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स्वामिन, स्वामिनि
१८५०
स्वार्थसाधन स्वामिन, स्वामिनि-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्वारस्य–वि. (सं०) रसीलापन, सरसता, स्वामिनी ) श्रीराधिका, गृहणी, स्वामिनी, स्वाभाविकता। स्वत्वाधिकारिणी, मालकिनी । “ स्वामिनि- स्वाराज्य-संज्ञा, पु० (सं०) स्वर्ग या वैकंठमन मानौ जनि ऊना"-रामा० । लोक, स्वाधीन राज्य, स्वर्ग का राज्य । स्वामिनी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) राधा जी, स्वारी- संज्ञा, स्रो० (दे०) सवारी मालकिनी, सुगृहणी, स्वामिनी । “कहति | (हि.)। स्वामिनी तें है दासी स्वामी हैं घर आये' | स्वारोचिष-संज्ञा, पु० (सं०) स्वरोचिषात्मज, -स्फु० ।
दूसरे मनु । स्वामी-संज्ञा, पु. ( सं० स्वामिन् ) प्रभु. स्वार्थ-संज्ञा, पु० (सं०) अपना प्रयोजन या नाथ, मालिक, स्वात्वाधिकारी, पति, शोहर, मतलब, अपना लाभ या हित, अपना अन्नदाता, भगवान, राजा, घर का प्रधान, | उद्देश्य, अपनी भलाई, स्वारथ (दे०) । मुग्विया, धर्माचार्यादि की उपाधि, कात्ति- "स्वार्थ-साधन-तत्पर"-स्फु० । मुहा० - केय, संन्यासी, साधु । “विनती करहुँ बहुत (किसी बात में) स्वार्थ लेना (रखना) का स्वामी"-- रामा० । स्त्री० स्वामिनी। -दिलचस्पी लेना (रखना), अनुराग या स्वायंभुष-संज्ञा, पु० (सं०) स्वयंभू, ब्रह्मा प्रेम रखना (श्राधु०)। स्वार्थ चीन्हना -
के पुत्र, १४ मनुवों में से प्रथम। स्वार्थ ही ही देखना । वि० दे० (सं० सार्थक) स्वायंभू-संज्ञा, पु० (सं० स्वायंभुव ) स्वायं- सार्थक, सफल । भुव, एक मनु । “स्वायंभू मनु अरु सत. स्वार्थता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) निज प्रयोजन रूपा"-रामा ।
या उद्देश्य, खुदगर्जी, स्वलाभ, स्वहित, स्वायत्त-वि० (०) जो अपने वश में हो, । स्वार्थ का भाव । जो अपने अधीन हो, जिस पर अपना ही | स्वार्थत्याग - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अपने अधिकार हो।
लाभ का विचार छोड़ कर परोपकार करना, स्वायत्तशासन-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) विसी भले कार्य के लिये स्वहित का ध्यान स्वराज्य, स्थानिक स्वराज्य, वह शासन जो न रखना। अपने अधिकार में हो।
स्वार्थ त्यागी--संज्ञा, पु० यौ० ( सं० स्वार्थ स्वारथ -संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वार्थ) | त्यागिन् ) परार्थ या परोपकार के हेतु अपने स्वार्थ, अपना प्रयोजन या मतलब, अपना लाभ का विचार न करने वाला। लाभ या उद्देश्य, अपनी भलाई। विलो०- स्वार्थपर-वि० (सं०) स्वहित का ही ध्यान परार्थ, परमार्थ । " स्वारथ परमारथ सबै, |
| रखने वाला स्वार्थी, खुदगर्ज । सिद्ध एक ही ठौर"--तुल० । “स्वारथ स्वार्थपरता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) स्वार्थता, लागि करें सब प्रीती"-- रामा० । वि० दे० । खुदगर्जी, स्वार्थपर होने का भाव, अपने ( सं० सार्थ ) सफल, सार्थक, सिद्ध, सुग्रा- प्रयोजन या उद्देश्य की ही सिद्धि का रथ (दे०)। मुहा०-स्वारथ चीन्हना- ध्यान रखना। स्वार्थ देखना या पहचानना । "थजौं | स्वार्थ परायण-वि० यौ० (सं०) स्वार्थी, स्वास्थ नहिं चीन्ह्यो” रत्ना।
स्वार्थपर, खुदग़रज़, मतलवी। संज्ञा, स्वारथी-वि० दे० ( सं० स्वार्थो) स्वार्थी, स्त्री० स्वार्थपरायणता।
खुदगर्ज़, अपना प्रयोजन सिद्ध या लाभ | स्वार्थसाधन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अपने करने वाला।
___ मतलब या प्रयोजन का सिद्ध करना,
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