Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1905
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुँकार हीनताई १८६४ हीननाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० हीनता) भेद 'पिं०) । संज्ञा, पु० (हि. हीरा, सं० हीनता, हिनाई (ग्रा०)। हीरक ) किसी वस्तु का सार भाग, गूदा हीनत्व-संज्ञा, पु. (सं०) हीनता. कमो। या सत. (लकडी का) सार भाग, धातु, देह हीनबल-वि० यौ० (सं०) निर्बल, अशक्त, की सार-वस्तु, वीर्य, बल, शक्ति. तत्व । कमज़ोर। हीरक-संज्ञा, पु. (सं०) हीग नामक रत्न, हीनबुद्धि-वि० यौ० (सं०) मूर्ख. दुर्मति । हीर छंद पिं०)। "नव उज्वल जलधार निर्बुद्धि धी-विहीन. बेसमझ, दुद्धि । हार हीरक सी सोहति"-डरि० । हीनयान-संज्ञा, पु. (सं०) बौद्ध मत की हीग-संज्ञा, पु० दे० सं० हरिक ) वज्रमणि, एक आदिम और पुरानी शाग्वा जिसके ग्रंथ एक प्रति दृढ़ और चमकीला बहुमूल्य रत्न, पाली भाषा में है। यह स्याम-ब्रह्मा में | कुलिस । वि० (हि.) श्रेष्ठ. उत्तम। महा० रचा गया। विलो०-सहायान । -हीरे की कनी चाटना- हीरे का चूर हीनयोनि-वि० यौ० (सं०) नीच कुन्त या खाकर मरना या आत्म हत्या करना। जाति का। हीराकसीस-संज्ञा, पु० यौ० (हि. हीरा + हीनरस-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह कविता कसीस-सं० ) हरापन लिये मटमैले रंग का जिसमें रम न हो, नीरस, रसविरोध, किसी | लोहे का एक विकार, एक औषधि, हीरारस के प्रसंग में उसके विरोधी रस के प्रसंग । कौसीस। के लाने का एक काव्य-दोष (सा.) हीरामन--संज्ञा, पु. यौ० दे० (हि. हीरा+ हीनवीर्य -- संज्ञा, पु०, वि० यौ० (सं०) मणि-सं० ) सोने के से रंग का एक कल्पित निर्बल, अशक्त, बल रहित, नपंसक। सुग्गा या तोता। हीनहयात-संज्ञा, स्त्री० यौ० (अ०) जिंदगी हीलना*-अ० क्रि० दे० (हि. हिलना ) का समय, जीवन काल । हिलना, डोलना, परिचित और अनुरक्त हीनांग-वि० यौ० (सं०) खंडित अंग वाला, होना । किषी अंग से रहित व्यक्ति, अधूरा, अपूर्ण । हीला-संज्ञा, पु० (अ० हीलः) मिस, बहाना। हीनोपमा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) उपमा- ___ संज्ञा, पु० (दे०) कीचड़, चहला । यौ.लंकार का एक सदोष रूप, जहाँ बड़े उपमेय | होला-हवाला-बहाना । व्याज, वसीला, के लिये छोटा उपमान लिया जावे ( काव्य.)। निमित्त, द्वार। हीय-हिया* ----संज्ञा, पु० दे. ( हि हिय | हीही- संज्ञा, स्त्री० (अनु०) हसने का शब्द, सं० हृदय ) हृदय, दिल, मन, चित, छाती। हीही शब्द करके हंसने की क्रिया । "दीपक ज्ञान धरै घर हीया"-देव.। हूँ-अध्य० दे० सं० उप = आगे) एक अतिहीयरा*-संज्ञा, पु० दे० (हि. हिय सं० रेक बोधक शब्द, भी, स्वीकृति-सूचक शब्द, हृदय ) हृदय, हिय, दिल, मन, चित, हाँ । " हमहुँ कहब अब ठकुर-सुहाती"छाती, हियरा (दे०)। रामा०। हीर-संज्ञा, पु० (सं०) हीरा नामक हँकरना-अ० क्रि० (द०) हुँकार शब्द करना, रत्न, बिजली, वज्र. साँप । म, स, न, हुँकारना. गाय आदि का प्रेम दिखाते हुए ज, र (गण ) वाला एक वर्णिक छंद बच्चे के लिये बोलना । (पिं० ). ६. ६ और ११ मात्रानों पर हँकार-संज्ञा, पु. (स.) ललकार. पुकार, विराम के साथ २३ मात्राओं का एक डाँटने का शब्द, गरज, गर्जन, चिल्लाहट, .'- छंद (पिं०), छप्पय का ६ वाँ चीत्कार । For Private and Personal Use Only

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