________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वर्णाश्रम वर्णाश्रम-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्राह्मण | वर्तुलाकार-वि० यौ० (सं०) गोलाकार, भादि चार वर्ण और ब्रह्मचर्य आदि चार वृत्ताकार । आश्चम, बनरास्त्रम (दे०)। " वर्णाश्रम वर्म-संज्ञा, पु० (सं०) राह, रास्ता, मार्ग, धर्म-प्रचार गये"-रामा० ।।
पंथ, बाट, पथ, बारी, किनारा, तट, आठ वर्णिकवृत्त-संज्ञा, पु. (सं०) वह छंद । (प्रान्ती०), अाँख की पलक. पाश्रय, प्राधार। जिनमें अक्षरों की संख्या का नियम हो, . "पुरस्कृता वर्मनि पार्थिवेन"--रघु० । वर्णवृत्त ।
वर्दी- संज्ञा, स्रो० दे० (प्र० वरदी) सिपाहियों पर्णिका-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) रंग भरने की और उनके अफसरों का पहनावा । लेखनी।
पर्द्धक--वि० (सं०) वृद्धि-कारक, बदाने या वर्णित-वि० (सं०) प्रशंसित, कथित, जिस अधिक करने वाला, पूरक ।
का वर्णन हो चुका हो, कहा हुना।। घर्द्धन-संज्ञा, पु० (सं०) बदाना, अधिक वर्य-वि० (सं०) वर्णन के योग्य, वर्णन करना, उन्नति, बढ़ती. वृद्धि, तराशना,
का विषय, उपमेय, प्रस्तुत । संज्ञा, पु० (सं०) ___ काटना । वि० वर्तित, घधनीय।। कुमकुम, बन तुलसी।
घद्धमान-वि० (स०) जो बढ़ रहा हो, वर्तन-संज्ञा, पु० (सं०) व्यवहार, बरताव,
बढ़ने वाला, वनशील । संज्ञा, पु. (सं०) एक रोजी, वृत्ति, व्यवसाय, घुमाना, फेरना,
वर्णिक छंद जिसके चरणों में भिन्न अक्षरहेरफेर, परिवर्तन, रखना, स्थापन, सिल बढे
संख्या क्रम से १४, १३, १८, १५ होती से पीसना, पान, बरतन (दे०) । वि०
हैं। जैनियों के २४वें महावीर तीर्थकर या वर्तनीय, पर्तित ।
जिन । वर्तमान-वि० (सं०) उपस्थित, विद्यमान, वद्धित-वि० (सं०) छिन्न, भिन्न, बढ़ा मौजूद, चलता हुश्रा, हाल का, आधुनिक ।
हुश्रा, पूर्ण, कटा हुश्रा । “सं वर्द्धितानां सुत संज्ञा, पु० (सं०) क्रिया के तीन कालों में से निर्विशेषम्" रघु० । एक काल जिससे प्रकट हो कि क्रिया का वर्म-संज्ञा, पु. (सं० वर्मन्) कवच, बस्तर, श्रारंभ हो गया हो वह चली जाती है और घर, रक्षा-स्थान ।। समाप्त नहीं हुई, समाचार, वृत्तान्त, चलता पम्मा, वा-संज्ञा, पु०(सं० वर्मन् ) क्षत्रियों. व्यवहार । “वर्तमाने लट् "--कौ० व्या०। कायस्थों श्रादि की एक उपाधि । घर्ति- संज्ञा, स्त्री० (सं०) बटी, बत्ती, गोली, वर्य-वि० (सं०) वर, श्रेष्ठ । जैसे-विद्वद्वर्य ।
अंजन लगाने की सलाई, वर्ती (दे०)। | वर्वर --संज्ञा, पु० (सं०) एक देश, वर्वर देश वत्तिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) बत्ती, सलाई, के धुंघराले बालों वाले असभ्य निवासी। शलाका ।
अधम, नीच, पामर । “पृथिवी वर्वर-भूरि वर्तित-वि० (सं०) जारी किया या चलाया भार-हरणे"-ह. ना०। हुश्रा, संपादित ।
वर्ष संज्ञा, पु० (स.) वर्षा, पानी बरसना, वर्ती-वि० (सं० वतिन् ) बरतने वाला, जल वर्षण, वृष्टि, १२ मासों वाला एक वर्तनशील, स्थित रहने वाला (दे०), बर्ती, काल-मान, साल, संवत्सर, वर्ष के चार बत्ती, व्रत रखने वाला, उपास, कृतोपवास । भेद हैं, सौर, चाँद, सावन, और नाक्षत्र, स्रो० वर्तिनी।
सात द्वीपों का एक विभाग (पुरा०) किसी घर्तुल-वि० (सं०) गोला, वृत्ताकार । द्वीप का प्रधान भाग, बादल, मेघ । “ वर्ष
For Private and Personal Use Only