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श्रृंगारना
शेरदहां संयोग और वियोग या विप्रलंभ, इष्टदेव के चार वर्गों में से प्रथम श्रेष्ठ वर्ग, बुजर्ग, को पति और निज को पत्री मान कर की । बड़ा, मुसलमान-धर्माचार्य। स्त्री०-शेरवानी। गई माधुर्य भाव की भक्ति सिायों का वस्त्रा- शोष --- संज्ञा, पु. द० सं० शेष ) बाकी, भरण से स्वदेह सजाना, सजावट, बनाव- समाप्त, सेप(दे०), एक नाग-राज. शेष जी। चुनाव, श्रृंगार सोलह हैं. किसी वस्तु को शेव-चिल्ली -संज्ञा, पु. ( अ०-: हि० ) शोभा देने वाले साधन, सिंगार, सिंगार एक कल्पित मूर्ख, बड़े मंसूबे बाँधने वाला.
एक मूर्ख मसखरा । शृंगारना-स० क्रि० दे० (सं० श्रृंगार+ना-शेवर-संज्ञा, पु. (40) सिर. माथा, किरीट, प्रत्य ) सजाना, सँवारना, शृंगार करना, मकट शीर्ष. चोटी पिरा. शिवर ( पर्वतसिंगारना (दे०)।
भंग ) सर्व श्रेष्ठ या उत्तम, वस्तु या व्यक्ति श्रृंगार-हाट--संज्ञा, स्त्री० यो० (सं० शृङ्गार- टगण का पाँचवा भेद (15-पि.)। घाट-हि० ) वह बाजार जहाँ रंडियों रहता लावल-----संज्ञा, पु. ( अ० शेख ) कछवाहे हों, सिंगारहाट (द०)।
राजपूतों की एक शाखा! शृंगारिक-वि० (सं०) शृंगार संबंधी।
शेखी---- संज्ञा, स्त्रो. (फा०) अहंकार, घमंड, शृंगारिणी-संज्ञा, स्त्री. (सं०) स्रग्विणी
गर्व, शान, अकड़, ऐठन, डींग । मुहा०छंद (पिं०)। शृंगारित--वि० (सं०) सजाया हुआ, शृंगार
शेखी बघारना ( हाँकना या मारना) किया हुआ, अलंकृत, सुसजित ।
-----बढ़ बढ़ कर बात करना, डींग मारना । श्रृंगारिया-संज्ञा, पु० दे० (सं० शृद्धार ---इया.
शेषी भाड़ना (निकालना)--गर्व दूर
करना। शेखी भूनना (मुलाना )प्रत्य०) वह पुरुष जो देव-मूर्तियों का शृंगार
शान या गर्व दूर करना ( होना)। शेखो करता हो, बहुरूपिया, सिंगारिया (दे०) । शृंगि-संज्ञा, पु० (सं०) सिंगी मछली । संज्ञा,
दिखाना-शान दिखाना। यो०---गोवो.
शान । पु. ( सं० शृङ्गिन् ) सींग वाला ! शृंगी-संज्ञा, पु. (सं० शृडिन् ) सींग वाला
शेखीबाज-वि० (फ़ा०) अभिमानी, घमंडी, पशु, वृक्ष, हाथी, पहाड़, शमीक ऋषि के पुत्र !
पहंकारी, झूठी डींग मारने वाला । संज्ञा, एक ऋषि जिनके श्राप से अभिमन्यु-पुत्र ।
स्त्री०-शेखीबाजी। राजा परीक्षित को तक्षक ने काटा था,
शेर--संज्ञा, पु० (फ़ा०) व्याघ्र, बाघ, नाहर, कनफटों के बजाने का सींग का एक बाजा,
सिंह, बिल्ली की जाति का एक भयावना
हिंसक पशु। स्त्री०-शेरनी । मुहा० --शेर महादेव जी, शिव जी, ऋषभक भामक
होना-निर्भीक और पृष्ट होना, अत्यंत एक अष्ट वर्गीय औषधि (वैद्य०)। शृंगीगिरि-संज्ञा, पु. यौ। (सं०) वह
वीर और साहसी व्यक्ति । संज्ञा, पु० (अ०) प्राचीन पहाड़ जहाँ शृंगी ऋषि तपस्या
उर्दू, फारसी और अरबी के छंद के दो करते थे।
चरण । “ कसन गुफ्ता शेर हमचुं सीन शृग-शृगाल-संज्ञा, पु. ( सं० शृगाल ) ऐनो, दाल, ये"...सादो० । संज्ञा, स्त्रीसियार, गीदड़, स्यार।
शेवानी-शेर कहना। अजि--संज्ञा. प. (सं.) कंस का एक भाई शेरदहां--वि० (फ़ा०) जिसका मुँह शेर का (पुरा०)।
सा है, जिसके छोरों पर शेर का सा मुंह शेख--संज्ञा, पु. (अ०) पैग़म्बर मुहम्मद के बना हो । संज्ञा, पु०-शेर के मुंह की सी घर्ड वंशज मुसलमानों की उपाधि, मुसलमानों वाला. पीछे संकरा और आगे चौड़ा घर ।
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