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सिंही
। द्वीप!
सिंधुसुना
१७५७ सुत, चन्द्रमा, जलंधर राक्षस, शंख, सिंधु- सिंहत-ज्ञा. पु० (सं०) भारत के दक्षिण सपूत।
में एक द्वीप जिसे लोग लंका भी कहते हैं । सिंधुसुता - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) लघमी, मिघल (दे०) । यौ०~-सिंहलद्वीप : वि. मीप।
(हि.) सिंहली। सिंधुसुनामुत-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिंहल द्वीप-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लंका
मोती। सिंधूरा-संज्ञा, पु० दे० (सं० सिंधुर ) सिंहलद्वीपी--- वि० यौ० ( सं० सिंहलद्वीप -- समस्त जाति का एक राग (संगी०)।
ई.-प्रत्य. ) सिंहल द्वीप का सिंघली सिंधोरा, सिंधौरा-- संज्ञा, पु० दे० (सं० (दे०) सिंहलद्वीप का निवापी या सम्बन्धी। सिंदूर ) सिंदूर रखने का एक काष्ठ-पान
" संज्ञा, स्त्री। -सिंहाली (दे०) । सिंहलद्वीप
सज्ञा, '
' की भाषा, सिंहली। सिंपप-सिंसपा--ज्ञा, पु० वी० दे० (सं०
" सिंहवाहिनी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) दुर्गा शिंशपा) शीशम या सीसों का पेड़ ।। सिंह-संज्ञा, पु० (सं०) बिल्ली की जाति
- देवी. सिंघवाहिनी (दे०)। का एक पगक्रमी, बलवान् और भव्य
सिंहस्थ-वि० (सं०) सिंह राशि में स्थित जंगली जंतु जिसके नर-वर्ग की गरदन पर
(वृहस्पति) सिहस्थित । स्त्री०-सिंहस्था
-----देवी। बडे बाल होते हैं, सिंघ (दे०) शेरबबर. सिंहावलोकन--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सिंह केपरी, मृगराज, शार्दूल, मृगेन्द्र, बारह
की पी चितवनि. सिंह-द्वधि, आगे बढ़ते राशियों में से ५ वीं राशि (ज्यो०), वीरता
हये सिंहसा पीछे देखना, आगे बढ़ने से सूचक एक शब्द. जैसे-पुरुष सिंह क्षत्रियों
पूर्व पहिले की बातों का संक्षिप्त कथन, की एक उपाधि, छप्पय का १६ वाँ भेद
पद्यरचना की एक शैली जिपमें पिछले (पि०) । "वाल्मीकि मुनि-सिहस्प कविता
चरणांत के कुछ वर्ण या पद आगे के वनचारिणः"-वा० रामा० टी० । स्त्री०
चरणादि में आते हैं, सिह-बिनोकनि मिहनी। सिंहद्वार-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सदर-सिंहासन--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) राजा या
फाटक, बड़ा दरवाजा, सिंहपौर (दे०)। किसी देवता के बैठने का आमन, राजगही, सिंहनाद-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिंह की तहत (फा । "तुरतहि दिव्य सिंहासन गरज, लड़ाई में वीरों की ललकार, जोर माँगा". रामा० । देकर या ललकार कर कहना, कलहस- सिंहिका--- संज्ञा, स्त्री० (सं० राहु की माता नंदिनी नामक एक वर्णिक छंद (पिं०), एक राक्षसी, जिसे हनुमानजी ने लंका कवियों की आत्मश्लाघा।।
जाते समय मारा था ( रामा० ). शोभन सिंहनी, सिहिनी--संज्ञा, स्त्री. (सं०) छंद पिं०।।
शेरनी, बाधिनी, बाय की मादा, सिघिनी सिंहिकासुत सिंहिका-सूनु-संज्ञा, पु. (दे०) । एक मात्रिक छंद जिसके चारों यौ० सं०) राहु नामक ग्रह, सिंहका-पुत्र चरणों में क्रम से १२, १८, २० और २२ सिंहिका-तनय । मात्रायें होती हैं (पिं०)। विलो०-गाहिनी। मिहिनी - संज्ञा, स्त्री. (सं०) बाधिनी, सिंह-गौर--संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शेरनी, शेर की मादा। सिंह प्रतोली ) सिंघ-पौरि (दे०), सदर सिंही--संज्ञा, स्त्री० (सं०) बाधिनी, शेरनी, फाटक, सिंह-द्वार ।
__ भार्या छंद का ३ गुरु और ५१ लघु वर्णों
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