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समवायी
MAESYONER MEMBAK
क्रिया सामन्य विशेष सयवायाभावा सप्तैव पदार्थाः - वै० द०
यौ ०
१७०७
० - समवाय
मन्त्र ।
समवायी - वि० (सं० समवायिन् ) जिसमें नित्य या समवाय संबंध हो ।
रामवृत्त संज्ञा, पु० (सं०) वह छंद जिसके चारों पाद या चरण समान हों (पिं० ) । समवेत - वि० सं० जमा या इकट्ठा किया हुआ एकत्र, इक्ट्ठा, संचित | "धर्म-क्षेत्रे, कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवाः " भ० गी० ।
समवेदना -- संज्ञा स्त्री० (सं० ) किसी की विपत्ति या दुःख दशा में समान रूप से साथ देना या तदनुभव करना, संवेदना । समशीतोष्ण कटिबंध - संज्ञा, पु० यौ०
(सं०) वे भूमि-भाग जो शीत कटिबंध और उष्ण कटिबंधों या कर्क और मकर रेखाओं के बीच में उत्तरी और दक्षिणी वृत तक हैं । समष्टि - संज्ञा, स्रो० (सं० ) समाहार, सब का समूह, समस्त, सब का सब । विलो०व्यष्टि ।
समसर-संज्ञा स्त्री० (दे०) समानता,
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सदृशता, बराबरी | दमक दसनि ईषद हँसन, उपमा समसर है न समसूत्रशन -संज्ञा, ५० यौ० (सं०) डोरी | से नापना, पानी की थाह या गहराई लेना
--नाग० ।
या नापना ।
समसेर - संज्ञा, स्रो० दे० ( फा० शमशेर ) तलवार, खड्ग |
समस्त - वि० (सं०) सम्पूर्ण, समग्र, सारा, सब, कुल, पूर्ण, पूरा, एक में मिलाया हुधा, संयुक्त, समास-युक्त, सामासिक । समस्थली - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) गंगा - यमुना नदियों के बीच का देश, अंतर्वेद । संज्ञा स्त्री० (सं०) समतल भूमि समस्थल । समस्या - संज्ञा स्त्री० (सं० ) कठिन या जटिल प्रश्न, गूढ़ या गहन बात, उलझन, कठिन प्रसंग किसी पद्य का अंतिमांश
समाज
जिसके आधार पर पूर्ण पद्य रचा जाता है, संघटन, मिश्रण, मिलाने का भाव या क्रिया । समस्याप्रति -संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) किसी समस्या के सहारे किसी पद्य को पूर्ण करना । समाँ-संज्ञा, पु० दे० ( सं० समय ) वक्त, समय । समाँ बाँध (बँधना ) -ऐसी रोचकता से गाना होना कि लोग सन्न हो जायें: शोभा, छटा सुन्दर दृश्य । 'चमकने से जुगुनू के था एक समाँ " । समा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० समय ) समय, वक्त, aur मौका, समौ (ग्रा० ) । संज्ञा, स्त्री० (दे०) साल, दृश्य, छटा । "तेरो सो आनन चन्द्र, लसै तु श्रानन में सखि चन्द समा सी' - भावि० । संज्ञा, पु० (दे० ) एक कदन, साँवा । समाई -- संज्ञा स्त्री० दे० (हि० समाना) औक़ात गुंजाइश, फैलाव, विस्तार, सामर्थ्य, शक्ति समाव -- संज्ञा, ५० दे० (हि० समाना) पैठार, गुंजाइश, चौकात, विस्तार, सामर्थ्य, प्रवेश | "जहाँ न होय समाउ, श्रापनो तहाँ Eat जनि जा - स्फु० । समाकुल- वि० (सं०) व्याप्त, व्याकुल, विकल, आकुल, भरा हुआ । समागत- वि० (सं०) श्राया हुआ, प्राप्त । समागम - संज्ञा, पु० (सं०) श्राना, श्रागमन, मिलना, भेंट मुलाक़ात, मैथुन, रति । समाचार - संज्ञा, पु० (सं०) संवाद, हाल, ख़बर | " समाचार जब लछिमन पाये रामा० । यौ० संज्ञा, पु० (सं० ) समान
साउ
दुखी,
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घिरा,
व्यवहार ।
समाचारपत्र -- संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) प्रखबार (फा० ) गज़ट (अं०) वह पत्र जिसमें अनेक प्रकार के समाचार हों । समाज-संज्ञा, पु० (सं०) समूह, सभा, समिति, दल, वृंद, समुदाय, संस्था, एक स्थान-निवासी तथा समान विचाराचार वाले लोगों का समूह, किसी विशेष उद्देश्य या कार्य के लिये अनेक व्यक्तियों की बनाई