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फ़र्क-संज्ञा, पु० (१०) अन्तर, दूरी, भेद, भाग, धार, हल की फाल, ढाल, मतलब
अन्यता, अलगाव, कमी, फरक (दे०)। पूरा होना, प्रवृत्ति और दोष से उत्पन्न अर्थ फ़र्ज-संज्ञा, पु. ( अ०) कर्त्तव्य-कर्म, धर्म, | (न्याय०)। "पावहुगे फल प्रापन कीन्हा" कल्पना. मान लेना । “ करें फ़ज़ माँ बाप | -रामा० । " निज कृत कर्म भोग फल का क्या अदा''-स्फुट० ।।
भ्राता "-रामा० । गणित में किसी क्रिया फ़र्जी-वि० ( फा० ) फरजी (दे०) माना
का परिणाम, त्रैराशिक की तृतीय राशि की या ठहराया हुआ, कल्पित नाम मात्र का,
प्रथम निप्पत्ति का दूसरा पद, ग्रहों के योग सत्ताहीन । संज्ञा, पु० (दे०) शातरंज में वज़ीर का सुखद या दुखद परिणाम (फ० ज्यो०)। नाम का मोहरा।
फलक-संज्ञा, पु० (सं०) पट्टी, पटल, पृष्ठ, फ़र्द - संज्ञा, पु० ( फा० ) लेग्वा या सूची का
चादर, वरक पत्र, हथेली, फल, तलता। काग़ज़, विवरण या सूची पत्र, शाल या
कलक--संज्ञा, पु० (अ०) स्वर्ग, आसमान । रजाई आदि का ऊपरी पल्ला, चादर, फरद
फतकना-अ० कि० दे० (अनु०) उमगना,
छलकना, फरकना ! (दे०) स्त्री० फी।
फल-कर-संज्ञा, पु० यौ० (हिं. फल ---कर) फर्राटा-संज्ञा, पु० (अनु० ) वेग, तेज़ी,
वृक्षों के फलों पर लगा हुआ महसूल । शीघ्रता, तिप्रता, खर्राटा।
फलका-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्फोटक) छाला, फर्राश-संज्ञा, पु० (अ०) बिछौना, बिछाने
फफोला, झलका। या डेरा लगाने वाला नौकर !
| फत्तजनक-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) फलद। फर्राशी-वि० ( फ़ा० ) फर्श या फर्राश के फन्ततः- अव्य (सं०) परिणाम या फलस्वरूप, कार्य से संबंध रखने वाला । संज्ञा, स्त्री०- इस हेतु, इस कारण, इस लिये। फर्राश का काम, पद या मजदूरी । यौ०- फलइ-फलप्रद-वि० सं०) फल देने वाला। फरीशी पंखा-वह पंखा जिससे बिछौना | फलदाता-संज्ञा, पु० यौ० सं० फलदातृ ) पर भी हवा की जा सके । करगी (फर्शी) फल देने वाला, फलप्रद, फलदायक ।
सलाम-बहुत झुक कर सलाम ! फलदान-~-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) तिलक, फ़र्श-संज्ञा, पु० (अ.) बिलौना, चाँदनी। विवाह की एक हीति, वरेच्छा, घर क्षग। फ़र्शी -- संज्ञा, स्त्री० (अ०) एक तरह का बड़ा फलदार-वि० (हि. फल । दार रखने वाला)
हुक्का । वि०-फर्श का, फर्श-संबंधी। फ़ा० प्रत्य० ) फलों वाला, फल युक्त वृक्ष । फलंक*-संज्ञा, पु० दे० (सं० फलंघन) फलना-अ० क्रि० दे० (सं० फलन ) फल कूदना, फाँदना, लाँघना। संज्ञा, पु० (अ० लगाना, सफल होना, फल-युक्त होना, फल फलक ) आकाश । “ कूदि गयो कपि एक देना, लाभदायक होना। (स० कि० फलाना, फलंका लंका के दरवाजा ''-रघु०। प्रे० रूप० फलवाना )। मुहा० यौ०फल-संज्ञा, पु. (सं०) ऋतु विशेष में फूलों कलनाफूलना-सब भाँति सुखी और के बाद उत्पन्न गूदेदार पेंड़ों का बीज-कोश संन्नप होना । मनमा फलना--इच्छा पूर्ण लाभ, कार्य का परिणाम या नतीजा, या सुफल होना। शरीर में पीड़ा युक्त छोटे शुभाशुभ कर्मों का सुखद या दुखद परिणाम, २ दाने निकल आना, पूर्ण होना । कर्म-विपाक, शुभ कर्मों के चार परिणाम-फलबुझौवत्त-संज्ञा, पु. यो० (दे० ) एक अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष ( सांख्य ) प्रतीकार, प्रकार का खेल । बदला, चाकू, भाला, वाणादि का पैना अग्र- फलमूल-संक्षा, पु० यौ० (सं०) फल और
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