Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1912
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेरंब अभिप्राय, उत्पन्न करने वाला, तर्क, दलील, लंकार (के०), उपमा का वह रूप जिसमें दूसरी बात के सिद्ध करने वाली बात, कारण भी दिया हो। मित्र, हितू. हित, मेल । हत्वपगुति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) हेति-संज्ञा, स्त्री० (२०) अग्नि की लपट, अपहति अलंकार का वह भेद जिपमें प्रकृत भाला, चोट ! के निषेध का कुछ कारण भी कहा गया हो हेती-संज्ञा, पु० दे० (सं० हेतु) प्रेमी, संबंधी, (श्र० पी०) नातेदार, हितेच्छु, हितू, मेली। यौ० - हेत्वाभास-संज्ञा, पु० य (सं०) किसी हती-व्यवहारी। पक्ष के सिद्ध करने को ऐका कारण ला हेतु-संज्ञा, पु० (सं०) उद्देश्य, वह बात जिसे रखना जो कारण सा तो प्रतीत हो पर ध्यान में रख कर अन्ध बात की जाये, वस्तुतः ठीक कारण न हो, असत् हेतु अभिप्राय, कारण, सबब, वजह, उत्पादक, (न्याय०) या कारक विषय, उत्पन्न करने वाला (वस्तु डेमंत--संज्ञा, पु. ( सं० ) शीन काल, ६ या व्यक्ति), दलील, तर्क वह बात जिससे ऋतुनों में से एक ऋतु जो अंगहन-पून मास दूसरी बात सिद्ध हो, साध्य का साधक में मानी जाती है। " ग्रीषम वर्षा शरद विषय, एक अर्थालंकार जिसमें कारण ही हेमन्त"। को काय कह दिया जाता है (काव्य०)। वि० (३०) संप्रदान कारक का चिन्ह, लिये, हेम--संज्ञा, पु. ( सं० हेमन् ) पाला, हिम, वास्ते, हित, अर्थ, काज, हेतू (दे०)। बर्फ, सोना, कंचन, स्वर्ण । " हिम बबर " तुमरेहि हेतु राम वन जाही"---रामा । मरकत घवर लसत पाटमय डोर-रामा० । सज्ञा, पु० सं० हित, प्रेम-सम्बन्ध, प्रीति, कृष्ण कपोटी पै परख, प्रभ हेम खुलि लगाव, अनुराग, मेल, मित्रता । जाय"--रसाल। हेतुवाद ---सज्ञा, पु० यौ० (सं०) कारणवाद. | हेपकर -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हिमालय के तर्क विद्या, कुतकं, नास्तिकता, कारण कार्य ऊपर की एक चोटी, हिमाद्रि से उत्तर का सम्बन्धी सिद्धान्त । वि० -तुवादी। एक पर्वत पुरा०) हेमाद्रि, सुमेह । हेतुशास्त्र--सज्ञा, पु० यौ० (सं० तर्क-शास्त्र. हेमगिरि - संज्ञा, पु० यौ० (सं०)सुमेरु पहाड़। न्याय-शास्त्र। हेमचन्द्र-संज्ञा, पु. ( सं० ) गुजरात-नरेश हेतुतुबद्भाव-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कार्य- कुमारपाल के गुरु एक जैनाचार्य ( सन् कारण भाव, कार्य और कारण का अन्योन्य १०८६ -- ११७३ के बीच में थे) इन्होंने व्याकरण और कोश की कई पुस्तकें सम्बन्ध । हेतु हेतुमद्भ तकाल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लिखी हैं। क्रिया के भूतकाल का वह भेद जिसमें हेमपर्वत-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु पहाड़। ऐसी दो क्रियायें हों कि एक का होना अन्य हेमाद्रि--- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु पहाड़, के होने पर निर्भर हो या ऐमी दो बातों एक प्रसिद्ध ग्रंथकार (ई० १३वीं शताब्दी)। का न होना सूचित हो जिनमें दूसरी प्रथम हमाचल - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु पर्वत। पर निर्भर हो (ज्या०) हेय---वि० सं०, त्यागने या छोड़ने योग्य, हेतू - विभ० (३० हेतु. वास्ते । संज्ञा, पु० त्याज्य. निकृष्ट. रा. तुच्छ, नीच, गोच, (दे०) हितू , हेती। निंद्य । “हेयम् दुःख-मनागतम्''-सांख्य । हेतृपमा-संज्ञा, खी० यौ० (सं०) उत्प्रेक्षा- हेरंब-संज्ञा, पु. (सं०) गणेश जी, हेरम्ब । For Private and Personal Use Only

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