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सावं
१७५२
सावित्र
साव-वि० दे० ( सं० श्याम ) श्याम, काला। सावधान- वि० (सं०) सतर्क, सचेत, सजग "रकत लिखे आखर भये सावाँ'-पद०। होशियार, ख़बरदार । सावकरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० श्यामकर्ण) सावधानता-संज्ञा, सी. (सं०) सचेतता, श्यामकर्ण, घोड़ा । " सावकरन धोरे बहु सतर्कता, सजगपन, होशियारो, ख़बरदारी। जोरे "--स्फु०।
सावधानी-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० सावसावंत, सावत-संज्ञा, पु० दे० (सं० सामत) धानता) सावधानता, सतर्कता, सचेतता,
___ होशियारी, खबरदारी, सजगता। सामंत वीर, योद्धा, ज़मीदार । " बड़े बड़े सावत तह ठाढ़े एक तें एक दर्द के लाल"
सावन-संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रावण ) बारह
महीने में से एक महीना जो अषाद के -प्रा. खं।
बाद और भादों से पूर्व होता है, एक प्रकार सावर-वि० दे० (सं०) श्यामला, साँवला, श्यामला । स्त्री०-सावरी।
का सावन महीने का गीत (पूरब) । "राम सावाँ-संज्ञा, पु० (दे०) साँवा नामक एक
नाम के बरन दोउ, सावन-भादौं मास"अन्न | "सावाँ जवा जुरतो भरि पेट"-नरो।
रामा० । संज्ञा, पु० (सं०) एक सूर्योदय से साव-संज्ञा, पु० दे० ( फा० शाह ) सेठ,
दूसरे तक चौबीस घंटे का समय, दड,
(ज्यो. )। साहु, साहूकार, महाजन, धनिक, साह ।
सावनी-- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० श्रावणी ) संज्ञा, पु० (दे०) स्त्राव (सं.)।
वह उपकरण या सामान जो वर के यहाँ से सावक -- संज्ञा, पु० दे० ( मं० शावक ) शिशु,
कन्या के यहाँ व्याह के प्रथम वर्ष सावन में बच्चा, छोटा बच्चा । " जहँ बिलोक मृगसावक-नैनी"-रामा० । संज्ञा, स्रो० (दे०)
भेजा जाता है, सावन की पूर्ण माती या
पूनो । वि०-सावन का (की), सावन-संबंधी । सावकता।
मावयव वि० (सं०) अवयव सहित, खंडसावकरन-संज्ञा, पु० दे० (सं० श्यामकर्ण )
सहित, सांग। एक प्रकार का घोड़ा, श्यामकर्ण ।।
सावर- संज्ञा, पु. दे. (सं० शावर ) लोहे सावकाश-संज्ञा, पु०(सं० फुरसत, अवकाश
का एक लंबा औजार, शिवकृत एक प्रसिद्ध युक्त, सामर्थ्य, समाई (दे०) छुट्टी, अवापर,
तंत्र-मंत्र शास्त्र, माबर (दे०)। " साबर मौका, विस्तृत, सावकास (दे०)। "साव
मंत्र जाल जेहि सिरजा"-रामा० । संज्ञा, काश सब भूमि समान".- रामः ।
पु० दे० (सं० शवर ) एक तरह का मृग, साधकासी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) सावकाश
साँभर।
सावर्ण-रावर्णि-संज्ञा, पु. (सं०) चौदह सावचेत*-वि० (सं०) सावधान, सचेत,
मनुओं में से पाठवें मनु जो सूर्य के पुत्र सतर्क, सजग।
हैं, उनकी आयु का समय, एक मन्वन्तर । सावज-संज्ञा, पु. (दे०) बनैले पशु या
मावा- संज्ञा, पु. द० सं० श्यामक) काकुनजन्तु, हरिण प्रादि ऐसे वनजीव जिनका जैसा एक अन्न । योग-साँवा-काकुन । लोग शिकार करते हैं। " सावज ससा "सावा जवा जुरतो भरी पेट"-नरो। सलक संसारा''-~कवीर।
सावित्र-संज्ञा, पु० (सं०) सूर्य, वसु, शिव, साधत-संज्ञा, पु० दे० ( हि० सौत ) सौतों ब्रह्मा, ब्राह्मण, यज्ञोपवीत, एक अस्त्र । के श्रापस का द्वेष, ईर्ष्या, सौतिया डाह । ' सावित्रेव हुतासनः " - रघु० । वि. सावध-वि० दे० ( सं० सावधान ) सचेत, -सूय या सविता का, सविता-संबंधी, सावधान ।
सूर्य-बंशी।
(सं०) सामर्थ्य ।
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