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शांतनु
शाख शांतनु- संज्ञा, पु. (सं०) द्वापर के चंद्र- शाकटायन--संज्ञा, पु. (सं०) एक बहुत वंशीय २१ वें गजा, भीष्मपितामह के पुराने व्याकरण कार इनका उल्लेख पाणिनि पिता (महा०) । "शांतनु की शांति कुल- ने किया है, एक अर्वाचीन वैद्याकरण । क्रांति चित्र अंगद को' - रत्ना० ।
"त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्य'-कौ० व्या० । शांता--संज्ञा, स्त्री० (सं.) राजा दशरथ की
शाकद्वीप -- संज्ञा, पु० सं०) सात द्वीपों में कन्या जो ऋष्यशृंग को व्याही थी, रेणुका ।
से एक ( पुरा. ), ईरान और तुर्किस्तान के शांति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) नीरवता, मौनता,
बीच में पार्टी और शकों का देश । स्तब्धता. स्थिरता, सौम्यता, उपशम,
शाकद्वीपीय-वि० (सं०) शाकद्वीप का। विराग, सन्नाटा, रोगादि नाश तथा चित्त
संज्ञा, पु.---ब्राह्मणों का एक भेद, मग का ठिकाने होना, स्वस्थता, मरण, धीरता,
ब्रह्माण । गंभीरता, विरागता, अमंगल या विघ्न वाधादि के मिटाने का उपचार, दुर्गा, वासनादि
शाकल संज्ञा, पु. (सं०) टुकडा, खंड,
ऋग्वेद की एक शाखा या संहिता, मद्र देश विहीनता । " शांतिरापः शांति रोषधयः"
का एक शहर, हवन-सामग्री, शाकल्य । -- य. वे।
शाकल्य -- संज्ञा, पु. (सं०) होम या हवन शांतिकर्म-संज्ञा, पु. यो. (सं०) पाप
की वस्तु या सामग्री, एक प्राचीन वैयाग्रहादि-जन्य अमंगल के निवारण का उप.
करण । " लोपः शाकल्यस्य" - सि. कौ० चार ।
( व्या०)। शांतिकारी-शौतिकारक-संज्ञा, पु० (सं०)
शाका-संज्ञा, धु० (सं०) शालिवाहन का शांति करने वाला । स्त्री०-गांतिकारिणी। शांतिदायक शातिदायी-शांतिप्रद-वि.
संवत् , लाका (दे०)।
शाकाहार--- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) निरामिष (सं०) शांति देने वाला। सी०-शांति
भोजन, अन्न, तरकारी और फलों का भोजन । दायिनी।
वि० - शाकाहारी। शांति-पाठ-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वेद के
शाकाहारी-- वि० यौ० (सं०) शलाहारी, शांति कारक मंत्र।
निरामिष भोजी। विलो०-मांसाहारी । शांबरी-संज्ञा, स्त्री० (पं०) इन्द्रजाल, जादू
शाकिनी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) चुडैल, डाइन। गरनी । संज्ञा, पु०-लाध पेड़ । शांबुक-शावूक-संज्ञा, पु० दे० (सं० शंबुक
शाकुन-वि० (सं०) शकुन-संबंधी, पक्षियों
के संबंध का। शंबूक ) घोंघा, छोटा, शंख, एक शूद्र तपस्वी ( राम राज्य-वाल्मी० )।
शाकुनि- संज्ञा, पु० (सं०) व्याधा, बहेलिया। शाँभर-- संज्ञा, स्त्री०, पु. (दे०) नमक की शाक्त-वि० (सं०) शक्ति-संबंधी । संज्ञा, पु. सांभर झील, ( राज.)।
-शक्ति का उपासक, तांत्रिक। शाइस्तगी-संज्ञा, स्त्री. (फा०) सभ्यता,
शाक्य-संज्ञा, पु. (सं०) नेपाल की तराई शिता, भलमनसी आदमीयत ।
की एक प्राचीन क्षत्रिय-जाति, बुद्ध देव शाइस्ता-वि० दे० ( फा० शाइस्तः ) सभ्य,
की जाति । शिष्ट, भलामानुष, विनम्र विनीत ।
शाक्य पनि-शाक्यसिंह-संज्ञा, पु. यौ० शाक-संज्ञा, पु. ( सं०) भाजी, साग, (सं०) गौतम बुद्ध जी। तरकारी । वि०-- शक जाति संबंधी, शकों शाव-संज्ञा, स्त्री. (फ़ा०) शाखा, (सं०)
__डाली, टहनी मुहा० --शाख निकालना
का।
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