Book Title: Bhasha Shabda Kosh
Author(s): Ramshankar Shukla
Publisher: Ramnarayan Lal

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Page 1854
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्राव स्राव - संज्ञा, पु० (सं०) बहना, गिरना, स्तरण, भरना, गर्भस्राव, गर्भपात, रस, निर्यास । स्रावक - वि० (सं० ) टपकाने, चुवाने या बहाने वाला, स्राव कराने वाला । स्रावी - वि० सं० खाविन्) बहाने वाला । स्त्रिग- संज्ञा, पु० दे० (सं० शृङ्ग) सींग, चोटी । त्रिजन संज्ञा, पु० दे० (सं० सृजन ) रचना, बनाना, सृष्टि करना, स्रजन (दे० ) । त्रिजना - स० कि० दे० (सं० सृजन) रचना, १८४३ बनाना, सिरजना, त्रजना (दे० ) । स्त्रिय - संज्ञा, खो० दे० (सं० श्रिय ) श्रिय, लक्ष्मी, कांति, ऐश्वर्य, शोभा । स्रुत - वि० दे० (सं० श्रुत) श्रुत, सुना हुआ । स्रुति - संज्ञा स्त्री० दे० (सं० श्रुति ) श्रुति, वेद | " जे कहुँ स्रुति मारग प्रतिपालहिं | सम्बन्ध का । स्वकीया संज्ञा स्त्री० (सं०) पतिव्रता, अपने ही पति की अनुरागिणी स्त्री । "कहत स्वकीया ताहि को ” मति० । स्वत* - वि० (दे०) स्वच्छ (सं०) साफ़ । स्वगत - संज्ञा, पु० (सं०) अपने ही से, अपने ही मन में, स्वगत कथन | स्वगत राव तब कहेउ विचारी - रामा० । क्रि० वि० अपने ही से, अपने-आप | "6 - स्वगत कथन – संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वगत, अश्राव्य, आरमगत, आप ही आप किसी पात्र का आप ही आप यों कहना कि उसे न तो कोई सुनता ही है और न वह किसी को सुनाना ही चाहता है ( नाटक ) । स्वच्छंद - वि० (सं०) स्वाधीन, स्वतंत्र, मनमाना काम करने वाला, निरंकुश | " जिमि स्वच्छन्द नारि बिन साहीं" - स्फु० । क्रि० वि० - मनमाना, निर्द्वन्द्व, बेधड़क । स्वच्छंदता - संज्ञा, खो० (सं०) स्वतन्त्रता, स्वाधीनता. आजादी | स्वच्छ — वे० (सं० ) शुद्ध, साफ़, निर्मल, पवित्र | शुभ, उज्वल, स्पष्ट, स्वच्छता-संज्ञा, स्रो० (सं०) पवित्रता, सफाई, उज्वलता, निर्मलता, शुद्धता । स्वच्छना – स० क्रि० दे० (सं० स्वच्छ ) शुद्ध या निर्मल करना, पवित्र या उज्वल करना, साफ करना । स्वच्छी — वि० दे० (सं० स्वच्छ) स्वच्छ, साफ, - रामा० । स्रुतिमाथ* – संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० श्रुति + मस्तक ) विष्णु भगवान । और भरते नहीं "ॐ० श० । स्रोनित – संज्ञा, पु० ( दे० शोणित ) शोणित, रक्त, खून, लोहू, सोनित (दे० ) । " स्रुवा - संज्ञा, पु० (सं०) हवनादि में प्राहुति देने का लकड़ी का एक चम्मच या चमचा | "चाप सुवा सर आहुति जानू' - रामा० । स्त्री संज्ञा स्त्री० दे० (सं० श्रेणी) पंक्ति, पाँति, क़तार, समूह | जनुतहँ बरस | कमल-सित-सेनी ". -रामा० । C स्रोत -संज्ञा, पु० (सं० स्रोतस् ) निर्भर, पानी का झरना, सोता, धारा, नदी, चश्मा (फ़ा० ) 1 स्रोतस्वती स्रोतस्विनी -संज्ञा, स्त्री० (सं०) नदी । स्रोता* -संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रोता ) सुनने वाला, कथा सुनने वाला । " स्रोतावक्ता ज्ञान-निधि ". - रामा० । स्रोन, स्रौन -संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रवण ) श्रवण, कान, कर्ण । खौन - रसना में रस 66 स्वजन 66 aa स्रोत की प्यास, विषित रामसायक- निकर - रामा० । " स्वः -- संज्ञा, पु० (सं०) स्वर्ग, बैकुण्ठ । स्व- - वि० (सं०) निल का, अपना । स्वकीय - वि० पु० (सं०) निजका, अपने Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उज्वल । स्वजन - संज्ञा, पु० (सं०) अपने सम्बन्धी, अपने कुटुम्बी, नातेदार, रिश्तेदार, आत्मीयजन | "स्वजनं हि कथम् इत्वा सुखिनः स्याम् माधव For Private and Personal Use Only 39 - भ० गी० ।

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