Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1910
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हटना १८६६ हृदयग्राही (दे०) दुखाना । "कूकन लागी न कोइलिया हुलने का भाव या क्रिया संज्ञा, स्त्री० (दे०) वा बियागिनि को हिये इकन लागी"। कपक, पीड़ा, शूल, हर्ष-तरंग. कोलाहल । हटना--अ० कि० दे० ( सं० हुइ --चलना ) हाश, हस-वि० (हि० हूड़) अशिष्ट, जगली, टलना, हटना, फिरना मुड़ना, पीठ फेरना।। अनभ्य, बेहूदा, उजड्डु गँवार । १० रूप-हुटाना। हह --संज्ञा, स्त्री० अनु०) कोलहल, गरज, हठा--संज्ञा, पु० दे० सं० अगुष्ट ) गँवारू हुकार, रण नाद, हू-हल्ला । " कपि-दल या भद्दी चेष्टा, अँगूठा दिवाने की प्रशिष्ट चला करत अति हूहा"----रामा० । मुद्रा, टेंगा, 3गा (प्रान्ती.)। मुहा- हहू -- संज्ञा, पु. (सं०) गंधर्व । संज्ञा, पु. हटा देना(दिखाना-टेंगा देना दिखाना), अनु०) अग्नि के जलने का धाँय-धाय हाथ मटकाना (अशिष्टता-सूचक) शब्द, हव्वा (कल्पित दैत्य या प्रेत । हुड- वि० (दे०) लापरवाह, उजड्ड : हा-वि० (सं०) हरण किया या लिया हुश्रा, हा -- संज्ञा,पु० (दे०) हैण, एक मंगोल जाति चुराया या छीना हुधा पहुँचाया हुआ। की शाखा जो प्रवल हो धावा करती हुई हरि--संज्ञा, स्त्री० (सं०) हरण, नाश, लूट, थोरूप और एशिया के सभ्य देशों में फैली ले जाना । थो (इति०) । हृत् --संज्ञा, पु० (सं०) हृदय । यो०-हृदयाम। हुदा--संज्ञा. पु. ( अ० ) योग्य, लायक । हृत्कए- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हृदय का बिलो. बेहूदा । संज्ञा, पु० (दे०) धक्का, कंपन. हृदय-स्पंदन, अति भय, अति भोति। शूल, पीड़ा हृता पज्ञा, मुं० यौ० (सं०) हृदयोलाय. हबहू--वि० (अ०) ठोक ठीक वैसा ही, ज्यों मन की मौज। का त्यों, सर्वथा समान । हृत्पटल-संज्ञा, पु. यो. (सं०) हृदय-पटल। हर-संज्ञा, स्त्री. (अ०) स्वर्ग की अप्सरा हृत्पिड संज्ञा, पु. यौ० (सं०) हृदय, (मुस०) । “ मुझे तो हूर बेहश्ती की भी कलेजा, दिल। परवाह नहीं"-स्फु०। हृद-संज्ञा, पु० (सं०) हृदय, दिल, कलेजा ! हल-संज्ञा, सी० दे० (सं० शूल ) भाला, हृदधाम --संज्ञा, पु. यौ० (सं०) हृदय । लाठी, दंडा या छड़ी आदि की नोक को हृदयंगम-वि• यौ० (सं०) समझ में पाया जोर से भोंकना या उससे ठेलना. शूल, हुआ, मन या चित्त में बैठा हुआ, हृदय में हूक, पीड़ा । संज्ञा, स्त्री० (अनु०) हल्ला. समाया हुआ। शोर-गुल, कोलाहल, हर्प-ध्वनि, धूम, हृदय-संज्ञा, पु. (सं.) कलेजा, दिल, ललकार, श्रानंद, हर्ष, खुशी। " हूलहूले छाती, वक्षस्थल, छाती के वाम भाग में से हिये मैं हाय"-उ० श० । भीतर का मांस-कोश जिसमें से होकर शुद्ध हूलना-हरना-स० कि० दे० ( हि० हल + रक्त नाड़ियों के द्वारा सारी देह में सञ्चार ना-प्रत्य०) भाला था लाठी भादि की नोक करता है, हर्ष, प्रेम, शोक, क्रोध करुणादिभोंक देना या घुसेड़ना या उससे किसी को मनोविकारों का स्थान, मन, चित्त, हिरदा, ठेलना, घुसाना, गढ़ाना, पीड़ा या शूल पैदा हिरदै. हिय. हीय (दे०) । मुहा० - हृदय करना । " नहि यह उक्त मृदुल श्रीमुख की विदीर्ण होना बड़ा भारी शोक होना। जो तुम उर मैं हुलहु".-भ्र०। अंतरात्मा, अंत करण, बुद्धि. विवेक । हूला-हल-संज्ञा, पु० दे० (हि. हूलना) हृदयग्राही.. संज्ञा, पु. यौ० (सं० हृदयग्राहिन्) For Private and Personal Use Only

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