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लावल्द
लिंगशरीर
लावल्द-वि० (फ़ा०) निःसंतान, पुत्रहीन । लाह* --संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० लक्षा) लावलदी--संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा. ) निःसंतान लाख, चपरा, चपड़ा । संज्ञा, पु० दे० होने की दशा।
(सं० लाभ ) लाहु, लाभ, फायदा, नफ़ा। लावभाव-- संज्ञा, पु० (दे०) लाभ, प्राप्ति, संज्ञा, स्त्री० (दे०) प्राभा, कांति, दीप्ति । बढ़ती, वृद्धि ।
लाहल ----संज्ञा. पु. ६० ( अ० लाहोल ) एक लावा ----संज्ञा, पु० (सं.) लवा पक्षी । संज्ञा, अरबी पद जो भूत-प्रेत के भगाने वा घृणा पु० दे० ( सं० लाजा ) रामदाना या धान प्रगट करने के हेतु बोला जाता है। श्रादि को भूनने से फूट कर ली हुई खील, .
र फूली हुई खाल, लाहा, वाह ... संज्ञा, पु० द. (सं० लाभ ) फुल्ला, लाई, फटका ( ग्रा० )
लाभ । " और बनिज में नाहीं लाहा, है लावा परहन---संज्ञा, पु० द. यौ० ( हि०
मूरौ मा हानि '"-- कबी.। लावा --परछना ) विवाह के समय साले का |
मय साल का लाही- संज्ञा, सी० दे० (सं० लाक्षा) लावा डालने की एक रीति, लाथा-परसन ।
लाख, काले रंग का सरसों, महीन वस्त्र या लावारिस--संज्ञा, पु० ( अ० )उत्तराधिकारी
कपड़ा, फल को हानिकारी एक लाह के रहित, बेवारिस । ( वि० लवारिसो)।
रंग का कीड़ा। वि.--- मटमैलापन लिये लावू-संज्ञा, स्त्री० (दे०) लौका, कढू ।
लाल रंग। लाश-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) प्राणी की मृतक
ला* -- संज्ञा, पु. द० (सं० लाभ) लाभ । देह, शव, मुदी, लोथ, लास,तहास (द०)। लेह तात जग-जीवन लाहू''-रामा० । लाप*--संज्ञा, पु० वि० द० ( हि० लाख) लाहौर - संज्ञा, पु० (दे०) पंजाब की राजलाख । लापना*--- स० क्रि० दे० ( हि लखना )
धानी, एक प्रसिद्ध नार। लखना, देखना, निहारना, अवलोकना।
लाहान --- संज्ञा, पु० (ग्र०) एक अरबी-वाक्य लास--- सज्ञा, पु० दे० ( सं० लारय ) एक ।
का प्रथम पद मो भूत-प्रेतादि के भगाने या प्रकार का नाच, नृत्य, रास, मोद मटके ।
घृणा प्रगट करने में बोला जाता है।
लिंग--- संज्ञा, पु. (सं०) लक्षण, चिन्द, लासक--संज्ञा, पु० (दे०) मोर. मयूर, नर्तक, नचैया :
निशान, जिससे किसी पदार्थ का अनुमान लासा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० लस । चेप,
हो, मूल प्रति ( सांख्य० ) पुरुष की गुप्त लुभाव. चिपचिपा लवाब, लसीली वस्तु,
इंद्रिय, शिश्न, शिव मूर्ति, । " लिंग थापि बहेलियों के चिड़िया फँसाने का लसदार
करि बिधिवत पूजा"-रामा । संज्ञाओं पदार्थ । मुह-लासा लगाना---कपट
में पूरुष-स्त्री का भेद-सूचक विधान (व्या०) । जाल फैलाना, किसी के फंसाने का छद्म
लिंग-देह-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जीव का विधान बनाना।
सूक्ष्म शरीर जो स्थूल शरीर के नष्ट होने पर लासानी-वि० ( अ० ) अद्वितीय, अनुपम
भी कर्म फल भोगने के लिये जीव के साथ अपूर्व, बेजोड़ ।
रहता है, लिंग-शरीर (अध्या० )। लासि---संज्ञा, पु० (दे०) लास्य । लिंगपुरागा--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं.) अठारह लासी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) श्राम श्रादि के पुराणों में से शिव-माहात्म विषयक एक फूलों में लसदार विकार ।
पुराण । लास्य-संज्ञा, पु. (सं०) शृंगारादि मृदु रमों लिंगशरीर -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जीवारमा का उद्दीपक, कोमलांग नृत्य, सुकुमार, का सूचम शरीर जो स्थून के भीतर मृत्यु के
| बाद भी कर्म-फल भोगने को रहता है।
नाचा
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