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सुन-बहिरी
१७८४
सुन्नत
नीति ।
जाता है और गरमी सरदी का ज्ञान नहीं सुनार-संशा, पु० दे० (सं० स्वर्णकार ) होता, यह रोग गलित कुष्ट का पूर्व रूप है, स्वर्णकार, सोनार, चाँदी-सोने के गहने (वैद्य०)।
बनाने वाली एक जाति । " ये दसह अपने सुन-बहिरी-संज्ञा, स्त्री. यौ० दे० (हि. नहीं सूजी. सुश्रा, सुनार"-स्फु०।
सुनना) सुनी-अनसुनी करने की किया। सुनारी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० सुनार + ई सुनय-संज्ञा, पु० (सं०) सुनीति, श्रेष्ठ, । प्रत्य०) सुनार का काम, सुनार की स्त्री,
सुनारिन, सुन्दर श्रेष्ठ स्त्री, सुनारि । सुनरा, सुनार-संज्ञा, पु. (दे०) सोनार, सुनाघर - सज्ञा, स्त्री० (दे०) सुनाहट, फोन, स्वर्णकार । संज्ञा, स्त्री. सुनारी (दे०) सोना चुपचाप । का काम, सुन्दर स्त्री।
सुनावना-१० कि० दे० (हि नाना ) सुनवाई-संज्ञा, स्रो० दे० (हि. सुनना+वाई सुनाना। प्रत्य०) मुकदमे या शिकायत आदि का सुना | सुनावनी-० क्रि० दे० (हि० सुनाना+ जाना, सुनने की क्रिया।
श्रावनी-+-प्रमा०) किसी नातेदार की मृत्यु सुनवार-वि० दे० (हि० सुनना + वार-प्रत्य०) के समाचार का दूर से धाना, ऐसी ख़बर से सुनने वाला।
किया गया स्नानादि शौच-कृत्य । सुनचैया-वि० दे० हि. सुनना--वैया- सुनासीर--'ज्ञा, पु. (सं० - नासोर = प्रत्य०) सुनने या सुनाने वाला, सुनवार
सोना का अग्र-नाग) इन्द्र ।। (सं०) सुनैया (दे०)।
सुनाहक-वि० वि० दे० (फ़ा० ना+हक अ०) सुनसर-संज्ञा, पु० (दे०) एक प्रकार का ।
निष्प्रयोजन, व्यर्थ, बेमतलव । गहना।
सुनीति-संज्ञा, स्त्री. (सं०) सुन्दर, श्रेष्ठ, सुनसान-वि० यौ० दे० (सं० शून्य-स्थान) नीति, ध्रव की माता । "समुझि सुनीति, जन-हीन, निर्जन देश, उजाड़, वीरान, कुनीति-रत जागत ही रह सोय"-तुल० । जहाँ कोई न हो । संज्ञा, पु. (दे०) सन्नाटा। वि० सुनीतिज्ञ। सुनहरा-सुनहला-वि० दे० (हि. सोना+ सुनया--वि० दे० (हि० सुनना-+-ऐया प्रत्य०) हरा, हला-प्रत्य०) सोने का, सोने के रंग का, | सुनने वाला। " जोपै कहूँ सुघर सुनैया सोनहरा (दे०)। स्त्री सुनहरी, सुनहली। पाइयतु हैं".-स्फु० । संज्ञा, स्त्रो० दे० सुनहा- संज्ञा, पु. (दे.) कुत्ता । “सुनहा (हि० सं० सुनौ का) सुन्दर नाव । खेदै कंजर भसवारा" --कबी० ।
सुनोची-पंज्ञा पु० (दे०) एक प्रकार का सुनाई-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. सुनना+आई । घोड़ा। प्रत्य०) मुकदमें या शिकायत आदि का सुन्न-वि० दे० ( सं० शून्य ) निश्चेष्ट, सुना जाना, सुनवाई।
निस्तब्ध, निर्जीव, चेष्टा-रहित, स्पन्दन-हो न । सुनाना-स० क्रि० (हि० सुनना ) श्रवण संज्ञा, पु० दे० । सं० शून्य ) शून्य, बिन्दी, कराना, खरी-खोटी या बुरी-भली कहना, सिफर, मुन्ना (ग्रा०)। कथा प्रादि कहना।
सुन्नत-संज्ञा, स्त्री० (अ०) ख़तना, मुगलसुनाभ-संज्ञा, पु० (सं०) सुदर्शन चक्र। मानी, बालक की लिंगेन्द्रिय के अग्रिम गाग सुनाम-संज्ञा, पु० (सं०) कीर्ति, यश। के चमड़े को काटने की एक रस्म (मुसल०), विलो०---कुनाम।
सुनति, सुन्नति (दे०)।
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