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स्वस्तिवाचन १८४
स्वाती देह के विशेष अगों पर स्वभावतः उक्त चिन्ह स्वाक्षर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) हस्ताक्षर, (शुभ, सामु०)।
| दस्तख़त। स्वस्तिवाचन--संज्ञा, पु. यौ० (स० शुभ स्वाक्षरित वि० (सं०) अपने हस्ताक्षर से कार्यारम्भ पर देव-पूजन और मांगलिक वेद- युक्त, अपना दस्तख़त किया हुआ । मंत्रों के पाठ के रूप में एक धार्मिक कृत्य स्वागत-संज्ञा, पु. (सं०) अगवानी, (कर्मकांड) । वि०-स्वास्तिवाचक।। अभ्यर्थना, पेशवायी, अतिथि या भागंतुकादि स्वस्त्ययन-सज्ञा, पु. (सं० विशिष्ट शुभ । के आने पर उसका आदर-सत्कार से अभिकार्यारम्भ पर शुभ-स्थापनार्थ वेद के मांग- नंदन करना। लिक मंत्रों का पाठादि (एक धार्मिक कृत्य)। स्वागतकारिणी सभा-संज्ञा, स्त्री० यौ० स्वस्थ-वि० (सं०) नीरोग, तंदुरुस्त, (सं०) वह सभा जो किसी बड़ी सभा में प्रारोग्य, भला-चंगा, सावधान | सज्ञा,- पाने वाले प्रतिनिधियों या अन्य लोगों स्वस्थता।
के स्वागतादि की व्यवस्था के लिये संगठित स्वहाना - अ० क्रि० दे० ( हि० सोहाना)
सुहाना, सोहाना, अच्छा या प्रिय लगना। स्वागत-पतिका .. संज्ञा, स्त्री. यो. (सं०) स्वांग-संज्ञा, पु० दे० ( सं० F+ अग) वह नायिका जो पति के पादेश से आने रूप, भेल. मज़ाक़ का खेल. तमाशा. नकल, पर प्रसन्न होती है. प्रागत-पतिका ।
सो का रूप बनाने को धरा गया बनावटी स्वागत प्रिया-मज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह वेष, धोखा देने को बनाया गया कोई रूप, । नायक जो अपनी प्रिया के परदेश से पाने सुराँग (ग्रा०)।
के कारण प्रसन्न हो, धागत-प्रिया । स्वाँगना* स० क्रि० दे० (हि. स्वाँग ) स्वागता संज्ञा, स्त्रो० (सं०) र, न, भ (गण) स्वाँग बनाना, बनावटो भेष धरना। तथा दो गुरु वों (ss+1+ 50-ss) स्वांगी-संज्ञा, पु० दे० ( हि० साँग । स्वाँग वाला एक वर्णिक छंद (पि.)। बनाने तथा यों ही जीविकोपार्जन करने | स्वागताध्यक्ष-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) स्वागत वाला, बहुरूपिया, सुरोंगी (ग्रा०) । वि. कारिणी सभा का सभापति । -रूप धरने वाला।
स्वातंत्र्य-संज्ञा, पु० (सं०) स्वतत्रता । स्वांत-संज्ञा, पु० (सं०) मन, अंतःकरण । स्वात-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्वाति) स्वाति " स्वाँतः सुखाय तुलसी रघुनाथ-गाथा" नक्षत्र। -रामा ।
स्वाति-संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्वाती, पंद्रहवाँ स्वाँस-संज्ञा, पु. दे. ( सं० श्वास ) स्वास. नक्षत्र, जो शुभ माना गया है (फ० ज्यो०)। साँस, स्वाँसा । " स्वाँस स्वाँस पर राम स्वातिपय-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्राकाशराम कहु, वृथा स्वाँस मत खोय"-तुल। गंगा, स्वातीपथ। स्वाँसा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० श्वास ) स्वास, स्वातिसुत-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) स्वातिसाँस । लो०-"जब लौं स्वाँसा तब लौं पुत्र, स्वाति-तनय, मुक्ता, मोती।। भासा ।" मुहा०--स्वाँसा साधना - स्वातिसुवन--संज्ञा, पु० (सं०) मोती, प्राणायाम करना, शुभाशुभ विचारार्थ, | स्वाती-प्रत (दे०), स्वाति-तनुज । दाहिने या बाँय स्वास की गति देखना | स्वाती- संज्ञा, पु० दे० ( सं० स्वाति ) स्वाति (स्वरो०)।
नक्षत्र।
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