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विघटन
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विक्रांत
१५८० विक्रांत-संज्ञा, पु. (सं०) वैक्रांतमणि, विगंध-वि० (सं०) दुगंधयुक्त, गंध-रहित । पराक्रमी, शूरवीर, व्याकरण में एक प्रकार विगत-वि० (सं०) गत या बीता हुश्रा, की संधि जिसमें विसर्ग प्रकृति-भाव में | पिछला, बीते हुए या अंतिम से पूर्व का, (विकृत) रहता है।
विहीन. रहित । “विगत त्रास भइ श्रीय विक्रियोपमा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) उपमा- सुखारी''.---रामा० । लंकार का एक भेद जिसमें किसी विशेष | विगर्हणा--संज्ञा, स्त्री० (सं०) निन्दा, डाँटउपाय या क्रिया का सहारा कहा जाय
या फटकार, घुड़की । वि०-विहगीय, (काव्य०)।
विगर्हित । विक्रेता-संज्ञा, पु० (सं०) बेचने वाला। विगहित-वि० (सं०) निन्दित, बुरा, डाँटा " तुम क्रेता, हम विक्रेता हैं, क्रेय हृदय का
फटकारा गया। हीरा"... कं० वि० ।
विगलित --- वि० (सं०) गला या गिरा हुआ, विक्षत-वि० (सं०) घायल : 'त-विक्षत
ढीला, शिथिल, बिगड़ा हुश्रा । “विगलित
सीस निचोल".-सूर० । होकर शरीर से"-मै० श० ।। विक्षिप्त-वि० (सं०) छितराया या बिखेरा
विगाथा-संज्ञा, स्त्री० (२०) भार्या छंद का
| एक भेद, विग्गाहा, उदगीत (पि०)। हुश्रा, पागल, व्याकुल, विकुल, जिसका चित्त ठिकाने न हो। संज्ञा. पु. चित्त के
विगुण-वि० (सं०) निर्गुण, गुगण-हीन । कभी स्थिर और कभी अस्थिर रहने की एक
विगोना--स० क्रि० वि०) छिपाना, लुलाना
दुराना। विशेष अवस्था (योग)।
विगोया--वि० (दे०) छिपा, गुप्त, लुका ! विक्षिप्तता-संज्ञा, स्त्री. (सं०) विकलता, चंचल नयन रहैं न विगोये ".-- स्फुट० । पागलपन, विह्वलता।
विग्गाहा-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० विगाथा ) विक्षुब्ध-- वि० (सं०) क्षोभयुक्त, विकलता। भार्या छंद का एक भेद, विगाथा, उद्विक्षेप- संज्ञा, पु. (सं०) इधर-उधर या
गीत। ऊपर को फेंकना, हिलाना, डालना। विग्रह -- संज्ञा, पु० (सं०) झगड़ा, कलह, झटका देना, तीर चलाना, धनुष की
लड़ाई, समर, युद्ध. अलग या दूर करना, प्रत्यंचा चढ़ाना, (विलो०-संयम), फेंक विभाग, (व्या०) यौगिक या सामासिक पदों कर चलाया जाने वाला एक अस्त्र, विघ्न, के एक या सब पदों को पृथक करने की बाधा, असंयम, व्याकुलता, मन को भटकाना। क्रिया, (व्या०), वैरियों या विपक्षियों में विक्षोभ-संज्ञा, पु० (सं०) मन का चाँचल्य, फूट पैदा कराना, प्राकृति, मूर्ति, शरीर । क्षोभ, उद्विग्नता । वि० -विक्षोभित।
"विग्रहानुकूल सब लच्छ लच्छ रिच्छ-बल" विख-संज्ञा, पु० (सं०) विष :
-राम। विखान*-संज्ञा, पु० दे० ( सं विषाण) विग्रही-संज्ञा, पु० (सं० विगृहिन् ) युद्ध या सींग, बिखान (दे०)। "बिन विखान अरु लड़ाई-झगड़ा करने वाला, झगड़ालू ,
पूंछ को, मूरख बैल महान"- वासु०। लड़ाका, देही, शरीरी। विखायँधि-संज्ञा, स्त्री० (दे०) कड़वी गंध । विघटन-संज्ञा, पु० (सं०) तोड़ना, फोड़ना, विख्यात--वि० (सं०) प्रसिद्ध, प्रख्यात विनष्ट या बरबाद करना, विघटन । स० मशहूर ।
रूप----बिघटाना, अ० रूप-विघटना ! विख्याति-संज्ञा, स्त्री. (सं०) प्रसिद्धि, प्रकटी धनु-विघटन परिपाटी"--रामा० । ख्याति, मशहूरता।
वि०-विघटनीय।
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