________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वैश्वानर
व्यतिरेक वैश्वानर-संज्ञा, पु. (सं०) अग्नि, चेतन, वौल-संज्ञा, पु० (दे०) गोंद, गुग्गुल, परमात्मा। “वैश्वानरे हाटक-संपरीक्षा" धूप विशेष । -स्फु०।
| व्यंग्य - संज्ञा. पु. (सं०) व्यंजना वृति से वैषम्य-संज्ञा, पु० (सं०) विषमता। प्रगट शब्द का गूदार्थ, बोली, ताना, चुटकी, वैषयिक-वि० (सं०) विषय-संबंधी, विषय व्यंग (दे०) । "अलंकार अरु नायिका, छंद का । सज्ञा, पु०-विषयी, लंपट ।। लक्षणा व्यंग'-स्फु० । वैष्णव--संज्ञा, पु० (सं०) श्राचार विचार व्यंजक - संज्ञा, पु० (सं०) प्रकाशक, विशेष से रहने वाले विष्णूपासकों का एक संप्रदाय,
भाव बोधक शब्द । विष्णु का उपासक । त्री० चैगावी । वि० ।
व्यंजन --- संज्ञः, पु० (सं०) होने, व्यक्त या -विष्णु का, विष्णु-संबंधी।
प्रकट करने का भाव या क्रिया, पका भोजन वैष्यावी-रंज्ञा, स्त्री० (सं०) विष्णु-शक्ति,
जिसके छप्पन भेद हैं, साग-तरकारी श्रादि. लघमी, तुलसी, दुर्गा, गंगा !
अच्छा भोजन, वह अक्षर जो स्वर की वैसा--सर्व (दे०) उसके समान या तुल्य सहायता बिना बोला न जावे, वर्ण-माला तत्सदृश, उसके ऐसा या जैसा । यौ० ऐसा
के क से ह तक के सब वर्ण, अंग, अवयव । वैसा ----साधारण । स्त्री० (दे०)-चैसी- व्यंजना-संज्ञः, स्त्री. (सं०) प्रगट करने की उधर की भोर ।
क्रिया, शब्द की वह शक्ति जिससे उसके वैसे-- वि० (दे०) बिना मूल्य, सेंत-मेंत, सामान्यार्थ को छोड़ विशेषार्थ व्यक्त हो । उसी प्रकार, उसी तरह । यौ० ऐसे-वैसे | व्यक्त-वि० सं०) स्पष्ट, प्रकट, साफ़ । साधारण, भले-बुरे ।
संज्ञा, स्त्री०-व्यक्तता, व्यक्तत्व । घोक --अव्य० (दे०) पोर, तरफ़, दिशा। व्यक्तगणित---संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह वोछा--वि० (द०) श्रोछा, तुच्छ, नीच। गणित जो प्रकट अंकों के द्वारा किया जावे, घोट--- संज्ञा, पु. (अं०) मत, राय, बोट (ग्रा.)।
व्यक्ति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) व्यक्त होने का वोटर-संज्ञा, पु० (अं०) मत देने वाला। भाव या क्रिया, प्रकट होना, किसी शरीरधारी वोड़ना-स० क्रि० (दे०) फैलाना, पसारना, का शरीर, मनुष्य, आदमी, व्यष्टि, जन, स्वतंत्र
पोरना, ओना (ग्रा.)। " दास दान एवं पृथक सत्ता वाला । संज्ञा, स्त्री०तोपै चहै, दृगपल अँजुरी वोड़ "~-रतन। व्यक्तित्व, वैयक्तिक । वोद-बोदा-वि० (दे०) गीला, भीगा, योद, व्यग्र---वि० (सं०) व्याकुल, उद्विग्न, विकल, प्रादा (ग्रा.)।
भय-भीत, काध्य में लीन या फंसा हुश्रा, वोदर-संज्ञा, पु० दे० ( सं० उदर ) उदर, घबराया हया । संज्ञा, स्त्री०-व्यग्रता । पेट, योदर ( ग्रा० )। " जग जाके वोदर व्यतिक्रम-संज्ञा, पु० (सं०) क्रम का विगाड़ बसै, तिहि त ऊपर लेय"-दास । या उलट-पलट. विघ्न, वाधा । संज्ञा, स्त्री०वोर-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० भोर) श्रोर, तरा। व्यतिक्रमता। वोल्लाह-संज्ञा, पु० (सं०) पीली अयाल और व्यतिरिक्त-क्रि० वि० (सं०) सिवा, अलावा पूंछ वाला घोड़ा।
अतिरिक्त, अन्य, भिन्न । घोहित-संज्ञा, पु० दे० (सं० वोहित्थ ) व्यतिरेक-संज्ञा, पु. (सं०) भेद, अभाव, जहाज़, बड़ी नाव । “शंभु चाप बड़ वोहित अतिक्रम. अंतर, एक अर्थालंकार जहाँ पाई "-रामा।
उपमान से उपमेय में कुछ और अधिकता घोहित्थ-संज्ञा, पु० (सं०) जहाज, बड़ी नाव ।। या विशेषता कही जाय (अ.पी.)। भा० श० को०-२०३
r
a
.
/..
--
-
-
श्रक-गणित,
For Private and Personal Use Only