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संकलित
संकोचन किसी कार्य का पक्का निश्चय करना, ६ का वर्णन, देव-स्तवन, देव-वन्दना । वि० विचार करना, किसी धार्मिक कार्य के लिये सं०-कीर्तनीय, संकीर्तित। कुछ दान देना, संकल्प करना । अ० कि०- संकु-संज्ञा, स्त्री० (सं०, बरछी । “जरे अंग विचार या निश्चय करना इच्छा या इरादा । में संकु ज्यों, होत विथा की खानि'--मति० करना।
| सँकुचना-अ० क्रि० दे० ( हि० सकुचना) संकलित-वि० (सं०) संगृहीत, चुना हुआ, सिकुड़ना, सकुचना. समिटना, लज्जित
छाँट छाँट कर लाया हुश्रा, एकत्रित किया होना, शरमाना, फूलों का सपुटित या बंद हुआ।
होना। संकल्प - संज्ञा, पु० (सं०) कुछ कार्य करने संकुचित-वि० (सं०) संकोच को प्राप्त, का विचार, इग्छा, इरादा, निश्चय, अपना | संकोच-युक्त, लज्जित, सिकुड़ा हुआ, सकरा, हद निश्चय या विचार, किसी देव-पूजादि तंग, क्षुद्र, कंजूस : विलो०-उदार । कार्य से पूर्व कोई नियत मंत्र पढ़कर अपना संकुल-वि० (सं०) घना, भरा हुआ. दृढ़ विचार प्रगट करना, ऐसे समय का मंत्र परिपूर्ण, संकीर्ण । " विविध जंतु संकुल दृढ़ निश्चय, पुष्ट विचार । संकल्प (दे०)। महि भ्राजा" ... रामा० । वि० संकुलित । "शिव संकल्प कीन्ह मन माहीं"--रामः। संज्ञा, पु. भीड, समुह, झंड, युद्ध, जनता, संज्ञा, पु०-संकल्पन । वि०-संकल्पित, एक दूसरे के विरोधी वाक्य (व्या०) । संकल्पनीय । वि०-संकल्प-विकल्प। संकुलित-वि० (सं० परिपूर्ण, घना, भरा सकाना, सकाना* -- अ. क्रि० दे. हुश्रा, संकीर्ण । “हरित भूमि तृण (सं० शंक ) डरना, भय खाना। "क्षत्रिय संकुलित, समुझि परै नहिं पंथ"-रामा० । तनु धरि समर सँकाना''-- राम । संकेत - संज्ञा, पु० (सं०) अपना भाव प्रकट सँकार-संज्ञा, श्री० दे० ( सं० संकेत ) करने की शारीरिक चेष्टा, इगित, इशारा, इशारा, इंगित, संकेत, संकार ।
प्रेमिका के मिलाप का निश्चित स्थान, सहेट, सँकारना-स० क्रि० दे० (हि. संकार) चिह्न, पते की बातें, निशान । वि.-- संकेत या इशारा करना, दाम चुकता करना, सांकेतिक । सकारना (दे०), जैसे- हुन्डी सँकारना। संकेत-वि० (दे०) संकीर्ण, सँकरा, संकुचित, संकाश-प्रव्य० (सं०) सदृश, समान, तंग । तुल्य, समीप, पास, निकट । संज्ञा, पु० (दे०) संकेतना-स० कि० दे० (सं० संकीर्ण । प्रकाश, प्रभा, दीप्ति, कांति | " तुषाराद्रि कष्ट, संकट या विपत्ति में डालना । संकाश-गौरं गभीरं-- रामा०। संकोच-सज्ञा, पु. (सं०) सिकुड़ने का संकीर्ण-वि. (सं०) सँकरा, संकुचित, कार्य, तनाव, खिचाव, पा, लज्जा, बीडा, तंग, मिश्रित, मिला-जुला, छोटा, तुद्र, धागा-पीछा, डर, भय, हिचकिचाहट तुन्छ। संज्ञा, पु० (सं०) जो राग दो रागों के । न्यूनता, कमी एक अलकार जहाँ विकासा. मेल से बने, संकट, पापत्ति । संज्ञा, पु. लंकार के विरुद्ध अति संकोच कहा जाता (सं०) वृत्तगंधि और अवृत्तगंधि के मेल से । है, सकोच, संकोच (दे०) । " छाँड़ि न बना एक गद्य-भेद (सा.)।
सकहिं तुम्हार संकोचू".-- रामा० । “जल्लसंकीर्णता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) तंगी, क्षुद्रता, | संकोच विकल भये मीना' -रामा० । छोटापन, सांकोच्य।
| संकोचन-सक्षा, पु. ( सं० ) संकोच, सिकु. संकीर्तन-संज्ञा, पु. (स.) किसी की कीर्ति बना। वि०--संकोचनीय ।
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