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प्रादुर्भतमनोभवा ११८८
प्रार्थना प्रादुर्भतमनोभवा-संज्ञा, स्री० यौ० (सं.)। साध्य की प्राध्यवस्था में उनके अवशिष्ठ
चार प्रकार की मध्या नायिकानों में से बताने की आपत्ति ( न्याय )। एक ( केश० )।
ग्राप्य-वि० सं०) पाने या प्राप्त करने प्रादेश-संज्ञा, पु० (सं०) तर्जनी सहित योग्य प्राप्तव्य, मिलने के योग्य, गम्य ।
विस्तृत अंगुष्ट, वितस्ति, वाती बालिश्त । प्रायल्य-संज्ञा, पु० (सं० ) प्रबलता। प्रादेशिक-वि. ( सं० ) प्रदेश का, प्रदेश प्रामाणिक- वि० (सं०) सत्य जो प्रमाणों संबंधी, प्रांतिक । संज्ञा, पु० (सं०) सरदार, द्वारा सिद्ध हो, मानने योग्य प्रमाण-पुष्ट, सामंत।
माननीय, टीक। प्राधा-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) गंधों और प्रामाण्य -- संज्ञा, पु. ( सं०) प्रमाणता, अप्सराओं की माता, कश्यप की पत्नी।
मानमर्यादा । " तद् बचनादानियस्य प्रामाप्राधान्य- संज्ञा, पु० (सं०) मुख्यता, प्रधा.
ण्यम् "-वै० द०। नता, श्रेष्ठता।" प्रचुर विकार प्राधान्यादिषु
प्राय -- संज्ञा, पु. ( सं० ) समान, लगभग,
बराबर, तुल्य, जैसे प्रायद्वीप, मृतप्राय । मयट् --सरस्वती।
प्रायः-वि० ( सं० ) लगभग, बहुत करके, प्रान-संज्ञा, पु० (दे०) प्राण ( सं० ) स्वाँस, .
बहुधा, अकरमर, विशेष करके, लगभग । जीव ! परान (दे०)।
" प्रायः समापन विपत्तिकाले" -हितो । प्रापण-संज्ञा, पु. ( सं० ) मिलना, प्राप्ति,
प्रायद्वीप- संज्ञा, पु. ६० (सं० प्रयोद्वीप ) प्रेरण । वि. प्रापक, प्राप्य, पात, प्राप
वह भू भाग जो तीन थोर जल से घिरा हो। णीय ।
(भूगो.)। प्रापति -संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० प्राप्ति )
प्राय:-क्रि० वि० (सं०) बहुधा, प्रायः । प्राप्ति, उपलब्धि, मिलना, पहुँचना, एक "वर विहँग़ सुनाते, प्रायशः शब्द प्यारे'। सिद्धि, लाभ, पाय ।
प्रायश्चित्त--सज्ञा, पु० ( सं० ) पाप मिटाने प्रापना*-स० क्रि० दे० (२० प्रपण) के लिये शास्त्रानुकूल कर्म या कृत्य । मिलना, प्राप्त होना।
प्रायश्चिान्तक-वि० (सं०) प्रायश्चित्त प्राप्त-वि० (सं०) जो मिला हो पाया हुआ, के योग्य, प्रायश्चित-सबंधी। समुपस्थित।
प्रायश्चित्ता-वि० ( सं० प्रायश्चित्तिन् ) प्राप्तकाल-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) उचित प्रायश्चित्त करने वाला या उसके योग्य ।
या उपयुक्त समय, मरने योग्य समय । वि० प्रारंभ-संज्ञा, पु. (सं०) श्रादि, श्रारंभ । जिसका समय श्रागया हो । “प्राप्तकाज प्रारंभिक-वि० (सं० ) प्राथमिक, आदि स्यका रक्षा"।
का, धादिम, प्रारंभ का। प्राप्तव्य-वि० (सं० ) पाने या प्राप्त करने प्रारब्ध-वि. ( सं० ) प्रारंभ या शुरू किया योग्य, प्राप्य ।
हुश्रा । संज्ञा, पु० तीन प्रकार के कमों में प्राप्ति-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) पहुँच, मिलना, एक, वह कर्म जिसका फल-भोग हो चला उपलब्धि नाटक का सुखप्रद उपसंहार हो भाग्य, पूर्वकृत कर्म । वि० प्रारब्धाअणिमादि सिद्धियों में से एक सिद्धि। भाग्यवान । जिसमें सब इच्छायें पूरी हो जायें, · योग) प्रार्थना-संज्ञा, स्त्री० (सं०) निवेदन, बिनती, प्राय, लाभ।
माँगना, बिना, याचना । वि० प्रार्थनीय, प्राप्तिसम-संज्ञा, पु. ( सं० ) हेतु और स० कि. विनय करना।
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