरा, आकाश-वाणी । स्वर्गवास - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देव-लोक जाना, मरना । स्वर्ग घासी–वि० ( सं० स्वर्गवासिन् ) स्वर्ग में रहने वाला, मरा हुआ, मृत, स्वर्गीय । स्त्री० - स्वर्गवासिनी । स्वर्गारोहण1 - सज्ञा, ५० यौ० (सं०) स्वर्ग गमन, स्वर्ग का जाना या सिधारना, मरना । स्वर्गीय - वि० (सं०) स्वर्ग का या स्वर्गसंबंधी, जो मर गया हो, मृत। स्त्री०स्वर्गीया। स्वर्ण - संज्ञा, पु० (सं०) सोना, हेम, हिरण्य, कंचन, कनक, सुवर्ण धतूरा, स्वनं, सुबरन, सुवर्ण, सुवन (दे०)। स्वर्ण कमल - ज्ञा, पु० यौ० (सं०) कनक, कमल, रक्त या लाल कमल । स्वर्णकार -- संज्ञा, पु० (सं०) सुनार । स्वर्ण- गिरि - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु पहा, स्वर्णाचल, हेमाद्रि, स्वर्णादि । स्वर्ण-पर्पटी - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) संग्रहणी रोग नाशक एक औषधि विशेष । स्वणमय - वि० पु० (स० ) जो सर्वथा सोने का हो, हिरण्यमय । स्त्री० - स्वर्णमयी । स्वर्णमाक्षिक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सोना मक्खी, सोनामाखी । स्वर्णमुद्रा - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) अशरफी | स्वर्ण यूथिका-संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) पीली जूती । स्वस्तिक स्वर्गाचिल - सज्ञा, पु० यौ० (सं०) कनका चल. सुमेरु पर्वत स्वर्णादिइ - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु, कंचनाचल, हेमाद्रि । स्वर्धुनी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) गंगा नदी, सुरधुनी (दे०) स्वर्नगरी - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) श्रमरावती । उ० – स्वर्नगर - श्रमरपुर । स्वनंदी - - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) स्वर्गगा । स्वभिषग् - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) देव-वैद्य अश्विनी कुमार स्वर्लोक --- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वर्ग. वैकुंठ' स्वर्वधू. स्वर्वधूटी - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) देव-बटी, अप्सरा, स्वर्गीगना । स्वर्वेश्या - संज्ञा, स्त्रो० स्वर्वरांगना, स्वर्गगना । सर्वैद्य - सज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अश्विनी - स्वचिकित्सक | सं०) अप्सरा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only i कुमार. स्वल्प वि० (सं० ) अत्यंत थोड़ा । स्वचरन* - - संज्ञा, पु० दे० ( सं० सुवर्ण ) स्वर्ण, सुवर्ण, सोना, सुवरन, सुधर्न । स्वशुर, स्वपुर - संज्ञा, पु० दे० (सं० श्वशुर) पति या पत्नी के पिता, ससुर (दे० ) । स्वशुराल. स्वसुराल - संज्ञा, पु० यौ० (सं० श्वशुरालय) ससुराल, ससुरार (दे० ) । स्वसा - संज्ञ, स्त्री० (सं० स्वसृ ) बहिन | “ करयुगं हसतिस्म दमस्वसुः - नैष० 'दमस्वसा कहती नल सों वहाँ " स्वस्ति " । 46 - कुं० । ( - श्रश्य० (सं०) कल्याण या मंगल हो ( आशीष ) | संज्ञा, त्रो०- कल्याण, मंगल, ब्रह्मा की ३ स्त्रियों में से एक स्त्री, सुख | "स्वस्ति नः इन्द्रो वृद्धश्रवा " - यजु० । स्वस्तिक ज्ञा, पु० (सं०) हठ योग का एक आसन, एक शुभचिन्ह. ऐपन- चिन्ह, पानी में पिसे चावलों के चूर्ण से बनाया गया एक मांगलिक द्रव्य जिसमें देव वास मानते हैं । प्राचीन काल में शुभावसरों पर शुभ वस्तुओं से बनाने का एक मांगलिक चिन्ह ।

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