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साँड़ १७३५
साँभर साँड - संज्ञा, पु० दे० (सं० वंड) मृतक सांध्य-वि० (सं०) संध्या का, संध्याकी स्मृति के रूप में दाग़ कर छोड़ा हुआ सम्बन्धी। बैल, अच्छे बच्चे होने के लिये केवल जोड़ा साँप--संज्ञा, पु. ( सं० सर्प, प्रा. सप्य ) खिलाने को पाला हुआ बैल या घोड़ा। एक रेंगने वाला विपैला लंबा क्रीड़ा, सर्प,
" छाँड़ि दीन्ह तेहि साँड़ बनाई .... तु.।। नाग, भुजंग । स्त्री० साँपिन, साँपिनी । साँडनी, साँडिनी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. मुहा०--कलेजे पर साँप लोटनासाँडिया ) शीघ्र गामिनी ऊँटिनी।
ईयादि से) बहुत ही दुखी होना। साँप माँड़ा--संज्ञा, पु० दे० (हि. सांड़ ) ऊपर सूंघ जाना-निर्जीव होना, मर जाना । साँड़ा, एक जंगली जंतु जिसकी चर्बी दवा के
साँप चा दर की दशा-बड़े दुविधा या काम पाती है।
असमंजन की अवस्था । “ भइ गति साँपसांडिया--संज्ञा, पु० दे० ( हि० साँड़) छठू दरि केरी "--रामा० । मुहा०शीघ्रगामी, ऊँट ।
श्रास्तीन का साँप होना-- अपना आश्रित मांढ--संज्ञा, पु० (३०) माँड, अँडुआ बैन ।
व्यक्ति होकर अपना ही घातक होना. अंडू (ग्रा०)।
विश्वास-घाती होना, गुप्त शत्रु होन' । मांत--वि० (सं०) अंत-पहित, जिसका अत
आस्तीन में साँप पालना-अपने ही पास हो । वि० दे० (सं० शांत ) शांत, नीधा, अपने घातक शत्रु को आश्रय देना। क्रोध-रहित, सांत (दे०)। "मांत सकल
सांपत्तिक- वि० (सं०) संपत्ति या धन से संमार है, केवल ब्रह्म अनंत...--क० वि० ।
सम्बन्ध रखनेवाला, आर्थिक, माली (फ़ा०); मालि-- अव्य० द० (सं० शांति : शांति ।
सांपत्य- वि० (सं०) संपत्ति-सम्बन्धी। अध्य० (दे०) बदला, ख़ातिर, हेतु, लिये
सापद्य-वे. (सं.) धन-सम्बन्धी। संती (ग्रा.)। मांन्वना-संज्ञा, स्त्री० (सं०) धैर्य, प्राश्वासन.
साँपधरन--- संज्ञा. पु. दे. यो. (सं०
स धारणा ) महादेव, शिव । धीरज, ढारम, ढाढस, किसी दुखी व्यक्ति को उसका दुख कम करने को शांति या
माँपिन, सांपिनी- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० धीरज देना।
सर्पिणी ) साँप की स्त्री, मादा साँप, सर्पिणी। सांदीपनि-- संज्ञा, पु. (सं.) एक मुनि सांप्रत, साम्प्रतम् अन्य० (सं०) इसी जिनके यहाँ श्रीकृष्ण और बलदेवजो ने धनु- समय, सद्यः, तत्काल, अभी, अधुना,
र्वेदादि सीखा था, और विद्या पढ़ी थी। इदानीम् । वि० साम्प्रतिक-श्राधुनिक । सांध-संज्ञा, पु. ( सं० स -- अंध ) अंध के सांप्रदायिक-वि. (सं०) किसी संप्रदाय सहित । ( सं० संधान) लषय, निशाना। का, किसी संप्रदाय-संबंधी,सप्रदाय-विषयक। साँधना--स० क्रि० द. ( सं० सधान ) सांच-संज्ञा, पु. (सं०) जाँववती के गर्भ निशाना लगाना या साधना, लक्ष्य करना. से उत्पन्न श्रीकृष्णजी के पुत्र, ये प्रति संधान करना । “वरतल चाप रुचिर सर सुन्दर थे किन्तु दुर्वारण और श्रीकृष्ण के साँधा ----रामा० । स० कि० दे० ( सं० । शाप से केढ़ी हो गये थे। संधि ) मिलाना. मिश्रण । स० क्रि० द० सांभर--संज्ञा, पु० दे० (सं० संभल, साँभल) (सं० साधन ) साधना, पूर्ण करना । राजपूताने की एक झील, जिसके पानी से " तेहि महँ विप्र माँस खल गाँधा"--- नमक बनता है। सांभर झोल के पानी से रामा० ।
बना नमक । एक प्रकार की मृग-जाति ।
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