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हरियाली तीज, हरियारी तीज १८७०
हरुफ़ समूह, दूब, हरे रंग का फैलाव । महा-- हरिहाई-वि० स्त्री० दे० ( हि० हरहाई ) हरियाली सूझना-सर्वत्र हर्षही हर्ष दुष्ट गाय, हरहाई । “जिमि कपिलहि घाई समझ पड़ना।
हरिहाई"-रामा। हरियाली तीज, हरियारी-तीज-संज्ञा, हरी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) १४ वर्णों का स्त्री० (हि०) सावन कृष्ण पक्षीय तृतीया एक वर्णिक छन्द अनन्द (पि०) । वि० स्त्री. या तीज, हरेरी तीजा ( ग्रा० )।
(हि०) हरा का स्त्रीलिङ्ग । संज्ञा, पु० दे० हरि-रस, हरि-राग-संज्ञा, पु० यौ० सं०)। (सं० हरि) हरि, भगवान, कृष्ण । "हरी तरी ईश्वर-प्रेम, कृष्णानुराग।
पुकारती हरी हरी छटीलिये। हरिलीला-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भगवान
हरीतकी- संज्ञा, स्त्री. (सं०) हर, हड़, का चरित्र, १४ वर्णों का एक वर्णिक छंद ।
हरड़, हरें। "हरीतकी मनुष्याणाम् मातेव (पिं० )।
हितकारिणी"-भाव० । हरिलोक-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) स्वर्ग,
हरीफ़--संज्ञा, पु. ( सं० ) शत्रु, बैरी, (दे०) बैकंठ, विष्णु-लोक।
चंट, चालाक । एंज्ञा, खो०-हरीफ़ी।
हरीरा-संज्ञा, पु० दे० (अ० हारेः) मसाला हरिवंश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कृष्ण जी
और मेवा श्रादि को दूध में प्रोटाने से बना का कुटुम्ब, कृष्ण-कुल, एक पुराण जिसमें श्रीकृष्ण जी और उनके कुटुम्ब का वृत्तांत
एक पेय पदार्थ, हरेरा (दे०)। कुछ हरीरा है। यौ०-हरिवंश पुराण। वि०-हरिवंशी।
पिलाय कुछ हल्दी"-मीर। *-वि०
दे० ( हि० हरिभर) हरेरा, हरा, सब्ज़, हरि वास-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पीपल वृक्ष, जिसमें शिव का वास हो।
प्रसन्न, हर्षित, प्रफुल्ल । स्त्री०-- हरीरी।
हरीस-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हरिस ) हरिस, हरि-वासर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) रविवार,
हल की सबसे बड़ी लकड़ी! संज्ञा, पु. सोमवार, एकादशी, विष्णु का दिन, | जन्माष्टमी, रामनवमी, वावन द्वादशी, नृसिंह
(दे०) हरीश, वानरेश, उच्चैश्रवा, शेष ।
हाअ, हरया--वि० (सं० लघुक) थोड़ा, चतुर्दशी।
हलका, हरुव (दे०) । विलो०-गरू, हरि-वाहन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गरुड़ ।
गरुश्रा, गरुया हरिशयनी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भाषाद
हरुमा - वि० दे० (सं० लघुक) हलका । सुदी एकादशी, जब देव सोते हैं।
हरुभाई हरुवाई-संज्ञा, स्त्रो० दे० (हि. हरिश्चंद्र-संज्ञा, पु० (सं०) सुर्य-वंश के |
| हरुमा ) फुरती. हलकापन । " दृढ शरीर अट्ठाईसवें राजा जो त्रिशंकु के पुत्र थे ये बड़े अति ही हरुमाई"-रामा । सत्यवादी और दानी थे, हरिचन्द, हिन्दी हरुयाना-हरुवाना--अ० कि० दे० (हि. के एक प्रसिद्ध कवि, भारतेन्दु।
हरुमा) लघु या हलका होना, फुरती होना। हरिस --संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० हलीषा) ईषा, रुए *-क्रि० वि० दे० ( हि० हरुमा ) हल की सबसे बड़ी वह लकड़ी जिसके एक हौले हौले, धीरे धीरे, रसे रमे ( ग्रा० ). छोर पर फाल वाली लकड़ी और दूसरे पर चुपचाप, बिना पाहट के। वि०-हलके, जुधा रहता है। हरिहर-क्षेत्र-संज्ञा, पु. (सं०) एक तीर्थहरू-वि० ( हि० हरुमा ) हलका । "हरू (बिहार), जहाँ कार्तिक की पूर्णमासी को गरू कछु जाइ न तोला"-कबी। बड़ा भारी मेला होता है, हरिहरक्षेत्र | हरूफ़-संज्ञा, पु० ( अ० हरफ का बहुवचन)
| अक्षर समूह, वर्णमाला, अक्षर. वर्ण ।
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