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समुज्ज्वत्त
समुहाना A HARANPAHARIYANAMAHARAMPARKHAND
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मिलान, मिश्रण, एक अर्थालंकार जिसमें समुदाय--संज्ञा, पु. (सं०) समूह झंड, पाश्चर्य, बिषादादि अनेक भावों के एक ढेर । "सद्गुरु मिलेतें जाहि जिमि, संशय-भ्रमसाथ उदित होने अथवा एक ही कार्य के समुदाय" -- रामा० । वि०-सामुदायिक । लिये अनेक कारणों के होने का कथन हो समुदाय -- संज्ञा, पु० दे० (सं० समुदाय ) (अ० पी०) वि. समुचित ।।
समुदाय, पमूह, झुड, समुदाउ (ग्रा० )। मनुज्ज्वल-वि० ( सं० ) शुन, बहुत ही सामुद्र-संज्ञा, पु. (सं०) अंबुधि. सागर, साफ, अति उज्वल, अतिस्वच्छ शुक्ल, धवल ।। सिंधु. उदधि, पयोधि, नदीश, वह जल-राशि संज्ञा, स्त्री० (सं०) समुज्वलता।
जो चारो ओर से भूमि के तीन-चौथाई समुझ समुझि संज्ञा, स्त्री० दे० (हि.
भाग को घेरे हैं, किसी वस्तु-गुण या समझ) समझ, बुद्धि अक्, सामुझि (दे०)। विषयादि का बड़ा आगार। सम्झना स० कि० दे० ( हि० समझना ) सपद्र-फेन-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) समुदसमझना, सोचना, बिचारना. ज्ञात करना। फेन, समुद्र का फेन ( औषधि विशेष) " हरित भूमि तृन-संकुलित समुझि परै नहिं | सिधु-झाग। पंथ ".--- रामा० । स० रूप-समुझाना, समुद्रयात्रा --- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) समुद्र सम्भावना, प्रे० रूप----सम्भवाना। द्वारा दूसरे देशों में जाना, समुद्री यात्रा । समुझान --- संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० समझना) समुद्रयान----संज्ञा, पु. यौ० (सं०, पोत,
समझने की क्रिया या भाव, विचार, समझ। जहाज़ । समुत्थान--संज्ञा, पु० (सं०) उत्थान, उठने समुद्रलवण-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) समुद्र की क्रिया, उन्नति, उदय, श्रारंभ, उत्पत्ति, के पानी से बना हुश्रा नमक, समुदलौन रोग का निदान ।
(दे०)। समुत्थित-वि० (सं०) उठा हुघा, उन्नत । | समुद्रशाप -संज्ञा, पु० (सं०) समुद्र-मोग्य " कल निनाद समुस्थित था हुधा'"-प्रि० । (दे०) एक औषधि विशेष ।
समुन्नत-वि. (२०) सब प्रकार से ऊँचा मसत्यापन--संज्ञा, पु. (सं०) सब प्रकार उठा हुआ, बहुत ऊँचा प्राप्ताभ्युदय । उठाना, उन्नत करना । वि० --समुत्थाप- समुन्नति---संज्ञा, स्त्री. (सं०) यथेष्ट उन्नति, नीय, ममुन्यापक. समुत्थापित । यथोचित उत्थान, तरक्को, पुर्ण वृद्धि, उच्चता, समुद-संज्ञा, पु० दे० (सं० समुद्र ) समुद्र, बड़ाई, महत्व । वि० समुन्नत । सागर. सिंधु । वि० (सं०) आनंद या हर्ष । समुन्नयन-- संज्ञा, पु० (सं०) सब प्रकार युक्त, मोद-सहित, समोद।
ऊपर उठाना । समुद-फल--संज्ञा, पु० दे० यौ० ( हि०) समुल्लास--संज्ञा, पु. (सं०) आनंद, हर्प, एक औषधि विशेष, समुद्र-फल ।
खुशी, प्रसन्नता, ग्रंथ का परिच्छेद पुस्तक का समुद-फैन--संज्ञा, पु. द. यौ० (हि.) एक अध्याय या प्रकरण । वि० समल्लासित ।
श्रौषधि विशेष, समुद्र का फेना, समुद्र-फेन । समहा-वि० दे० (सं० सम्मुख ) सम्मुख समुद-लहर संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० या सामने का, सौंह (ग्रा०) । क्रि० वि० समुद्र लहरी ) एक प्रसिद्ध वस्त्र ।
(दे०) श्रागे, सामने, सौह (ग्रा०) । समुद-सांख-संज्ञा, पु० दे० (सं० समुद्र- समहाना---अ० क्रि० दे० (सं० सम्मुख ) शोष ) एक औषधि विशेष, समुद्रशोष। । सामने या सम्मुख प्राना, लड़ने आना, समुदाइ-संज्ञा, पु० दे० (सं० समुदाय) सौहाना (ग्रा.)। " अतिभय त्रसित न समूह, ढेर, झुड, समुदाय, समुच्चय । कोउ समुहाई"-रामा० ।
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