Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1911
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हत - - हृदयनिकेत १६०० मन को मोहित करने वाला, हृदय हरने हृषीकेश -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विष्णु, वाला । स्त्री०-हृदयग्राहिणी। ईश्वर, श्रीकृष्ण जी, पूस का महीना, इदियहृदयनिकेत-संज्ञा, पुन्यौ० (सं०) कामदेव ।। पति । हृदयविदारकवि• यौ० ( सं० ) अति हग वि० (सं०) अत्यन्त प्रपन. प्रति दया, शोक या करुणा उत्पन्न करने वाजा। हर्षित। हृदयवेधी-वि० यौ० (सं० हृदयवेधिन् ) हप-पुष्ट-वि० यौ० ( सं० ) दृधा-कट्टा, मन मोहित करने वाला, अति शोकप्रद, मोटा-ताजा, तगड़ा। प्रति कटु, हृदय को वेधने वाला। स्त्री० हह-संज्ञा, पु० (अनु०) धीरे से हमने या हृदयवेधिनी गिड़गिड़ाने का शब्द । गुहार--हे हैं हृदयस्पर्शी-वि० यौ० ( सं० हृदयस्पर्शिन् ) करना-अनुनय-विनय करना। हृदय पर प्रभाव डालने वाला। स्त्री० हंगा-हैंगा- संज्ञा, पु० दे० ( सं० अभ्यंग ) हृदयाशिनी। जुते हुए खेत की मिट्टी बराबर करने का हृदयस्पंदन-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) हृदय | पहा, एहटा (प्रान्ती०)। का स्वास के कारण काँपना, हृदय की गतिः । हे-अव्य० (सं० ) संबोधन शब्द, रे, अरे । हृदयहारी-वि० (सं० हृदयहारिन् ) मन "हे कदम्ब हे अम्ब निम्ब हे जम्ब सुहावन" को लुभाने या मोहित करने वाला, -स्फु० । अ० कि० (बज०) हो (था) का हियहारी (दे०) । स्त्री०-हृदय-हारिणी। बहुवचन, थे। हृदया-संज्ञा, पु० दे० ( सं० हृदय) हिरदा, हेकड़-वि० दे० यौ० (हि. हिया -- कड़ा) (दे०), मन, दिल, कलेजा, छाती, वक्षस्थल । कड़े दिल का, साहसी, हिम्मतवर, हृष्टपुष्ट, "जाकी जिभिया बन्द नहि, हृदया नाही मोटा-ताज़ा, प्रबल, बली, जबरदस्त, प्रचंड, साँच " ----कबीर० । उजड्डु, अक्खड़, उइंड । हृदयाकर्षक-वि० यौ० (सं०) चित्ताकर्षक, हेकडी- संज्ञा, स्त्री० ( हि० हेकड़ ) उग्रता, मनोरम । संज्ञा, पु०-हृदयाकर्षण । स्त्री०- प्रचंडता, ज़बरदस्ती, दृढ़ता. साहस, हृदयाकर्षिका, हृदयाकर्षिणी। वलात्कार, अक्खड़पन, उजडता, बहादुरी। हृदयेश-हृदयेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) हेच-वि० (फा० ) तुच्छ, नाचीज़ पोच, प्रियतम, प्यारा, स्वामी, पति । स्त्री०- निःसार, नीच । संज्ञा, स्त्री०-हुंची। हृदयेशा, हृदयेश्वरी।। हेट, हेठ-क्रि० वि० (दे०) नीचे, तले । “हेठ हृदि -क्रि० वि० (सं०) हृदय में। दाधि कपि-भालु निशाचर" - रामा० । हृदगत--वि• यौ० (सं०) मानसिक, प्रांतरिक, हेठा--वि० दे० (हि. हेठ =नीचे ) तुच्छ, भीतरी, मन में बैठा या समाया हुआ, हृदय नीचा, कम, घटकर, नीच, हेय । ज्ञा, स्त्री. में जमा हुआ, हृदय का, रुचिकर, भिय, -हंठाई। रोचक । स्त्री० -हृदुगता। इंदापन ---संज्ञा, पु. (हि. हेठा - पनहृद्य-वि० (सं०) भौतरिक, दिल का, प्रत्य. ) क्षुद्रता, नीचता, तुच्छता । भीतरी, सुन्दर, अच्छा लगने या लुभाने हेठो, हेटी-संज्ञा, स्रो० (हि० हेठा) अपमान, वाला, सुहावना, स्वादिष्ट, हृदय में पैठा। मान-हानि, तौहीन, अप्रतिष्ठा मान-मर्यादा हुआ, रुचिका, रोचक, हृदय का लुभावना। में न्यूनता या कमी, नाकदरो, अनादर। हपि --संज्ञा, स्त्री० (सं०) प्रानन्द, हर्ष । हेत--- संज्ञा, पु० दे० (सं० हेतु हेतु, कारण, हृषीकि- संज्ञा, पु. (सं०) इन्द्रिय। सबब, वजह, लिये, वास्ते, उद्देश्य, For Private and Personal Use Only

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