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पाणिनी
१५७२
घानवासिका पाणिनी-संज्ञा, स्त्री. (सं.) एक वर्णिक वाद - संज्ञा, पु. (सं.) किसी बात के छंद (पि०)।
निर्णयार्थ बात-चीत, शास्त्रार्थ, विवाद, तर्क, वाणी-संज्ञा, स्रो० (सं०) सरस्वती, गिरा, दलील, किसी विषय के तत्वज्ञों-द्वारा निर्णीत वचन, मुख से कहे सार्थक शब्द, बानी सिद्धांत, उसूल, बहस, झगड़ा । यौ०(दे०)। सुहा-पाणी फुरना---वचनों | वाद-विवाद । वि०-वादी। का सत्य होना, मुख से शब्द उजरित वादक-संज्ञा, पु० (सं०) बाजा बजाने वाला, होना । जीभ, रसना, वाक शक्ति। तर्क या शास्त्रार्थ करने वाला, वक्ता । वात-संज्ञा, पु० (सं०) वायु, पवन, हवा, वादन--संज्ञा, पु. (सं०) बाजा बजाना ।
प्राणियों के पक्वाशय में रहने वाली वायु वि...-वादनीय. आदित। जिसके बिगड़ने से कतिपय रोग उत्पन्न वाद-प्रतिवाद - संक्षा, पु. यौ० (सं०) बहल, होते हैं, बात (दे०)। " ग्रह-गृहीत पुनि तर्क, शास्त्रार्थ, शास्त्रीय बात-चीत । वात वश तापर बीछी मार''--रामा। बादो-प्रतिवादी--संज्ञा, पु. यौ० (सं० वातज-वि० (सं०) वायु से उत्पन्न : "वातज वादिन् ) पक्षी, विपक्षी, प्रतिपक्षो, विवाद में रोग अनेक गनाये"- कं. वि.।
दोनों पक्ष वाले। वातजात-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वायु से | बादरायण-संज्ञा, 'पु. (सं०) वेदव्यास । उत्पन्न, हनुमान जी। "रघुबर-वरदूतं वात- वाद-विवाद-संज्ञा. पु. यौ० (सं०) शास्त्रार्थ, जातं नमामि।"
बहस। वातप्रकोप-संज्ञा, पु० यौ० सं०) वायु का वादा-संज्ञा, पु० द. ( अ० वाइदा ) प्रतिज्ञा, बिगड़ना, वातविकार । जिससे अनेक इकरार। मुहा० - वादा मिलाकी करना रोग होते हैं।
----कहने के प्रतिकूल कार्य करना । वादा वातशूल - संज्ञा, पु० यौ० सं०) पेट की रखाना ( रखना )- प्रतिज्ञा कराना. पीड़ा जो वायु-विकार से होती है। ( पूर्ण करना), वचन लेना (पूरा करना)। वातापि-संज्ञा, पु० (सं०) एक दैत्य जो | वादानुवाद-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वाद. श्रातापि का भाई था और जो अगस्त्य के विवाद, बहस । द्वारा खाया गया था |
वादित्र--- संज्ञा, पु० (सं०) बाजा। वातायन-संज्ञा, पु० (सं०) झरोखा, खिड़की. | वादी-संज्ञा, पु० (सं० वादिन् ) बोलने एक जनपद ( रामा०)।" तथैव वातायन वाला, वक्ता, मुक़दमा चलाने वाला, मुद्दई संनिकष ययौ शलाकामपरा वहंती"..-- फर्यादी, प्रस्ताव या पक्ष का प्रारोपक । रघु०।
वाद्य -- संज्ञा, पु० सं०) बाजा। वातुल, वातृल --संज्ञा, पु. (सं०) उन्मत्त, | वानप्रस्थ-संज्ञा, पु. (सं०) चार आश्रमों में
पागल, बावला । स्त्री०-वातुल।। से तीसरा आश्रम, जिसमें मनुष्य गृहस्थी वातोर्मी-संज्ञा, पु. (सं०) ११ वर्णा का छोड़ कर वन में रहता है (प्राचीन आर्य)। एक छंद या वृत्त (पिं०)।
| वानर-- संज्ञा, पु० (सं०) बानर, बाँदर वात्सल्य-संज्ञा, पु० (सं०) स्नेह, प्रेम, माता- (दे०), बंदर, दोहे का एक भेद (पिं० )। पिता का अपनी संतान पर प्रेम, तत्प्रेम-सूचक स्त्री. वानरी । “सपने वानर लंका जारी" काव्य का एक रस (एकमत)।
-रामा० । वात्स्यायन-संज्ञा, पु. (सं०) न्याय-दर्शन | वानरमुख-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बंदर का
के भाष्यकार एक ऋषि, कामसूत्र के प्रणेता मुख, बंदर का सा मुख वाला, नारियल । एक प्रसिद्ध ऋषि।
वानवासिका-संज्ञा, स्त्री. (सं०) चौपाई
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