Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1882
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हरे, हरे, हरें १८७१ हल मन्द मन्द, हड़, हरड़ । | " हरे, हरे, हरें - क्रि० वि० दे० ( हि० हरुए ) | धर्म - पंज्ञा, स्त्री० (दे० ) हरीतकी (सं०), धीरे या रसे रसे धीमा, कोमल (शब्द), नम्र, हलका (स्पर्शाधाता ) (दे० ) | संज्ञा, पु० (सं० हरि का संबो० ) हे भगवान् हरे दयालो नः पाहि " - सि० कौ० । " बातें बानाय मनाय के लाल हँसाय कै बाल हरें मुख चुम्यो " - भावि० । “सपने में से बिरे हरि हरि हरें ई हरें हरिनी-हग रो' "-- भावि० । हरेव -संज्ञा, पु० (दे०) मंगोल नाति, मंगोलों का देश, मंगोलिया । यौ० - हर जैवा । - हरेवा – संज्ञा, पु० दे० ( हि० हरा ) हरी | बुलबुल हरे रंग का एक छोटा पती । हरें, हरें - क्रि० वि० दे० (हि० महए) धीरे धीरें, रसे रसे, हरे । हरें, हरें – क्रि० वि० (दे०) धीरे धीरे । हरैया * - संज्ञा, पु० दे० ( हि० हरना) हरने वाला या दूर करने वाला, मिटाने वाला, चोर, हारने वाला । हरौल संज्ञा, पु० दे० ( अ० हरावल ) सेना भाग, सेनाप्रगामी सैनिकों का समूह, हरावल | हर्कत - संज्ञा, स्त्रो० (दे०) हरकत ( फ़ा० ) | हर्गिज़ - कि० वि० (दे० ) हरगिज़, कदापि नहीं, कभी । 1 हर्ज - संज्ञा, पु० (अ०) बाधा, हानि, अड़चन, रुकावट, हरज, हरजा, हर्जा (दे० ) | संज्ञा, पु० - हर्जाना - क्षतिपूर्ति | हर्त्ता - संज्ञा, पु० (सं० हर्ट) हरण या नारा करने वाला चुराने वाला हरता (दे० ) । स्त्री० त्र । इतर - संज्ञा, पु० (सं० ) हर्ता, हरतार (दे० ) | संज्ञा, पु० (दे० ) हरवार, हरताल । हर्फ़-संज्ञा, पु० ( अ० ) अक्षर, वर्ण, हरफ़, हरूफ (दे० ) । मुहा०-हर्फ़ प्राना-ति होना, हानि पहुँचना | धर्म-संज्ञा, पु० दे० ( अ० हरम ) बड़ा भारी महल, प्रासाद, हर्म्य (सं०) हरम | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरइया - संज्ञा, स्त्री० (दे०) स्त्रियों के हाथ का एक गहना । हर्रा - संज्ञा, पु० दे० जाति की हड़ | फिटकरी रँग चोखा श्रावै । " हरे - संज्ञा, पु० दे० ( हि० हड़ ) हड़ | ब० व० हरे । हर्ष - संज्ञा, पु० (सं०) प्रफुल्लता, प्रसन्नता, आनन्द, हर्षादि से रोमांच होना, खुशी, हरप, हरख (दे० ) । "हर्ष-विषाद न कछु उर नावा - रामा० । , धर्षण – संज्ञा, पु० (सं० ) प्रफुलित करना या होना, हर्षादि से रोमांच होना, मदन के ५ वाणों में से एक बाण, एक योग (ज्यो०), हरषन (दे० ) । वि० - हर्षणीय | हर्षना - अ० क्रि० (सं० हर्षण) प्रसन्न होना, हरपना, हरखना । स० रूप- हर्षाना, हर्षावना | हर्षवर्द्धन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) वैस क्षत्रिय वंशीय एक बौद्ध धर्मानुयायी भारतसम्राट् जिसकी सभा में वाण कवि रहते थे ( इति० ) । हर्षाना - अ० कि० दे० (सं० हर्ष ) मुदित होना, प्रसन्न या श्रानन्दित होना, प्रफुल्लित या हर्षित होना । स० क्रि० प्रसन्न या हर्षित करना, हर्षाविना । हर्षित - वि० (सं०) प्रसन्न, धानन्दित, हरषित (दे० ) । (सं० हरीतकी) बड़ी लो०- " हर्रा लगै न हरिकुल्त - वि० यौ० ( सं० ) हर्ष से प्रफुल्लित, प्रमुदित । छत्त् - संज्ञा, पु० (सं० ) स्वर - रहित शुद्ध व्यंजन वर्ण । For Private and Personal Use Only हलंत - संज्ञा, पु० (सं० ) वह शब्द जिसके अंत में वर्ण हो, हलू | हल् द्दल -- संज्ञा, पु० (सं० ) लांगल, सीर, भूमि जोतने का यंत्र, हर (दे० ) । मुहा० - हल जोतन ( चलाना ) -- खेती करना, हल

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