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कलईदार
कलपना लिये वस्तुओं पर चढ़ाया जाने वाला लेप आदि चिड़ियों के पगड़ी, ताज आदि पर ( मसाला ) बाहिरी चमक-दमक, तड़क- लगाये जाने वाले पर, मोती, सोने, चाँदी भड़क, चुना, भेद । मुहा०-कलई करना | आदि से बना शिरोभूषण, पत्तियों के सिर (चढ़ाना ) असली बात छिपाना और की चोटी, इमारत का शिखर, लावनी का उसे दूसरे चमत्कृत या झूठे रूप में रखना। एक ढंग। कलई खुलना-असली भेद या रूप प्रगट कलचुरि- संज्ञा, पु० (सं० ) दक्षिण का होना । कलई खोलना-- वास्तविक रूप | एक प्राचीन राजवंश । या बात का प्रगट कर देना। कलई न कलछा-संज्ञा, पु० दे० (सं० कर+रक्षा) लगना ( चढ़ना ) झूठी युक्ति न चलना । बड़ी डांड़ी का चम्मच, संज्ञा, स्त्री० कलछी चूने का लेप, सफ़ेदी।
( अव्य. ) चम्मच, दालादि चलाने या कलईदार-वि० (फा) कलई या राँगे का डालने की चमची। लेप चढ़ा हुआ।
कलजह वा--वि० दे० कलूटा, कलछांह । कलकंठ---संज्ञा, पु० यौ० ( सं०) कोकिल, | कलजिभा-वि० (हि. काला+जीभ ) पारावत, हंस, परेवा । वि. मधुर, मृदु ध्वनि काली जीभ वाला, जिसकी अशुभ बातें करने वाला, सुंदर कंठ वाला । स्त्री० प्रायः ठीक उतरें, कलजोहा (दे० )। कलकंठी।
कलजिन - वि० (सं०) द्वेषी, हिंसक, पापी। कलक-संज्ञा, पु. ( अ० कलक ) बेचैनी, कलमांवा- वि० दे० (हि० काला + झांई) रंज, घबराहट, खेद, पश्चात्ताप, दुख,
काले रंग का, साँवला। कल्क (दे० )।
कलत्र-संज्ञा, पु. ( सं० कल+त्र) स्त्री, कलकना*-अ० कि० (दे०) कलक होना, | __भार्या, नितम्ब, किला । यौ० कलत्र-लाभ चिल्लाना, शोर करना, खटकना, पछतावा पत्नी-लाभ, विवाह । होना, चीत्कार करना।
कलधृत-संज्ञा, पु० (सं) चांदी। कलकल- संज्ञा पु० यौ० (सं० ) झरने कलधौत-संज्ञा, पु० (सं० ) सोना, चाँदी, श्रादि से जल गिरने या बहने का शब्द, कलध्वनि, सुमधुर शब्द "कोटि करौं कलकोलाहल । संज्ञा, स्त्री. (दे०) झगड़ा, । धौत के धाम......” रस० । बाद-विवाद, खुजली, राल ।
कलन-संज्ञा, पु. (सं० ) उत्पन्न करना कलकान-कलकानि $-संज्ञा स्त्री० दे० बनाना, धारण करना, आचरण, लगाव, (अ० कलक) विकृत, हैरानी, कलह, चिंता, संबन्ध, गणित की क्रिया-संकलन, व्यवपरेशानी।..." नितके कलकान ते छूटिबो कलन, ग्रास, कौर, शुक्र-शोणित का गर्भ है"-हरि० । संज्ञा, स्त्री० यौ० (दे० ) की प्रथम रात्रि का विकार जिससे कलल सुन्दर मर्यादा ।
बनता है। कलकूजक–वि. पु. ( सं०) मधुर ध्वनि कलप-संज्ञा, पु० दे० (सं० कल्प) कलफ़, करने वाला। स्त्री० कलकूजिका । वि. खिजाब, कल्पना, दुख, कल्प । कलप कलकूजित । संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कल- करना-काट देना "..... करै जो सीस
कलप्प " कबी०। कलगा-संज्ञा, पु० दे० ( तु. कलगी ) मरसे कलपना-अ. क्रि० दे० (सं० कल्पन )
जाति का एक पौधा, जटाधारी, मुर्गकेश । | बिलखना, विलाप करना, कुढ़ना, कल्पना कलगी-संज्ञा, स्त्री. (तु.) शुतुरमुर्ग, मोर करना । स० कि. (सं० ) काटना, छांटना।
कूजन ।
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