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सींचना
सिस्य
१७७१ "वैश्य सिस्नवत हैं सदा, श्रादि अंत में } लो०-" लड़का नहीं सिहोरा की जड़ नम्र"-स्फु०। सिस्य-संज्ञा, पु० दे० (सं० शिष्य ) | सीक-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० इर्षाका ) मुंज शिष्य, सिष्य ।
की जाति की एक घास की तीली, किसी सिहरन-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शीत )
घास का बारीक डंठल, शंकु, तिनका, नाक कंपन, घबराहट ।
का एक श्राभूषण, कील, लौंग । " सींकसिहरना-अ० वि० दे० (सं० सीत +
धनुष सायक संधाना"- रामा० ना ) जाड़े के मारे कॉपना, घबराना, डरना,
सीका-संज्ञा, पु० दे० (हि. सींक ) पेड़काँपना।
पौधों की पतली डाली, जैसे- नीम का सिहरा--संज्ञा, पु. (अ.) फूलों से बना
सींका, पतली उपशाखा या टहनी । संज्ञा, मुख का श्रावरण जो दूल्हा की पगड़ी से
पु० दे० (हि. सिकहर ) सिकहर, छींका नीचे को लटका दिया जाता है, सेहरा
सीकिया-संज्ञा, पु० दे० ( हि० सींक ) एक (दे०)।
धारीधार संगीन कपड़ा । वि०-सींक सा सिहराना-स. क्रि० दे० ( हि० सिहरना)
पतला। जाड़े के मारे पाना, डराना।
सींग-संज्ञा. पु० दे० (सं० शृंग ) भृग, सिहरी-सज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सिहरना)
। विषाण, कुछ खुर वाले पशुओं के सिरों के कंप, कँपकँपी, सहमना, भय से थर्राना
दोनों ओर उठी हुई नोकदार हड्डियाँ । या दहलना, जाड़े का ज्वर, जूडी, लोम
"सींग-पूँछि बिन ते पशू, जे नर विद्याहपण या रोमों का खड़ा होना।
हीन" । महास-(किसी के सिर पर) सिहाना-अ० क्रि० दे० (सं० ईर्ष्या )
सींग होना-कोई विशेषता होना, ईर्ष्या करना, स्पर्दा या डाह करना,
( व्यंग्य ) । सींग काटकर बछड़ों में लुभाना, ललचाना, मोहित या मुग्ध
मिलना-बूढ़े होकर भी बच्चों में मिलना। होना । " देव सकल सुरपतिहि सिंहाही"
कही सींग समाना-कहीं जगह या -रामा० । स० क्रि०-ईर्ष्या या अभिलाषा
ठिकाना मिलना । फूंक कर बजाने का सींग की दृष्टि से देवना, ललचना । " तिनहिं
से बना एक बाजा, सिंगी। नाग-सुर-नगर सिहाही"- रामा। सींगरी-संक्षा, स्त्री० (दे०) मोंगरे या लोसिहारना-स० कि० (दे०) दूँदना, पता | बिया श्रादि की फली, बबूर श्रादि के पेड़ों लगाना, खोजना, तलाश करना, खोज की फली, सिगरी (ग्रा०). भैंसी चढ़ी बंबूर लाना, सँभालना, परखना, जाँचना, रक्षित पर लफि लफि सिंगरी खाय"- स्फु०।। रखना, सहेजना, सावधानी से रखना या सींगी-संज्ञा स्त्री० दे० (हि० सींग) सिंगी, रहना । संज्ञा, पु० (दे०) सिहार।
हिरन के सींग का बाजा, वह सींग जिससे सिहिटि-संज्ञा, स्त्री० (दे०) सृष्टि । “ो । देहाती जर्राह शरीर से बुरा लोहू निकाल
तेहिं प्रीति सिहिटि उपराजी"-पद्मा।। लेते हैं, एक मछली । मुहा०-सिगी सिहँड-सिहुँढ़ा-संज्ञा. पु० दे० (हि० सेहुँड़ लगाना-सिंगी से रक्त चूसना ।
थूहर की जाति का एक काँटेदार पेड़। सींचना-स. कि० दे० (सं० सिंचन) सिहोड़-सिहोर-सिहोग-संज्ञा, पु० (दे०) पानी देना, भिगोना, श्रावपाशी, करना, एक झाड़ीदार पेड़ जिसके दूध के मेल से छिड़कना, तर करना । संज्ञा, स्त्री० (हि.) गाय भैंस का दूध तत्काल जम जाता है। सिंचाई।
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