Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1904
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हीनता हिसाबी हिसावी-वि० (अ० हिसाब-1-ई-हि०-- पर जोर देने के लिये होता है। संज्ञा, पु० प्रत्य०) गणितज्ञ, हिसाब-किताब में चतुर। दे० (हि. हिय, सं० हृदय ) हृदय, हिय, हिसिषा* --संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० ईया) हीय. मन, चित्त, छाती अ० कि० दे० ईर्ष्या, डाह, स्पर्धा, होड़, हिसका (दे०), भूत० स्वी० (व्र न० हेानो = होना) थी, हुती, बराबरी करने का भाव, समता या तुल्यता हती (पु.), भूत हो= था का स्त्री० । की भावना। ही, हीमा - संज्ञा, पु० दे० ( सं० हृदय ) हिस्सा- संज्ञा, पु० दे० (अ० हिस्सः ) | हिय हीय (दे०), हृदय, मन. चित्त, छाती। खंड, अंश, भाग, टुकड़ा, विभाग या उससे "राखौ राम-ध्यान महँ हीरा"-- वासु० । मिला हुआ प्रत्येक का भाग या अंश, होक -- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० हिक्का) अरुचिहीसा (ग्रा.), तकसीम, बखरा (प्रान्ती०), कारी गंध, बदबू , हिचकी। अवयव. अंग, साझा, अन्तर्भत वस्तु, हीचना*-अ० कि० दे० (हि. हिचस्ना) विभाग। यौ-हिस्सा बाँट-बटवारा, हिचकना, रुकना, खींचन. हींचना (दे०)। विभाजन । स० ० रूप-हिचाना, हिचवाना । हिस्सेदार - संज्ञा, पु. ( अ० हिम्सः + दार- होछना-अ० कि० (दे०) इच्छा करना । फा०-प्रत्य०) साझी, साझेदार, व्यापार में | हीठना-अ० क्रि० दे० (सं० अधिष्ठा ) सम्मिलित, जिसे कुछ हिस्सा या भाग निकट जाना, पहुँचना, समीप या पास मिला हो । संज्ञा, स्त्री० - हिस्सेदारी- होना, फटकना, जाना। साझेदारी। हीन--वि० (सं०) रहित, वंचित. विहीन, हिहिनाना-अ० कि० दे० (हि. हिनहिना) शून्य, छोड़ा या त्यागा हुमा, परित्यक्त, घोड़े की बोली, हिनहिनाना। वियुक्त । निकृष्ट. निम्न कोटि या श्रेणी का, हींग-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० हिंगु ) एक घटिया, तुच्छ, नीच, बुरा, नाचीज़, पोछा, छोटा पौधा जो ईरान या अफ़ग़ानिस्तान दीन. नम्र, अल्प, कम, निर्बल, अशक्त, में श्राप से श्राप उगता और बहुतायत से सुख समृद्धि रहित । संज्ञा, पु०-अयोग्य या पाया जाता है. इसका अति तीव गंध वाला बुरा गवाह या साती ( प्रमाण में ), अधम दवा तथा मसाले के काम को जमाया हुआ नायक ( साहि.)। गोंद या दूध । " राखौ मेलि कपूर में, हींग हीनकल-वि० यौ० (सं०) नीच वंश या न होय सुगंध"-नीति । कुल का, नीच। हींस-संज्ञा, स्त्रो० दे० (सं० हेष ) गधे या हीनक्राम-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) काव्य का घोड़े के बोलने का शब्द, हिनहिनाहट या एक दुर्गुण, जहाँ गुणी और गुणों की गणना या वर्णन का क्रम उचित, समान या हींसना-अ० कि० (अनु०) हिनहिनाना, | एक सा न हों। गधे या घोड़े का बोलना। | हीनचरित, हीनचरित्र-वि० (सं०) दुराहींसा-संज्ञा, पु० (दे०) हिस्सा। चारी, बुरे आचरण वाला, दुश्चरित्र, भ्रष्टा. हीही-संज्ञा, स्त्री० (अनु०) हँसने का शब्द, चारी, चरित्र-हीन, हीनाचारी। हीनता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) अशक्तता, ही-अव्य. ( सं० हि =निश्चयार्थक ) भी, निर्बलता, कमी, अल्पता, त्रुटि, तुच्छता, इसका प्रयोग, निश्चय, परिमिति, स्वीकृति । श्रोछापन, बुद्रता, हिनाई, निकृष्टता, बुराई, अल्पतादि सूचित करने या किसी बात | न्यूनता । रंक। For Private and Personal Use Only

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