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पचरंगा
पच्चीकारी पाँचरंग, चौक पूरने का सामान, अबीर, पचीस-वि० दे० (सं० पंचविंशत्) पच्चीस। बुक्का, हलदी, मेंहदी की पत्ती, सुरवारी संज्ञा, पु० (दे०) पच्चीस की संख्या, २५ । के बीज ।
यौ० पचीसा सौ-एक सौ पचीस, १२॥ पचरंगा--वि० दे० ( हि. पाँच रंग ) पाँच | पचीसी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पचीस) रंगों से रँगा कपड़ा या कोई और पदार्थ । एक ही प्रकार की २५ चीज़ों का समूह, संज्ञा, पु० नव ग्रहों की पूजा का चौक। किसी की उम्र के प्रथम के २५ वर्ष, चौपड़ स्त्री० पचरंगी।
जैसा एक खेल। पचलड़ी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पाँच+ पचूका-संज्ञा, पु० (दे०) पिचकारी, दमकला। लड़ी ) वह हार जिसमें पाँच लड़ी हों।। पचेतिरसा - संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० पंचोपु० पचलड़ा।
त्तरशत् ) एक सौ पाँच का अंक या संख्या, पचलोना-संज्ञा, पु० दे० (हि० पांच+ लोन लवण ) वह चूर्ण जिसमें ५ प्रकार के पचोतरा-संज्ञा, पु० यौ० (दे०) पाँच रुपये नमक पड़े हों। "चूरण मेरा है पचलोना” | सैकड़ा।
पचौनी- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि. पचना) पचहरा-वि० दे० ( हि० पाँच+हरा
पाकाशय, प्रामाशय, अन्न पचने की जगह, प्रत्य०) पचौहरा (ग्रा.), पाँच तहों या
मेदा, श्रोझ, जोक। परतों वाला (वस्त्रादि), पाँच वार किया
पचौर-पचौली-संज्ञा, पु० दे० (हि. पंच) हुआ, पचौहर (ग्रा०) पचौबर । 'चौबर
गाँव का सरदार, मुखिया, पंच। "चले पचौर पचौबर कै चूनरि निचोरै है"--।
विदा है ज्यों हीं"-छत्र। पचहत्तर-संज्ञा, पु० (दे०) सत्तर और पाँच
| पचौबर - वि० दे० (हि० पाँच+ सं० आवर्त)
पाँच परत या तह किया हुआ, पँचपरता, की संख्या, ७५।
पचहरा, पचौहर (ग्रा०)।। पचाना-स० कि० दे० ( हि० पचना) पकाना
पच्चड़-पञ्चर-संज्ञा, पु० दे० (सं० पचित जीण करना, गलाना, हज़म करना, नष्ट
या पच्ची ) काठ या लकड़ी के जोड़ को करना, परधन अपनाना, लीन करना, खपाना।
कसने के हेतु लगाया गया लकड़ी या काठ पचानबे-संज्ञा, पु० (दे०) नब्बे और पाँच
का पेवंद, ठेक, पचड़ा। की संख्या, पंचानवे, पञ्चानवे, ६५।।
पञ्चानवे-संज्ञा, पु० (दे०) पंचानवे, नब्बे पचारना-स० क्रि० दे० (सं० प्रचारण )
और पाँच ६५। डाँटना, ललकारना, प्रचारना। "लागेसि
पच्ची-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० पचित ) खुदाई अधम पचारन मोही"-रामा०।
जड़ाई, जड़ाव, एक वस्तु खोद कर उसमें पचास--वि० दे० (सं० पंचाशत् प्रा. पंजासा)
दूसरी यों जड़ना कि दोनों का तल चालीस और दस। संज्ञा, पु० एक संख्या, ५०।
समान रहे । मुहा०—किसी का पच्ची हो पचासा-संज्ञा, पु० दे० (हि. पचास )
जाना - लीन हो जाना, पूर्ण रूप से, एक ही तरह की पचास चीजों का समुदाय । | मिल जाना । दिमाग (मग़ज) पच्ची करना पचासी-संज्ञा, पु० (दे०) पंचासीति, अस्सी | - व्यर्थ की बात पर बहुत विचार करते रहना। और पाँच, ८५ की संख्या ।
पच्चीकारी--संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० पच्ची+ पचित-वि० (सं०) पचा हुआ, पच्ची किया फ़ा० कारी ) पच्ची करने की क्रिया का भाव या जड़ा हुआ।
या कार्य, जड़ाई, खुदाई।
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