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हेरंब अभिप्राय, उत्पन्न करने वाला, तर्क, दलील, लंकार (के०), उपमा का वह रूप जिसमें दूसरी बात के सिद्ध करने वाली बात, कारण भी दिया हो। मित्र, हितू. हित, मेल ।
हत्वपगुति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) हेति-संज्ञा, स्त्री० (२०) अग्नि की लपट, अपहति अलंकार का वह भेद जिपमें प्रकृत भाला, चोट !
के निषेध का कुछ कारण भी कहा गया हो हेती-संज्ञा, पु० दे० (सं० हेतु) प्रेमी, संबंधी, (श्र० पी०) नातेदार, हितेच्छु, हितू, मेली। यौ० - हेत्वाभास-संज्ञा, पु० य (सं०) किसी हती-व्यवहारी।
पक्ष के सिद्ध करने को ऐका कारण ला हेतु-संज्ञा, पु० (सं०) उद्देश्य, वह बात जिसे
रखना जो कारण सा तो प्रतीत हो पर ध्यान में रख कर अन्ध बात की जाये, वस्तुतः ठीक कारण न हो, असत् हेतु अभिप्राय, कारण, सबब, वजह, उत्पादक, (न्याय०) या कारक विषय, उत्पन्न करने वाला (वस्तु
डेमंत--संज्ञा, पु. ( सं० ) शीन काल, ६ या व्यक्ति), दलील, तर्क वह बात जिससे
ऋतुनों में से एक ऋतु जो अंगहन-पून मास दूसरी बात सिद्ध हो, साध्य का साधक
में मानी जाती है। " ग्रीषम वर्षा शरद विषय, एक अर्थालंकार जिसमें कारण ही
हेमन्त"। को काय कह दिया जाता है (काव्य०)। वि० (३०) संप्रदान कारक का चिन्ह, लिये,
हेम--संज्ञा, पु. ( सं० हेमन् ) पाला, हिम, वास्ते, हित, अर्थ, काज, हेतू (दे०)।
बर्फ, सोना, कंचन, स्वर्ण । " हिम बबर " तुमरेहि हेतु राम वन जाही"---रामा ।
मरकत घवर लसत पाटमय डोर-रामा० । सज्ञा, पु० सं० हित, प्रेम-सम्बन्ध, प्रीति,
कृष्ण कपोटी पै परख, प्रभ हेम खुलि लगाव, अनुराग, मेल, मित्रता ।
जाय"--रसाल। हेतुवाद ---सज्ञा, पु० यौ० (सं०) कारणवाद.
| हेपकर -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हिमालय के तर्क विद्या, कुतकं, नास्तिकता, कारण कार्य
ऊपर की एक चोटी, हिमाद्रि से उत्तर का सम्बन्धी सिद्धान्त । वि० -तुवादी।
एक पर्वत पुरा०) हेमाद्रि, सुमेह । हेतुशास्त्र--सज्ञा, पु० यौ० (सं० तर्क-शास्त्र.
हेमगिरि - संज्ञा, पु० यौ० (सं०)सुमेरु पहाड़। न्याय-शास्त्र।
हेमचन्द्र-संज्ञा, पु. ( सं० ) गुजरात-नरेश हेतुतुबद्भाव-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कार्य- कुमारपाल के गुरु एक जैनाचार्य ( सन् कारण भाव, कार्य और कारण का अन्योन्य
१०८६ -- ११७३ के बीच में थे) इन्होंने
व्याकरण और कोश की कई पुस्तकें सम्बन्ध । हेतु हेतुमद्भ तकाल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लिखी हैं। क्रिया के भूतकाल का वह भेद जिसमें हेमपर्वत-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु पहाड़। ऐसी दो क्रियायें हों कि एक का होना अन्य हेमाद्रि--- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु पहाड़, के होने पर निर्भर हो या ऐमी दो बातों एक प्रसिद्ध ग्रंथकार (ई० १३वीं शताब्दी)। का न होना सूचित हो जिनमें दूसरी प्रथम हमाचल - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सुमेरु पर्वत। पर निर्भर हो (ज्या०)
हेय---वि० सं०, त्यागने या छोड़ने योग्य, हेतू - विभ० (३० हेतु. वास्ते । संज्ञा, पु० त्याज्य. निकृष्ट. रा. तुच्छ, नीच, गोच, (दे०) हितू , हेती।
निंद्य । “हेयम् दुःख-मनागतम्''-सांख्य । हेतृपमा-संज्ञा, खी० यौ० (सं०) उत्प्रेक्षा- हेरंब-संज्ञा, पु. (सं०) गणेश जी, हेरम्ब ।
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