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शेरदिल
शैलपति-शैलराज शेरदिल-वि० चौ० (फा०) साहसी या शेषाचल -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक पर्वत वीर हृदयी। संज्ञा स्त्री०-शेरदिली। (दक्षिण)। शेर पंजा--संज्ञा, पु० यौ० ( फ़ा० शेर - शेषावस्था-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वृद्धापन, पंजा-हि. ) शेर के पंजे की प्राकृति का एक बुढ़ापा, अंत की दशा। अस्त्र, बघनख, बबनहा नामक एक अस्त्र । शेषोत्त--वि० (सं०) अंतिम कथन, अंत में शेर बबर--संज्ञा, पु. (फा०) केहरी, केसरी, कहा गया। सिंह, बड़ा व्यान।
| शैलान---संज्ञा, पु० (अ०) अज़ाजील फरिश्ता शेल--संज्ञा, पु० (पं०) सेल, बछी, भाला। का वंशज एक तमोगुणी देव जो लोगों शेलु- संज्ञा, पु० (दे०) मेथी का साग: को बहका कर कुकर्म कराता है (मुसल०) । शेरवानी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) अंग्रेजी ढंग भूत. त, दुष्ट देव-योनि, दुष्ट व्यक्ति, के काट का एक प्रकार का अंगा, अचकन, बदमाश, नटखट । मुहा० ---शैतान की चपकन ।
प्रांत-बहुत ही लंबी चीज़ । शेवाल- संज्ञा, पु. द० (सं० शैवाल ) सेवार, शैतानो --संज्ञा, स्त्री० ( अ० शैतान ) दुष्टता, जल की घास, शैवाल ।
पाजीपन, शरारत, बदमाशी। वि० --शैतान शेष--संज्ञा, पु. (सं०) बाकी, बची वस्तु, का, शैतान-संबधी, नटखट, दुष्टतापूर्ण । अध्याहार, किसी वाक्य का अर्थ करने को मुहा० यो०--शैतानी-वा-शरारत ऊपर से लाया गया शब्द, समाप्ति, अंत, से भरा उलझन का काम । सहन फनों का सर्पराज, शेषनाग, जिसके शैत्य-संज्ञा, पु० (सं०) शीतता, शीतलता, फनों पर पृथ्वी ठहरी है (पुरा० ), बलराम ठंढक, गर्दी। लक्ष्मण, एक दिगाज, परमेश्वर, टगण का शैथिल्य---संज्ञा, पु० (सं०) शिथिलता, पाँचवाँ भेद, छप्पय का २५वाँ भेद पिं०), ढोलापन, सुस्ती। घटाने से बची संख्या (गणि.) । वि० -- | शैल-----ा, पु. (सं०) पहाड़, पर्वत, शिलाबचा हुना, बाक़ी. ख़तम, समाप्त, अंत को जीत. चट्टान, सैल (दे०)। "नाथ शैल पर प्राप्त ।
कपिपति रहई"-रामा० । शेषधर-शेषन-----संज्ञा, पु० (सं०) शिवजी। शैलकुमारी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) शेषनाग- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अपने शैक्षकि मारी, पार्वती जी । “ सुनत वचन सहस्र फनों पर पृथ्वी को धारण करने कह शैल कुमारी '..-- रामा० । वाला सर्पराज !
| शैलगंगा---संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) गोवर्द्धन शेषर*-संज्ञा, पु० द० । सं० शिखा ) पहाड़ से निकली एक नदी। शेखर, सिर, शीर्ष, मस्तक, चोटी। शैलजा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) शैलतनया, शेषराज-संज्ञा, पु. (सं०) दो मगण का पार्वती जी, दुर्गा जी।
एक वणिक छंद या वृत्त, विद्युलला (पिं०)। शैलतटी--- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पर्वत की शेषवत--संज्ञा, पु. (सं०) अनुमान के तीन | तराई । भेदों में से दूसरा, जहाँ कार्य के देग्रने से शैलधर-शैलभृत.....संज्ञा, पु० (सं०; श्रीकृष्ण कारण का ज्ञान या निश्चय हो ( न्या. जी.गिरिधर, गिरिधारी।। शेषशायी--संज्ञा, पु० (सं० शेषशायिन् विष्णु। शैनंदिनः---संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) पार्वती शेषांश-संझा, पु. यो० (सं०) अवशिष्ट या जी, शैलजा, शैलामाजा।। अंतिम भाग, बचा हुआ अंश ।
शैलपति शैलराज-संज्ञा, पु. ( सं० )
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