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हड़काया हठ-संज्ञा, पु. ( सं० ) ज़िद, भाग्रह, टेक, । हठाना-स० कि० (दे०) हठ करने में प्रवृत्त किसी बात के लिये रुकना या अड़ना।। करना, हठावना (दे०)। वि०-हठी, हठीला । " दसकंठ रे सठ हठो-वि० (सं० हठिन् ) ज़िद्दी, टेकी, हठ छोड़ दे इठ बार बार न बोलिये" -रामा | करने वाला । "हठी दसकंधर न टेक निज "हठ-वश सब संकट सहै,गालव-नहुष नरेश' | त्यागैगो"- स्कु० । -रामा० । मुहा०-हठ पकड़ना हठीला-वि० दे० (सं० हठ+ ईला --प्रत्या०) (करना)-ज़िद करना । हठ रखना- हठी, जिद्दी. टेकी, दुराग्रही, हठ करने जिपके लिये अड़ना उसे पूरा करना या लेना, वाला, हद प्रतिज्ञ, बात का पक्का या धनी, ज़िद पूरी करना, जिसके हेतु किलो की हठ संग्राम में अटल, धीर । स्त्री०-हठीली । हो उसे वही देना . " हठ राखै नहिं राखै " लेत हरि गोरस हठीलो हरि तेरो री" प्राना"- रामा० । हठ में पड़ना (अाना) |
-शि० गो। -ज़िद करना । हठ माँड़ना-हठ ठानना, | हठौना-स० कि० दे० (हि० हठ ) हठावना, प्रण करना । अचल सकल्प, हद प्रतिज्ञा, हठ कराना। 'हो हठती पै तुम्हें न हठौती" जबरदस्ती, बलात्कार।
-नरो । हठधर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सत्यासत्य हड़-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० हरीतकी ) हरड़, का विचार छोड़ अपनी ही बात पर अड़े एक बड़ा वृक्ष जिसके फल औषधि के काम, रहना, दुराग्रह, कट्टरपन । सज्ञा, स्त्री
| आते हैं, हर, हरी, हड़ जैसा एक गहना, हठधर्मता । सज्ञा, स्रो० वि०-हउधर्मी।
लटकन। हट-धर्मी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० हठ+धर्म)
हड़कंप- संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि. हाड़+ अपनी ही बात पर जमे या अटल रहना,
कापना ) बड़ी हलचल, बलभल, तहलका, सत्यासत्य योग्यायोग्य या धर्माधर्मादि का
हनकंप (दे०) । मुहा०-हड़कंप मचना कुछ विचार न करना, अपने ही मत या
| (होना )-हलचल होना।
हड़क-संज्ञा, स्त्री. ( अनु० ) पागल कुत्ते सम्प्रदाय की बात पर अड़ने को प्रवृत्ति,
के काटने पर पानी के हेतु अति प्राकुलता, दुराग्रह, अड़जाना, अड़ा रहना, कटरपन ।
किसी पदार्थ के पाने की बड़ी धुन, गहरी हठना-अ० कि० दे० ( हि० हठ ) जिद या
अभिलाषा, उत्कट इच्छा, धुन, रट, झक । हठ करना या पकड़ना, दुराग्रह करना,
हड़कना-अ. क्रि० दे० (हि. हड़क) हड़ प्रतिज्ञा या संकल्प करना । मुहा०
तरसना, प्रति उत्कंठित होना, किसी वस्तु हठ कर - ज़बरदस्ती, बलात् : " हौ
के न मिलने से अति दुग्बी होना, हुड़कना हठती मैं तुम्है न हठौती"-नरो । “हठि
( ग्रा.)। राखै न.ह राखै प्राना”-रामा० स० रूप
हड काना-कि० (दे०) हुलकारना, हठाना, प्रे० रूप-हठवाना।
लहकारना, किपी वस्तु के न मिलने का हठयांग-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नेती धोती |
दुख होना, तरसाना, किसी वस्तु के अभाव फटिन भासन और मुद्रादि, जैसे कठिन | का दुख देना, कोई वस्तु के याचक को साधनों से शरीर के साधने का योग- न देकर भगवाना या आक्रमण, तन करने सम्बन्धी एक विधान।
को पीछे लगाना। हठात्-प्रत्य० (स.) हठयुक्त, हठपूर्वक, | हड़काया-वि० दे० ( हि० हड़क) बावला, दुराग्रह के साथ, ज़बरदस्ती, वलात, अवश्य । हड़कायल, पागल कुत्ता।
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