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जाति ।
वाचिक
वाणिज्य वाचिक-वि० (सं०) वाणी से किया हुआ, वाजी-संज्ञा. पु. ( सं० वाजिन् ) वाजि. वक्ता-संबंधी। संज्ञा, पु०-केवल वाक्य- घोड़ा, फटे हुये दूध का पानी । "प्रभु मनमों विन्यास से ही होने वाला (सं०) अभिनय, लवलीन मन, चलत वाजि छबि पाव"नाटक में वह स्थान जहाँ केवल परस्पर रामा० । वर्त्तालाप ही होता है।
वाजीकरण--संज्ञा, पु. (सं०) वह आयुवाची-वि० (सं० वाचिन् ) सूचक, प्रगट करने बैदिक प्रयोग या औषधि जिसके सेवन से वाला।
मनुष्य घोड़े के समान वलिष्ठ और वीर्यवान वाच्य-वि० (सं०) कहने-योग्य, जिसका हो जाता है, बल-वीर्य-वर्द्धक। बोध शब्द-संकेत से हो, अभिधेय । संज्ञा, वाट - संज्ञा, १० (सं०) बाट (दे०), रास्ता, पु०-वाच्याथ, अभिधेयार्थ ( काव्य० )
राह, मार्ग, पंथ । मुहा०-वाट परनाक्रिया का वह रूप जिनसे कर्ता, कर्म या
हानि होना । ' वाट परे मोरी नाव उड़ाई" भाव की प्रधानता प्रगट हा व्या०)।
-कवि० संज्ञा, पु० (दे०) श्रोट, भाड़, बाट । वाच्य परिवर्तन - संज्ञा, पृ० यौ० (सं०)
वाटधान-संज्ञा, पु. (सं०) कश्मीर के वाक्य की क्रिया का रूपान्तर जिससे वाच्य |
नैऋत्य कोण में एक जनपद, एक वर्णसंकर बदल जाये (च्या०)। वाच्यार्थ - संज्ञा, पु० यो० (सं०) मूल शब्दार्थ,
वाटिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) उद्यान, फुल. वह अर्थ या भाव जो वाक्य गत शब्दों के
वाड़ी, बाग़ीचा, श्राराम, बाटिका (दे०)। नियत अथों के द्वारा ज्ञात हा जाय।
"तेहिं अशोक-वाटिका उजारी"-रामा० । वाच्यावाच्य --- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बुरी.
वाड़-संज्ञा, पु० (दे०) स्थान, वाद, सान । भली या अच्छी बुरी अथवा कहने या न
वाडव-संज्ञा, पु० (सं०) समुद्र की श्राग, कहने योग्य बात। धाछिड़-अव्य० (दे०) वाहजी, धन्य, प्रिय
बड़वागी (दे०)।
वाडवाग्नि- संज्ञा, स्त्री. (सं०) समुद्र की वाक्य ।
श्राग, बड़वानल। पाज-संज्ञा, पु० (अ०) शिक्षा, उपदेश, धार्मिक उपदेश, कथा ।
वाडवानल---संज्ञा, पु. (सं०) समुद्र की बाजपेई* (दे०), वाजपेयी-संज्ञा, पु. (सं०
श्राग, बड़वानल (दे०)। वाजपेयी) कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की एक |
वाड़ी-संज्ञा स्त्री० (दे०) वाटिका, फुलवाड़ी। उपाधि, अत्यंत कुलीन या कुलवान, वह
वाण-संज्ञा, पु० (सं०) धनुष की डोर से पुरुष जिसने वाजपेय यज्ञ किया हो।
खींचकर फेंका जाने वाला एक धारदार घाजपेय- संज्ञा, पु० (सं०) ७ श्रौत यज्ञों में
फल युक्त छोटा अस्त्र, तीर, शर, शायक, से ५ वा यज्ञ।
बान (दे०), एक दैत्य । “जे मृग राम-वाण पाजपेयी-संज्ञा, पु० (सं०) वाजपेय यज्ञ
के मारे"-रामा० । “रावण-वाण महाबली, करने वाला, कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की एक
जानत सब संसार"-रामा० ।। उपाधि, अत्यंत कुलीन या कुलवान । वाणावली--संज्ञा, स्त्री० यौ० (२०) तीरों पाजसनेय-संज्ञा, पु० (सं०) यजुर्वेद की की पाँति, वाण-समूह, शर-श्रेणी। एक शोखा, याज्ञवल्क्य ऋषि ।
वाणासुर -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) राजा बलि वाजिब-धाजवी-वि० (अ०) उचित, उप. का पुत्र, एक महाबलवान दैत्य (पुरा०)। युक्त, योग्य, ठीक ।
| वाणिज्य-संज्ञा, पु० (सं०) वनिज, व्यापार।
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