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स्वजन्मा
१८४४
स्वभाव
स्वजन्मा-वि० (सं० स्वजन्मन् ) अपने पितृभ्यः स्पधा " | " नमः, स्वस्ति, स्वाहा,
भाप उत्पन्न होने वाला, परमेश्वर, ब्रह्म ।। स्वधा, अलम वषट योगाच"-को। संज्ञा, स्वजात - वि० (सं०) अपने से पैदा होना, | स्त्री०--पितृ-भोजन, पितृ-अन्न, पितरों को अपने आप उत्पन्न होने वाला । ज्ञा, पु. दिया गया भोजनान्न, दक्ष प्रजापति (सं०) अपने से उत्पन्न पुत्र, बेटा।
की कन्या। स्वजाति -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) अपनी जाति। स्वन-संज्ञा, पु. (सं०) रव, शब्द, ध्वनि, वि०-अपनी जाति का।
निस्वन, अावाज । स्वजातीय-वि० (सं०) अपनी जाति का, स्वनामधन्य-वि० यौ० (सं०) जो अपने अपनी कोम या वर्ग का।
नाम से प्रशंसनीय या धन्य हो। स्वतंत्र-वि० (सं०) स्वाधीन, जो किसी स्वपच*-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्वपच ) के प्राधीन न हो, स्वच्छन्द, मुक्त, खुद श्वपच, चांडाल, भंगी, डोम। मुख्तार, निरंकुश, स्वेच्छाचारी, अलग, स्वपन, स्वपना*-संज्ञा, पु० दे० ( सं० पृथक, माज़ाद (फा०), नियम या बन्धनादि स्वप्न ) सपना । स० कि० (दे०) स्वपनाना । से रहित “जिमि स्वतन्त्र होइ बिगरहिं स्वप्न-संज्ञा, पु. (सं०) नींद, निद्रा, जो पारी"-रामा० ।
बातें सोते समय दिखाई दें या मन में स्वतन्त्रता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) स्वाधीनता, श्रावें, मन में उठो हुई. ऊँची या असम्भव, निरंकुशता, स्वच्छंदता, भाज़ादी।
कल्पना या विचार, पोने की दशा या स्वतः-अव्य. (सं० स्वतस् ) श्राप ही, क्रिया, निद्रावस्था में कुछ घटनादि देखना, अपने भाप, स्वयम् ।
सपन, सपना (दे०)। " लखन स्वप्न यह स्वतो-विरोधी-संज्ञा, पु० यौ० (सं० स्वतः नीक न होई"-रामा० ।
+विरोधी) आप ही अपना खंडन या स्वप्नगृह-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शयनागार, विरोध करने वाला।
स्वप्नालय, स्वाम-भवन, खाबगाह । स्वत्व-संज्ञा, पु. (सं०) अधिकार, हक। स्वप्नदोष-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) एक प्रकार संज्ञा, पु०-निजस्व, अपना होने का भाव, का प्रमेह रोग, निद्रा की दशा में वीर्य-पात अपनत्व । यौ०-स्वत्वधिकार । होने का रोग (वैद्य०)। स्वत्वाधिकारी-संज्ञा, पु. यौ० (सं० स्वप्नाना-स० कि० दे० । सं० स्वप्न-+ माना स्वत्वाधिकारिन् ) जिसके हाथ में किसी प्रत्य०) स्वम दिखाना, स्वप्न देना, सपनाना वस्तु का पूर्ण रूप से अधिकार हो, स्वामी, (दे०)। मालिक, अधिकारी।
स्वबरन- संज्ञा, पु. दे. (सं० सुवर्ण। सुबर्ण, स्वदेश-संज्ञा, पु. (सं०) अपना या अपने सोना, हेम, कनक, सुबरन (दे०), पूर्वजों का देश, मातृभूमि, वतन ।
अपना वर्ण। स्वदेशी वि० दे० (सं० स्वदेशीय ) अपने स्वभाउ*-संज्ञा, पु. द. (सं० स्वभाव )
देश का. स्वदेश-सम्बन्धी, स्वदेशीय। स्वभाव, सुभाव । “पहिचानेड तो कही स्वधर्म-पा, पु. (सं०) अपना धर्म । स्वभाऊ ''-रामा०। "स्वधर्मे मरणम् श्रेयः पर धौभयावहः" | स्वभाव संज्ञा, पु. (सं०) मनोवृत्ति, प्रकृति, -म. गी।
टेंव, बान, सदा रहने वाला मुख्य या मूल स्वधा -अव्य० (सं.) इसका उच्चारण गुण, पादत, मिजाज़, गुण, तासीर । "जो पितरों को हन्य देने में होता है। " यथा- | पै प्रभु स्वभाव कछु जाना"-रामा ।
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