Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

Previous | Next

Page 1866
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - हँसी TWEAR Cer 66 -रामा० । हँसी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० हँसना ) हँसने की क्रिया या भाव, हास, निंदा, बदनामी । 'हॅपी करैहों पर पुर जाई - यौ० - हंसी खुशी - राजी खुशी, प्रसन्नता । हँसी-खेल - - तमाशा, साधारण वा कम काम | हँसी मजाक, दिल्लगी, धानंद, विनोद क्रीड़ा, विनोद श्रौ पुराण हँसीठट्टा में उड़ाय देत" स्फु० "हँसी दिल्लगी- उपहास, विनोद, मजाक । हँसी मजाक- उपहास, दिल्लगी- विनोद। मुहा०(किसी पर या किसी बात पर ) हंसी आना मूर्खता पूर्ण तथा कौतुक या हास, समझना, बच्चों का खेल या मजाक सा ज्ञात होना। मुहा०-हँसी छूटना - हँसी श्राना. कौतुक या विनोद सा सरज और सुनने में प्रिय लगना, मूर्खता जान पड़ना । विनोद, दिल्लगी यौ० हँसी-खेलविनोद, कौतुक, दिल्लगी, सहज या साधारण बात। मुहा०-हमी सम्झना या हँसी खेल समझना श्रासान, सरल या साधारण बात समझना । हँसी में उड़ाना ( टालना ) - साधारण कौतुक या विनोद समझ टालना परिहास की बात कह कर टाल देना । हँसी में कहना - मजाक या विनोदार्थ कहना हँसी करना (कराना) 1 www.kobatirth.org " कथा १८५५ - उपहास या निंदा करना ( कराना ) हँसी में लेना या ले जाना - किसी बात को मजाक समझना, लोक-निंदा, अनादर उपहास । यनादर-सूचक हंसी हंसी में टालना - साधारण तथा मजाक के रूप में लेना, विनोदार्थ समझ टाल देना । मुहा०-हँसी उड़ाना - उपहास करना, व्यंग पूर्वक निंदा करना । - हँसुवा - संज्ञा, पु० दे० ( हि० हँसिया ) हसिया, दाँती । हँसली - संज्ञा, स्त्री० (दे०) हँसली, हँसुली (दे०) । हँसोड़, हँसार - वि० दे० ( हि० हँसना + Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हकला प्रोड़ - प्रत्य० ) मज़ाकिया, दिल्लगीबाज़, ख़रा, हँसी-ठट्ठा करने वाला, विनोदप्रिय विनोदी | हँसो हाँ* - वि० दे० ( हि० हँसना ) कुछ हँसी-युक्त हँसने का स्वभाव रखने वाला, दिल्लगी या मज़ाक से भरा, ईषद् हास युक्त | स्रो० मही । हइ - ज्ञा १० (दे० ) इय, घोड़ा । हुई - संज्ञा, पु० दे० (सं० दयन् ) अश्वारोही; घोड़े का सवार संज्ञा, स्त्रो० ( हि० ६ ) आश्चर्य अ० क्रि० ( अव०) हूँ यही (ग्रा० ) । ॐ * - अ० क्रि० सर्व० ( हि० हौं ) मैं, हौं । हो - अव्य० ( ग्रा० ) हाँ, स्वीकार सूचक अव्यय । हरू - वि० ( ० ) सत्य, सच, उपयुक्त, उचित, ठीक, न्याय्य | संज्ञा, पु० - किसी वस्तु को काम में लाने या रखने या लेने का अधिकार स्वत्व, कोई काम करने या कराने का इख़्तियार हक्क (ग्रा० ) । मुहा०-हक़ में विषय में, पक्ष में, कर्त्तव्य, धर्म, फ़र्ज़ । मुहा०-हक़ प्रदा या पूरा करनाकर्त्तव्य पालन करना | पाने, रखने या काम में लाने का, न्याय से जिस पर अधिकार हो वह वस्तु निश्चित रीति से मिलने वाला धन, दस्तूरी, उचित पक्ष या बात, न्याय पत्र । मुहा०-हक़ पर होना ( रहना ) -- ठीक बात की हठ या आग्रह ख़ुदा परमेश्वर (मुस० ) । करना, हक़दार -- संज्ञा, पु० ( अ० हक़ + दार फ़ा० ) अधिकार या स्वत्व रखने वाला | संज्ञा, स्त्री० हकदारी | हक़ नाहक - अव्य० यौ० ( अनु० - फा० ) वलात् धींगा-धींगी, जबरदस्ती, अकारण, निष्प्रयोजन, फ़जूल, व्यर्थ । हकबकाना - अ० क्रि० दे० (अनु० इकावका ) घबरा जाना हक्का-बक्का हो जाना, भौचक 1 रह जाना । हकला - वे० दे० ( हि० हकलाना ) हकलाने या रुक रुक कर बोलने वाला । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 1864 1865 1866 1867 1868 1869 1870 1871 1872 1873 1874 1875 1876 1877 1878 1879 1880 1881 1882 1883 1884 1885 1886 1887 1888 1889 1890 1891 1892 1893 1894 1895 1896 1897 1898 1899 1900 1901 1902 1903 1904 1905 1906 1907 1908 1909 1910 1911 1912 1913 1914 1915 1916 1917 1918 1919 1920 1921